तियानजिन,1 सितंबर (युआईटीवी)- तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन ने सोमवार को कई अहम कूटनीतिक तस्वीरें पेश कीं, जिनमें सबसे ज्यादा चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात ने बटोरी। सम्मेलन के समापन के बाद दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय बैठक के लिए एक ही कार में सवार होकर पहुँचकर यह संदेश दिया कि भारत और रूस के संबंध न केवल औपचारिकता पर आधारित हैं,बल्कि उनमें आत्मीयता और सहजता भी झलकती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस मुलाकात की जानकारी साझा करते हुए एक तस्वीर पोस्ट की। उन्होंने लिखा, “एससीओ शिखर सम्मेलन के बाद मैं और राष्ट्रपति पुतिन साथ में द्विपक्षीय बैठक के स्थान पर गए। उनके साथ बातचीत हमेशा ज्ञानवर्धक होती है।” यह बयान और तस्वीर इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत-रूस के रिश्ते अभी भी उतने ही मजबूत हैं,जितने दशकों से चले आ रहे हैं।
सम्मेलन के दौरान केवल औपचारिक सत्र ही नहीं,बल्कि अनौपचारिक पलों ने भी वैश्विक ध्यान खींचा। दिन में सामने आई एक तस्वीर में प्रधानमंत्री मोदी,चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति पुतिन आपस में मुस्कुराते और हल्की-फुल्की बातचीत करते नजर आए। इस दृश्य ने रूस के कजान में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की याद दिला दी,जहाँ इन तीनों नेताओं की तस्वीरों ने काफी सुर्खियाँ बटोरी थीं। तियानजिन की तस्वीर में पुतिन बाईं ओर,मोदी बीच में और शी जिनपिंग दाईं ओर चलते हुए एससीओ फैमिली फोटो के लिए पोज देते दिखाई दिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस तस्वीर को साझा करते हुए लिखा, “तियानजिन में मुलाकातें जारी। एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति शी के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया।” यह बयान संकेत देता है कि भारत ने इस बहुपक्षीय मंच का उपयोग केवल औपचारिक भाषणों तक सीमित नहीं रखा,बल्कि द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय स्तर पर भी संवाद को आगे बढ़ाया।
प्रधानमंत्री ने एक और तस्वीर साझा की,जिसमें वह और राष्ट्रपति पुतिन एक-दूसरे से हाथ मिलाते और गले मिलते दिखाई दे रहे थे। इसके साथ पीएम मोदी ने लिखा, “राष्ट्रपति पुतिन से मिलना हमेशा खुशी की बात है।” यह अभिव्यक्ति न केवल दोनों नेताओं की व्यक्तिगत समझ को उजागर करती है,बल्कि भारत-रूस संबंधों की गहराई का भी प्रमाण है।
दिलचस्प क्षण तब देखने को मिला,जब तियानजिन में फोटो सेशन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और पुतिन को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के पास से गुजरते हुए देखा गया। उस समय शरीफ अकेले खड़े थे और कुछ उदास दिख रहे थे,जबकि मोदी और पुतिन आपस में अनौपचारिक बातचीत में मशगूल थे। यह दृश्य अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में तेजी से चर्चा का विषय बन गया। विश्लेषकों ने इसे कूटनीतिक संकेत के रूप में देखा,मानो भारत और रूस की प्राथमिकताओं की तुलना में पाकिस्तान की स्थिति हाशिए पर चली गई हो।
एससीओ शिखर सम्मेलन की इस श्रृंखला ने कई संदेश दिए। एक ओर,भारत और रूस के बीच लंबे समय से चले आ रहे रणनीतिक संबंधों की पुष्टि हुई,वहीं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ प्रधानमंत्री मोदी की अनौपचारिक बातचीत ने इस बात की संभावना जताई कि दोनों देशों के बीच संवाद की राह पूरी तरह बंद नहीं हुई है। पिछले कुछ वर्षों में भारत-चीन संबंधों में तनाव की स्थिति रही है,खासकर सीमा विवाद को लेकर। ऐसे में शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी और शी का साथ में हँसते-बोलते नजर आना किसी सकारात्मक संकेत के रूप में लिया जा सकता है।
रूस के राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी की साझेदारी पर अगर गौर करें,तो यह केवल आर्थिक या रक्षा सहयोग तक सीमित नहीं है। यूक्रेन युद्ध के बाद जब पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए,तब भी भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखा और ऊर्जा सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाया। यही कारण है कि पुतिन,भारत को एक विश्वसनीय मित्र मानते हैं और हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मोदी के साथ सहजता से दिखते हैं।
एससीओ शिखर सम्मेलन के इस दौर ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत बहुपक्षीय मंचों का इस्तेमाल अपने हितों और रिश्तों को संतुलित ढंग से आगे बढ़ाने के लिए करता है। जहाँ रूस के साथ दोस्ती को और प्रगाढ़ करने की झलक दिखी,वहीं चीन के साथ संवाद की गुंजाइश बनाए रखने का प्रयास भी नजर आया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ का अकेला और उदास खड़ा होना इस बात का प्रतीक माना जा सकता है कि क्षेत्रीय राजनीति में भारत की स्थिति कहीं अधिक मजबूत और निर्णायक है।
तियानजिन में हुई इस शिखर मुलाकात ने न केवल कूटनीतिक समीकरणों को नए सिरे से परिभाषित किया,बल्कि यह संदेश भी दिया कि भारत वैश्विक राजनीति में संतुलन साधने और अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखने की कला में माहिर है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की नजदीकी ने भारत-रूस संबंधों की मजबूती को रेखांकित किया,वहीं शी जिनपिंग के साथ अनौपचारिक बातचीत ने उम्मीद जगाई कि संवाद की डोर कभी पूरी तरह टूटती नहीं।
एससीओ का यह सम्मेलन भले ही औपचारिक रूप से समाप्त हो गया हो,लेकिन इसके दौरान सामने आए ये मानवीय और कूटनीतिक पल आने वाले समय में एशिया और विश्व की राजनीति में महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़ सकते हैं।