नई दिल्ली,25 मार्च (युआईटीवी)- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने डिस्क्लोजर की सीमा को 25,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये करने की घोषणा की है। यह निर्णय सेबी द्वारा अपनी बोर्ड बैठक में लिया गया। इस समायोजन की आवश्यकता बाजार में कैश इक्विटी ट्रेडिंग वॉल्यूम में हुई तेज वृद्धि के कारण पड़ी।
सेबी ने बताया कि एफपीआई के लिए डिस्क्लोजर की सीमा में आखिरी बदलाव वित्त वर्ष 2022-23 में किया गया था,तब से बाजार के ट्रेडिंग वॉल्यूम दोगुने हो चुके हैं। इस बदलाव के बाद अब भारतीय शेयर बाजार में 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की होल्डिंग रखने वाले एफपीआई को अपने निवेश के बारे में डिस्क्लोजर देने की आवश्यकता होगी।
इन डिस्क्लोजर का मुख्य उद्देश्य धन-शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) और अन्य संबंधित विनियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना है। इसके अलावा,एफपीआई के लिए डिस्क्लोजर का प्रमुख उद्देश्य निवेश के संभावित दुरुपयोग को रोकना और वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखना है। सेबी ने एक बयान में कहा, “वित्त वर्ष 2022-23 (जब सीमा निर्धारित की गई थी) और वित्त वर्ष 2024-25 के बीच कैश इक्विटी बाजार में कारोबार की वॉल्यूम दोगुनी से अधिक हो गई है। इसके मद्देनजर, बोर्ड ने लागू सीमा को मौजूदा 25,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।”
हालाँकि,डिस्क्लोजर सीमा बढ़ाने के अलावा सेबी ने एफपीआई के लिए अन्य नियमों में कोई बदलाव नहीं किया है। वर्तमान समय में,यदि किसी एफपीआई की 50 प्रतिशत से अधिक इक्विटी एयूएम (एसेट्स अंडर मैनेजमेंट) एक ही कॉर्पोरेट समूह में केंद्रित हैं,तो उन्हें अतिरिक्त डिस्क्लोजर देने की आवश्यकता होगी। यह नियम निवेशकों के लिए पारदर्शिता बनाए रखने और किसी भी प्रकार के निवेश दुरुपयोग को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है।
सेबी के चेयरपर्सन तुहिन कांता पांडे ने इन नियमों में बदलाव के संबंध में सवालों का जवाब देते हुए स्पष्ट किया कि सार्वजनिक और सॉवरेन फंड जैसे कई फंड्स पहले से ही इन अतिरिक्त डिस्क्लोजर से छूट प्राप्त हैं। इसके अलावा,सेबी ने कैटेगरी II के अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड्स (एआईएफ) के नियमों में भी बदलाव का ऐलान किया है।
इस नए नियम से भारतीय शेयर बाजार में एफपीआई की गतिविधियों पर निगरानी बढ़ेगी,जिससे निवेशकों को और अधिक सुरक्षा मिलेगी। यह कदम सेबी द्वारा वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखने और संभावित धन-शोधन गतिविधियों को रोकने के लिए उठाया गया है। इस तरह की पारदर्शिता से न केवल बाजार के विश्वास में वृद्धि होगी,बल्कि निवेशकों को भी यह विश्वास होगा कि उनके निवेश सुरक्षित हैं और उनका सही उपयोग हो रहा है।
इस फैसले से बाजार में एफपीआई के निवेश का और अधिक महत्व बढ़ेगा और इससे भारतीय वित्तीय बाजारों की स्थिरता और विकास को भी बढ़ावा मिलेगा। भारत में एफपीआई निवेशकों की संख्या और निवेश का आकार तेजी से बढ़ रहा है और सेबी द्वारा की गई यह पहल बाजार की निगरानी और पारदर्शिता को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण कदम है।
