भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव (तस्वीर क्रेडिट@Kanthan2030)

एस. जयशंकर का रूस दौरा: भारत-रूस संबंधों की नई दिशा तय करने वाली अहम कूटनीतिक बैठकें शुरू

नई दिल्ली,17 नवंबर (युआईटीवी)- भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर इन दिनों रूस के आधिकारिक दौरे पर हैं,जहाँ वे मास्को में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ उच्चस्तरीय बैठकें करेंगे। इस यात्रा को खास इसलिए माना जा रहा है क्योंकि दिसंबर में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत के दौरे पर आने वाले हैं और यह मुलाकात दोनों देशों के बीच होने वाली भविष्य की रणनीतिक चर्चाओं और कार्यक्रमों की महत्वपूर्ण भूमिका तय करेगी। जयशंकर का यह दौरा ऐसे समय पर हो रहा है,जब वैश्विक मंच पर लगातार बदलते समीकरणों के बीच भारत और रूस दोनों अपनी कूटनीतिक प्राथमिकताओं को एक नए सिरे से मज़बूत कर रहे हैं।

रूसी विदेश मंत्रालय ने जयशंकर के मास्को पहुँचने की जानकारी देते हुए बताया कि दोनों देश द्विपक्षीय सहयोग की वर्तमान स्थिति,राजनीतिक संवाद के अगले चरण और आगामी साझा कार्यक्रमों की व्यापक समीक्षा करेंगे। इस बैठक के दौरान रक्षात्मक सहयोग,व्यापार बढ़ाने,ऊर्जा सुरक्षा,वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग सहित कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रगति का मूल्यांकन किया जाना है। इसके साथ ही,भारत और रूस अंतर्राष्ट्रीय मंचों—जैसे कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ),ब्रिक्स,संयुक्त राष्ट्र और जी20 में एक-दूसरे के साथ किस तरह समन्वय बढ़ा सकते हैं,इस पर भी गहन वार्ता की संभावना है।

जयशंकर रूस रवाना होने से पहले दोहा में भी कूटनीतिक व्यस्तताओं में शामिल थे,जहाँ उन्होंने कतर के प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान बिन जसीम अल थानी से मुलाकात की। कतर के साथ भारत के रिश्ते ऊर्जा सहयोग,रक्षा और श्रमिक मामलों के कारण काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। रूस रवाना होने से ठीक पहले हुई यह बैठक भारत की वृहद पश्चिम एशिया नीति का एक प्रमुख हिस्सा थी।

रूस पहुँचने पर जयशंकर की इस मुलाकात में ऊर्जा सहयोग प्रमुख मुद्दों में से एक होने की संभावना है,क्योंकि वर्तमान वैश्विक ऊर्जा संकट के दौर में भारत तेल और गैस के लिए रूस पर अपनी निर्भरता को रणनीतिक ढंग से संतुलित कर रहा है। साथ ही,रूसी मुद्रा में व्यापार,अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणालियों में बदलाव और नए परिवहन कॉरिडोर जैसे मुद्दे भी एजेंडा का हिस्सा हो सकते हैं।

यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 17-18 नवंबर को मास्को में एससीओ राष्ट्राध्यक्ष परिषद की बैठक होने वाली है,जिसमें भारत एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल के साथ शामिल होगा। रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने बताया कि जयशंकर इस बैठक के लिए प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे और यह क्षेत्रीय सुरक्षा,आतंकवाद-निरोध और बहुपक्षीय सहयोग पर चर्चाओं का एक महत्वपूर्ण मंच साबित होगा। एससीओ में भारत और रूस की साझा रणनीतिक प्राथमिकताएँ लंबे समय से एक-दूसरे के काफी करीब रही हैं और इस क्षेत्रीय मंच पर दोनों देशों का सहयोग एशिया-प्रशांत क्षेत्र के भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करता है।

जयशंकर और लावरोव की बैठक में यूक्रेन संकट पर चर्चा होना भी लगभग तय माना जा रहा है। भारत इस मुद्दे पर लगातार संवाद और कूटनीति के माध्यम से हल निकालने का समर्थक रहा है,जबकि रूस इस युद्ध में प्रत्यक्ष पक्ष है। भारत ने हमेशा ऊर्जा आपूर्ति,रक्षा सहयोग और रणनीतिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए रूस से अपने संबंधों का प्रबंधन किया है। इसलिए इस बातचीत में भारत के दृष्टिकोण और रूस की स्थिति को लेकर खुलकर चर्चा होना तय है।

यह जयशंकर का रूस दौरे पर जाना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी अगस्त 2025 में विदेश मंत्री रूस की यात्रा पर गए थे,जहाँ उन्होंने भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग (आईआरआईजीसी-टीईसी) के 26वें सत्र की सह-अध्यक्षता की थी। उस दौरान उन्होंने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी,साथ ही रूस के उप प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव और सर्गेई लावरोव से भी विस्तृत वार्ता की थी। इन बैठकों में व्यापार,विज्ञान,तकनीक,ऊर्जा और सांस्कृतिक मामलों पर सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया था। रूस और भारत के बीच लंबे समय से रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में गहरा संबंध रहा है,जिसे दोनों देश आधुनिक वैश्विक परिस्थितियों के अनुसार ढालने की कोशिश कर रहे हैं।

इसी कूटनीतिक पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन ने अक्टूबर में फोन पर बातचीत की थी। इस बातचीत में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय एजेंडे पर हुई हालिया प्रगति की समीक्षा की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन को जन्मदिन की शुभकामनाएँ देते हुए भारत-रूस रणनीतिक भागीदारी को और मजबूत करने का संकल्प दोहराया था। उन्होंने दिसंबर में भारत में होने वाले 23वें वार्षिक भारत-रूस शिखर सम्मेलन के लिए राष्ट्रपति पुतिन की मेजबानी करने की उत्सुकता भी जताई थी।

भारत और रूस के शीर्ष नेताओं की आखिरी मुलाकात सितंबर में तियानजिन में हुई थी,जहाँ एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी,राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तीनों एक ही मंच पर मौजूद थे। उस समय यूक्रेन संकट,एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा चुनौतियों और बहुपक्षीय मंचों में बड़े देशों की भूमिका जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई थी। दुनिया की नज़र इन तीनों नेताओं के इस सामूहिक संवाद पर टिकी रही,क्योंकि इनकी बातचीत का असर वैश्विक कूटनीति पर दूरगामी होता है।

राष्ट्रपति पुतिन पिछली बार 2021 में भारत आए थे और तब से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संपर्क जारी रहा है। ऐसे में इस बार का वार्षिक शिखर सम्मेलन भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी को नए स्तर पर ले जाने का एक अवसर साबित हो सकता है। जयशंकर का वर्तमान रूस दौरा इसी शिखर सम्मेलन की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत और रूस, दोनों ही बदलते वैश्विक समीकरणों और क्षेत्रीय चुनौतियों के बीच अपने संबंधों को और अधिक मजबूत करने की दिशा में गंभीरता से आगे बढ़ रहे हैं।