वाशिंगटन,12 जून (युआईटीवी)- मध्य पूर्व में लगातार बढ़ते तनाव और अमेरिका-ईरान परमाणु वार्ता के ठप पड़ने के चलते व्हाइट हाउस ने बड़ा फैसला लिया है। अमेरिकी प्रशासन ने कुछ मध्य पूर्वी देशों,खासकर इराक से अपने कर्मचारियों को एहतियातन वापस बुलाने की घोषणा की है। यह कदम क्षेत्रीय सुरक्षा स्थिति के अचानक खराब होने और संभावित खतरों को देखते हुए उठाया गया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस फैसले को एहतियात का हिस्सा बताते हुए कहा कि अब वह इलाका खतरनाक होता जा रहा है। मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, “हम अपने लोगों को वहाँ से हटा रहे हैं,क्योंकि वह इलाका संभावित रूप से असुरक्षित बन गया है। हम देखेंगे आगे क्या होता है। हमने वहाँ से हटने का नोटिस दे दिया है।” हालाँकि,ट्रंप ने साफ नहीं किया कि यह पूरी तरह सैन्य वापसी की शुरुआत है या केवल अस्थायी एहतियात।
जब राष्ट्रपति ट्रंप से यह पूछा गया कि क्या तनाव कम करने के लिए कोई वार्ता या कूटनीतिक रास्ता अपनाया जा सकता है,तो उन्होंने सीधे तौर पर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि अमेरिका कभी भी ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने की अनुमति नहीं देगा। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा,“उनके पास परमाणु हथियार नहीं होने चाहिए। यह बहुत सीधी बात है। हम उन्हें ऐसा नहीं करने देंगे।”
यह बयान ऐसे समय आया है,जब अमेरिकी खुफिया एजेंसियों और रक्षा विश्लेषकों की रिपोर्टें सामने आई हैं,जिनमें संकेत दिया गया है कि ईरान गुप्त रूप से अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है। इन खबरों ने पहले से ही नाजुक संतुलन में चल रहे पश्चिम एशिया में और तनाव उत्पन्न कर दिया है।
अमेरिकी विदेश विभाग ने एक आधिकारिक बयान में पुष्टि की कि इराक स्थित अमेरिकी मिशनों से कुछ कर्मियों को हटाया जा रहा है। विभाग ने कहा, “हम अपने हालिया खुफिया और सुरक्षा विश्लेषण के आधार पर इराक में अपने मिशन की उपस्थिति को सीमित कर रहे हैं।” यह बयान इस बात की पुष्टि करता है कि वाशिंगटन को इराक में अमेरिकी कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता है।
इसके अलावा,अमेरिकी दूतावासों में कर्मचारियों की तैनाती की स्थिति की भी लगातार समीक्षा की जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि यह एक मानक प्रक्रिया है,लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इस फैसले को सामान्य नहीं माना जा सकता।
बुधवार को ही अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने भी एक बड़ा फैसला लिया। उन्होंने मध्य पूर्व में तैनात अमेरिकी सैनिकों के परिवारों को स्वेच्छा से अमेरिका लौटने की अनुमति दे दी है। इस फैसले को भी उसी व्यापक योजना का हिस्सा माना जा रहा है,जिसके तहत अमेरिका क्षेत्रीय सुरक्षा स्थिति को लेकर सतर्कता बरत रहा है।
हालाँकि,यह साफ नहीं किया गया है कि किन खतरों के चलते यह निर्णय लिया गया है,लेकिन जानकार मानते हैं कि यह कदम ईरान से उत्पन्न संभावित खतरों के आकलन का परिणाम है।
अर्कांसस के सीनेटर टॉम कॉटन ने गुरुवार को दावा किया कि रक्षा सचिव हेगसेथ ने यह पुष्टि की है कि ईरान सक्रिय रूप से परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है। इस बयान ने तनाव की आग में और घी डाल दिया है। यदि यह आरोप सही साबित होते हैं,तो अमेरिका और ईरान के बीच पहले से रुकी हुई परमाणु वार्ता और अधिक जटिल हो सकती है।
टॉम कॉटन के इस बयान को ट्रंप प्रशासन की उस सख्त नीति से भी जोड़ा जा रहा है, जिसके तहत अमेरिका यह सुनिश्चित करना चाहता है कि ईरान कभी भी उस स्थिति तक न पहुँचे,जहाँ वह परमाणु हथियार हासिल कर सके। इसी नीति के तहत अमेरिका ने 2018 में ओबामा काल के ईरान परमाणु समझौते (जेसीपीओए) से खुद को अलग कर लिया था।
अमेरिका द्वारा कर्मचारियों को वापस बुलाना और ईरान पर सख्त बयान देना यह स्पष्ट संकेत है कि वाशिंगटन अब मध्य पूर्व में सैन्य और कूटनीतिक रूप से नई स्थिति में प्रवेश कर रहा है। अमेरिका की यह रणनीति एक तरफ तो अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की है,तो दूसरी ओर ईरान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाए रखने की भी।
परमाणु वार्ता के ठप पड़ने और बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच आने वाले हफ्ते यह तय करेंगे कि क्या यह संकट एक नए संघर्ष की ओर बढ़ेगा या कोई कूटनीतिक समाधान निकलेगा,लेकिन फिलहाल, हालात निश्चित रूप से नाजुक बने हुए हैं।