अनिल अंबानी ग्रुप के सीएफओ अशोक पाल मनी लॉन्ड्रिंग आरोप में गिरफ्तार (तस्वीर क्रेडिट@theapril29th)

रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह पर नया झटका,सीएफओ अशोक कुमार पाल मनी लॉन्ड्रिंग आरोप में गिरफ्तार

नई दिल्ली,11 अक्टूबर (युआईटीवी)- अनिल अंबानी के स्वामित्व वाले रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी (एडीए) ग्रुप के लिए वित्तीय परेशानियों की झड़ी लगातार बढ़ती जा रही है। शुक्रवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एडीए ग्रुप की प्रमुख कंपनी रिलायंस पावर लिमिटेड के मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ ) और कार्यकारी निदेशक अशोक कुमार पाल को फर्जी बैंक गारंटी मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के तहत गिरफ्तार कर लिया। अशोक पाल को अनिल अंबानी का करीबी सहयोगी माना जाता है और उनकी गिरफ्तारी ग्रुप की वित्तीय पारदर्शिता और कानूनी प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

ईडी के अधिकारियों ने बताया कि यह गिरफ्तारी एडीए ग्रुप से जुड़े उस जाँच का हिस्सा है,जिसमें करोड़ों रुपये के वित्तीय अनियमितताओं और फर्जी बैंक गारंटियों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग की आशंका जताई गई है। जाँच एजेंसी ने पाल से दिल्ली स्थित अपने कार्यालय में कई घंटे तक पूछताछ की और उसके बाद उन्हें हिरासत में ले लिया। अधिकारियों का कहना है कि अशोक पाल को शनिवार को अदालत में पेश किया जाएगा,जहाँ ईडी उनकी रिमांड की माँग कर सकती है।

इस मामले की जड़ें यस बैंक से जुड़े पुराने वित्तीय घोटाले से जुड़ी बताई जा रही हैं। ईडी का दावा है कि अनिल अंबानी और उनकी कई कंपनियों ने लगभग 17,000 करोड़ रुपये के ऋण घोटाले में अहम भूमिका निभाई। जाँच एजेंसियों को संदेह है कि समूह की कई कंपनियों के माध्यम से धन का दुरुपयोग किया गया और उसे मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए वैध दिखाने का प्रयास किया गया। इस प्रकार,फर्जी बैंक गारंटियों और वित्तीय दस्तावेजों का इस्तेमाल करके निवेशकों और बैंकों को गुमराह किया गया।

अनिल अंबानी की कंपनियों पर चल रही यह जाँच पहले से ही वित्तीय जगत और मीडिया में चर्चा का विषय रही है। इसी सप्ताह की शुरुआत में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के फैसले को बरकरार रखा,जिसमें अनिल अंबानी और उनकी कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) के ऋण खातों को धोखाधड़ी (फ्रॉड ) के तहत घोषित किया गया था। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और निला गोकले की खंडपीठ ने 3 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान अनिल अंबानी की याचिका खारिज कर दी। अंबानी की दलील थी कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से सुनवाई का अवसर नहीं मिला और जरूरी दस्तावेज साझा नहीं किए गए। अदालत ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की गाइडलाइन के अनुसार केवल लिखित जवाब देने का अधिकार ही संबंधित पक्ष को है और एसबीआई का निर्णय कानूनी रूप से पूरी तरह वैध है।

13 जून को एसबीआई ने रिलायंस कम्युनिकेशंस और अनिल अंबानी के खातों को फ्रॉड घोषित करते हुए गंभीर आरोप लगाए थे। इनमें धन की हेराफेरी,अनुबंधों का उल्लंघन और संबंधित कंपनियों को फंड ट्रांसफर जैसे मुद्दे शामिल थे। इसके बाद,बैंक ऑफ बड़ौदा ने भी रिलायंस कम्युनिकेशंस और अनिल अंबानी के खातों को फ्रॉड के तहत वर्गीकृत किया। इन घटनाओं ने एडीए ग्रुप की वित्तीय स्थिति और विश्वास के स्तर को गंभीर नुकसान पहुँचाया है।

फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स का कहना है कि अशोक कुमार पाल की गिरफ्तारी एडीए ग्रुप के लिए और भी चिंता का विषय है,क्योंकि सीएफओ का पद किसी भी कंपनी में वित्तीय नियमन और जोखिम प्रबंधन का सबसे अहम हिस्सा होता है। पाल की गिरफ्तारी ने निवेशकों और शेयरधारकों के बीच अनिश्चितता बढ़ा दी है और इसके परिणामस्वरूप एडीए ग्रुप की कंपनियों के शेयर मूल्य में अस्थिरता देखने को मिल सकती है।

अनिल अंबानी की कंपनियों पर लगातार कानूनी और वित्तीय दबाव से यह साफ है कि ग्रुप को अब अपने वित्तीय संचालन और पारदर्शिता के स्तर को सुधारने की सख्त जरूरत है। विशेषज्ञों के अनुसार, फर्जी बैंक गारंटियों और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जाँच में लंबी प्रक्रिया लग सकती है,लेकिन इसका परिणाम एडीए ग्रुप के कार्यशील मॉडल और निवेशकों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से निर्णायक साबित हो सकता है।

ईडी ने कहा कि जाँच पूरी होने तक कई और वरिष्ठ अधिकारियों और कर्मचारियों से पूछताछ की जा सकती है। इस प्रकार की कार्रवाई आमतौर पर बड़े वित्तीय घोटालों और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में आवश्यक होती है। अधिकारियों का कहना है कि जाँच का मकसद वित्तीय अपराधों के सभी पहलुओं को उजागर करना और दोषियों के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई करना है।

इस बीच, एडीए ग्रुप की कंपनियों ने अभी तक सार्वजनिक तौर पर कोई विस्तृत टिप्पणी नहीं दी है। हालाँकि,वित्तीय विश्लेषकों का मानना है कि इस मामले का असर अनिल अंबानी के नेतृत्व और ग्रुप की बाजार छवि पर गहरा पड़ेगा। इसके अलावा,आरबीआई और अन्य नियामक संस्थाएँ भी इस मामले की निगरानी कर रही हैं,ताकि वित्तीय प्रणाली की स्थिरता बनी रहे।

इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि बड़े कॉरपोरेट समूहों में वित्तीय पारदर्शिता और क़ानूनी अनुपालन का महत्व कितना अधिक है। अनिल अंबानी और उनके सहयोगियों के खिलाफ यह मामला न केवल एडीए ग्रुप के लिए,बल्कि पूरे कॉरपोरेट भारत के लिए एक चेतावनी भी साबित हो सकता है कि वित्तीय अनियमितताओं और धोखाधड़ी पर निगरानी कठोर हो रही है।

इस प्रकार,अशोक कुमार पाल की गिरफ्तारी और एसबीआई द्वारा दिए गए फैसले ने एडीए ग्रुप के सामने गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है। अब यह देखना बाकी है कि ग्रुप कैसे अपनी वित्तीय छवि और निवेशकों के विश्वास को बनाए रखता है और कानूनी प्रक्रियाओं का सामना करता है।