नई दिल्ली,4 अगस्त (युआईटीवी)- भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (आरबीआई एमपीसी ) की अहम बैठक सोमवार,4 अगस्त से शुरू हो चुकी है,जो 6 अगस्त तक चलेगी। इस बैठक के परिणामों की घोषणा आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा मंगलवार को करेंगे। यह बैठक ऐसे समय में हो रही है,जब भारत की अर्थव्यवस्था एक ओर महँगाई के घटते रुझान और दूसरी ओर वैश्विक व्यापार में अस्थिरता से जूझ रही है। अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने की घोषणा ने इस बैठक की महत्ता और बढ़ा दी है।
अर्थशास्त्रियों और वित्तीय विशेषज्ञों की राय में,वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के पास रेपो दरों में कम-से-कम 25 आधार अंकों की कटौती करने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ भारतीय निर्यात क्षेत्र को झटका दे सकते हैं,जिसका सीधा असर आर्थिक विकास की गति पर पड़ सकता है। ऐसे में मौद्रिक नीति में ढील देना आवश्यक हो सकता है,ताकि घरेलू माँग और निवेश को बल मिल सके।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) रिसर्च की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, महँगाई दर में नरमी और वैश्विक अनिश्चितताओं के चलते भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दरों में 25 आधार अंकों की कटौती कर सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर यह कटौती होती है,तो यह फेस्टिव सीजन से ठीक पहले क्रेडिट ग्रोथ को एक बड़ा बूस्ट देगी और उपभोक्ताओं की खर्च करने की क्षमता को भी बढ़ाएगी।
इतिहास भी इस संभावना का समर्थन करता है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जब-जब त्योहारों के मौसम से पहले ब्याज दरों में कटौती की गई है,तब-तब क्रेडिट ग्रोथ में तेजी आई है। यह एक तरह से बाजार में तरलता को बढ़ाकर खपत और माँग को प्रोत्साहित करता है,जो कि विकास को गति देने वाला प्रमुख कारक है।
वहीं,रिपोर्ट में नीति निर्माताओं को चेताया गया है कि यदि वे बहुत देर से कदम उठाते हैं,तो प्रभावी हस्तक्षेप का अवसर गंवाया जा सकता है। ‘बैकलोडिंग’ या नीति निर्धारण में देरी को रिपोर्ट ने ‘टाइप II गलती’ बताया है,जिसका अर्थ है कि जरूरी कार्रवाई में देर करना,जिससे नुकसान हो सकता है। रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि आरबीआई को वर्तमान आर्थिक संकेतकों को देखते हुए समय पर नीतिगत कदम उठाने चाहिए।
दूसरी ओर, रेटिंग एजेंसी केयरएज की रिपोर्ट के अनुसार,भारत में आने वाले दो तिमाहियों तक महँगाई दर आरबीआई के 4 प्रतिशत के लक्ष्य से नीचे रह सकती है। अनुकूल आधार प्रभाव और खाद्य वस्तुओं की कीमतों में आई नरमी इसके प्रमुख कारण बताए गए हैं। हालाँकि, रिपोर्ट ने यह भी संकेत दिया है कि साल की तीसरी तिमाही के बाद महँगाई में पुनः वृद्धि हो सकती है और वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में यह 4 प्रतिशत के आँकड़ों को पार कर सकती है।
इन सारे संकेतों के बीच भारतीय रिजर्व बैंक के लिए यह निर्णय आसान नहीं होगा। एक ओर अमेरिका के टैरिफ से प्रभावित हो सकता निर्यात और दूसरी ओर घरेलू महँगाई में संभावित वृद्धि—दोनों ही परिस्थिति अलग-अलग प्रकार की नीति माँगती हैं। ऐसे में आरबीआई को संतुलित रुख अपनाना होगा,जिससे वह आर्थिक वृद्धि को भी बनाए रख सके और मूल्य स्थिरता भी सुनिश्चित कर सके।
विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा परिस्थितियों में आरबीआई का फोकस “विकास को समर्थन देना” होना चाहिए,खासकर तब जब वैश्विक व्यापारिक स्थितियाँ अनिश्चित हैं और घरेलू निवेश तथा खपत को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। यदि आरबीआई रेपो दर में कटौती करता है,तो इससे बैंकिंग प्रणाली में कर्ज लेना सस्ता होगा और बाजार में माँग बढ़ेगी।
अब सबकी निगाहें 6 अगस्त को आरबीआई गवर्नर द्वारा घोषित की जाने वाली मौद्रिक नीति पर टिकी हैं। यह फैसला न केवल घरेलू आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करेगा,बल्कि वैश्विक निवेशकों के नजरिए से भी भारतीय नीति के रुख को दर्शाएगा। क्या आरबीआई वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच साहसिक कदम उठाएगा या सतर्क रुख अपनाएगा,इसका जवाब कल मिलेगा,लेकिन संकेतों से यह स्पष्ट है कि रेपो रेट कटौती की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।