नई दिल्ली,3 दिसंबर (युआईटीवी)- भारतीय करेंसी बाजार में बुधवार का दिन ऐतिहासिक गिरावट का साक्षी बना। घरेलू मुद्रा रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90 के स्तर के पार चला गया और 90.13 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ। यह गिरावट उस समय आई,जब पिछले ही कारोबारी दिन रुपया 89.94 के स्तर पर अपने सर्वकालिक निचले रिकॉर्ड को छू चुका था। मात्र 24 घंटे के भीतर इस नए रिकॉर्ड का टूट जाना बाजार में बढ़ती अस्थिरता और आर्थिक दबाव का संकेत देता है।
रुपये की इस तेज गिरावट के पीछे कई कारक जिम्मेदार बताए जा रहे हैं। वैश्विक बाजारों में कमजोर ट्रेड सेंटिमेंट, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) के सुस्त प्रवाह और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर बढ़ती अनिश्चितता ने करेंसी पर भारी दबाव बनाया है। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका के साथ डील के भविष्य को लेकर अस्पष्टता अभी भी बनी हुई है और इसी कारण निवेशक सतर्क रुख अपनाए हुए हैं। इसका सीधा असर रुपया-डॉलर विनिमय दर पर दिख रहा है,जो लगातार कमजोर होती जा रही है।
डॉलर के मुकाबले रुपये की इस कमजोरी का सीधा असर भारतीय शेयर बाजार पर भी देखने को मिला। निफ्टी इंडेक्स बुधवार को शुरुआती कारोबार के दौरान अपने महत्वपूर्ण 26,000 के स्तर से नीचे फिसल गया,जो बाजार में नकारात्मकता को दर्शाता है। इसके साथ ही सेंसेक्स में भी 200 से अधिक अंकों की गिरावट दर्ज की गई। कमजोर रुपये के कारण मुद्रास्फीति बढ़ने की आशंका और विदेशी निवेशकों की संभावित निकासी को लेकर चिंता बढ़ गई है,जिसका असर सभी प्रमुख सेक्टर्स पर देखने को मिला।
विश्लेषकों के अनुसार,निवेशक इस समय दो प्रमुख मुद्दों पर नजर बनाए हुए हैं—पहला,रुपया कब तक स्थिर होता है और दूसरा,भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता में क्या प्रगति होती है। यदि दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता इसी महीने हो जाता है,तो रुपये की गिरावट रुक सकती है और स्थिति कुछ हद तक सुधर सकती है। हालाँकि,विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि समझौते के बाद जो टैरिफ और नई व्यापार नीतियाँ लागू होंगी,वे भी स्थिति को काफी प्रभावित करेंगी। यदि टैरिफ दरें भारतीय उद्योगों के पक्ष में रहती हैं,तो बाजार में तेजी से सुधार देखने को मिल सकता है।
रुपये के गिरने के पीछे एक और प्रमुख कारण है भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की सीमित दखलअंदाज़ी। विश्लेषकों का कहना है कि इस बार आरबीआई ने मुद्रा बाजार में काफी “म्यूट” इंटरवेंशन किया है,जिससे गिरावट तेज हुई है। सामान्यतः जब रुपया तेज़ी से कमजोर होता है,तो केंद्रीय बैंक डॉलर बेचकर बाजार में तरलता बढ़ाता है और करेंसी को संभालने की कोशिश करता है,लेकिन हालिया गिरावट के दौरान ऐसा आक्रामक कदम नहीं देखा गया। विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई जानबूझकर बाजार को अपनी प्राकृतिक दिशा में चलने दे रहा है,ताकि डॉलर की वास्तविक माँग और आपूर्ति का संतुलन उभरकर सामने आ सके।
अब बाजार की निगाहें शुक्रवार को होने वाली आरबीआई एमपीसी बैठक की नीति घोषणा पर टिकी हैं। निवेशकों को उम्मीद है कि इस बैठक में यह स्पष्ट हो जाएगा कि क्या आरबीआई मुद्रा को स्थिर करने के लिए अतिरिक्त कदम उठाएगा या फिर वर्तमान रुख को ही जारी रखेगा। यदि केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में किसी प्रकार की टिप्पणी करता है या डॉलर बिक्री के संकेत देता है,तो यह रुपये के लिए राहतभरा मोड़ साबित हो सकता है। साथ ही यह शेयर बाजारों में भी सुधार ला सकता है।
रुपये की गिरावट का असर केवल वित्तीय बाजारों तक सीमित नहीं है। डॉलर के मुकाबले जब भी घरेलू मुद्रा कमजोर होती है,तो आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं—विशेषकर तेल,इलेक्ट्रॉनिक उपकरण,मशीनरी और अन्य उपभोक्ता वस्तुएँ। इसका सीधा असर आम उपभोक्ताओं तक पहुँचता है,क्योंकि पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ती हैं और रोजमर्रा की वस्तुएँ महँगी होती जाती हैं। ऐसे समय में रुपये का लगातार कमजोर होना मुद्रास्फीति के दबाव को और बढ़ा सकता है,जो पहले से ही अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बना हुआ है।
कुल मिलाकर रुपये का 90 के पार जाना अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी संकेत है। विदेशी निवेश की अनिश्चितता,वैश्विक बाजारों में अस्थिरता और व्यापार वार्ता की अस्पष्टता ने बाजार को कमजोर किया है। आने वाले दिनों में भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की दिशा और आरबीआई की मुद्रा स्थिरता को लेकर उठाए जाने वाले कदम ही यह तय करेंगे कि क्या रुपया इस गिरावट से उभर पाएगा या फिर यह कमजोरी लंबी अवधि तक जारी रहेगी। फिलहाल बाजार,निवेशक और उद्योग जगत—सभी की नजरें आने वाले सप्ताह की आर्थिक घोषणाओं और नीतिगत फैसलों पर टिकी हुई हैं।

