मुंबई,1 अक्टूबर (युआईटीवी)- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को अपने कई अहम निर्णयों की घोषणा की,जिनका उद्देश्य देश में क्रेडिट प्रवाह को और सुगम बनाना और निवेशकों तथा कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। केंद्रीय बैंक ने बैंकों को अब भारतीय कंपनियों द्वारा किए जाने वाले अधिग्रहणों के लिए फंडिंग की अनुमति दी है। इसके साथ ही,शेयरों और ऋण प्रतिभूतियों के बदले ऋण देने पर पहले से मौजूद कई प्रतिबंधों में भी ढील दी गई है।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के बाद बताया कि केंद्रीय बैंक एक नया फ्रेमवर्क तैयार करेगा,जिसके तहत बैंक कंपनियों को अधिग्रहण और विस्तार के लिए आवश्यक ऋण उपलब्ध कर सकेंगे। यह कदम विशेष रूप से भारतीय स्टेट बैंक द्वारा नियामक से इस प्रकार की फंडिंग की अनुमति देने के लिए अनुरोध करने के बाद उठाया गया है।
गवर्नर मल्होत्रा ने आगे कहा कि केंद्रीय बैंक ने सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों पर बैंकों द्वारा ऋण देने की नियामक सीमा को पूरी तरह हटा दिया है। इससे बैंक अब शेयरों और बांड्स के बदले ऋण प्रदान करने में अधिक स्वतंत्रता के साथ काम कर सकेंगे। इसके अलावा,शेयरों पर ऋण देने की सीमा को प्रति व्यक्ति 20 लाख रुपए से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इसी तरह, आईपीओ फंडिंग के लिए भी सीमा 10 लाख रुपए से बढ़ाकर 25 लाख रुपए प्रति व्यक्ति कर दी गई है। इस बदलाव से विशेष रूप से उच्च निवल मूल्य वाले व्यक्तियों (एचएनआई) को सार्वजनिक निर्गमों में बड़ी राशि के लिए आवेदन करने में आसानी होगी और उनकी भागीदारी बढ़ेगी।
आरबीआई ने यह भी निर्णय लिया है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए ऋण देना सस्ता होगा। इससे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा उच्च-गुणवत्ता वाले इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को दिए जाने वाले ऋणों पर जोखिम भार कम हो जाएगा और बैंकिंग प्रणाली में वित्तीय स्थिरता बनी रहेगी।
केंद्रीय बैंक ने 2016 में लागू किए गए उस नियम को भी वापस ले लिया है,जिसके तहत 10,000 करोड़ रुपए से अधिक बैंक ऋण वाले बड़े उधारकर्ताओं को ऋण देने से हतोत्साहित किया जाता था। इस बदलाव के बाद बड़ी कंपनियों और कॉर्पोरेट्स के लिए आवश्यक ऋण आसानी से उपलब्ध हो सकेगा और बैंकिंग प्रणाली में समग्र ऋण प्रवाह में वृद्धि होने की उम्मीद है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई के ये फैसले कई मायनों में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत हैं। सबसे पहले,इससे बैंकों द्वारा अधिक ऋण देने को बढ़ावा मिलेगा,जिससे कॉर्पोरेट अधिग्रहणों को वित्तीय मदद मिलेगी और कंपनियों के विस्तार की गति तेज होगी। दूसरा,शेयर बाजार में निवेशकों की भागीदारी बढ़ेगी,विशेषकर एचएनआई वर्ग में,जो आईपीओ और अन्य पब्लिक ऑफ़र में बड़ी रकम लगाने में सक्षम होंगे।
इसके साथ ही,इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के लिए ऋण सस्ता होने से देश में बड़े निर्माण और विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता बढ़ेगी। यह कदम न केवल निजी निवेश को आकर्षित करेगा,बल्कि रोजगार और आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देगा। एनबीएफसी के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाले प्रोजेक्ट्स को वित्त उपलब्ध कराना इस बात का संकेत है कि केंद्रीय बैंक निजी क्षेत्र में निवेश को सक्रिय बनाने की दिशा में काम कर रहा है।
गवर्नर मल्होत्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि इन फैसलों का उद्देश्य केवल बैंकों को अधिक ऋण देने के लिए प्रोत्साहित करना नहीं है,बल्कि वित्तीय प्रणाली को मजबूत बनाना,कॉर्पोरेट अधिग्रहणों का समर्थन करना,आईपीओ में भागीदारी बढ़ाना और इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं व्यावसायिक विकास के लिए आवश्यक फंड की उपलब्धता को सुगम बनाना है। उन्होंने कहा कि यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और विकास दोनों के लिए अहम साबित होगा।
विशेषज्ञों के अनुसार,आरबीआई द्वारा शेयर और ऋण प्रतिभूतियों पर सीमा हटाना और उच्च निवेशकों के लिए आईपीओ फंडिंग बढ़ाना,बाजार में तरलता को बनाए रखने और निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। वहीं,अधिग्रहण के लिए फंडिंग की अनुमति और बड़े ऋणधारकों पर नियमों में ढील देने से कॉर्पोरेट जगत में निवेश और विकास की संभावनाओं में इजाफा होगा।
आरबीआई के इन निर्णयों के बाद उम्मीद है कि भारतीय बैंकिंग और वित्तीय बाजार में नई ऊर्जा का संचार होगा। कंपनियों को आवश्यक ऋण मिल सकेगा,निवेशक बड़े प्रोजेक्ट्स में भाग ले पाएँगे और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विकास की गति तेज होगी। ऐसे में यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण साबित होगा।
इस तरह,आरबीआई ने न केवल बैंकिंग प्रणाली को सुदृढ़ किया है,बल्कि कंपनियों और निवेशकों के लिए वित्तीय अवसरों के द्वार भी खोल दिए हैं,जिससे देश में आर्थिक विकास की संभावनाओं को और मजबूती मिलेगी।