नेपाल प्रदर्शन (तस्वीर क्रेडिट@shobhit456)

नेपाल में सोशल मीडिया बैन पर बढ़ते प्रदर्शनों के बीच राजनीतिक संकट गहराया,मंत्रियों के इस्तीफों से सरकार पर दबाव

काठमांडू,9 सितंबर (युआईटीवी)- नेपाल में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगे प्रतिबंध के विरोध में छिड़ा आंदोलन धीरे-धीरे गहराते राजनीतिक संकट में बदलता जा रहा है। राजधानी काठमांडू और अन्य शहरों में हुए हिंसक प्रदर्शनों में 19 लोगों की मौत और सैकड़ों के घायल होने के बाद सरकार लगातार आलोचना के घेरे में है। इस विरोध की लपटें अब सरकार के भीतर भी महसूस की जा रही हैं। मंगलवार को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के मंत्रिमंडल के एक और मंत्री ने इस्तीफा देकर सरकार की मुश्किलें बढ़ा दीं। कृषि और पशुपालन विकास मंत्री रामनाथ अधिकारी ने अपने पद से इस्तीफे की घोषणा की और इसे जनता की पीड़ा के साथ खड़े होने का कदम बताया। इससे पहले गृह मंत्री रमेश लेखक ने भी इस्तीफा दे दिया था। इन दोनों इस्तीफों ने यह संकेत दिया है कि ओली सरकार की पकड़ ढीली पड़ रही है और मंत्रिपरिषद के भीतर असंतोष पनप रहा है।

रामनाथ अधिकारी ने अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए कहा कि हिंसा और पुलिस की कठोर कार्रवाई ने पूरे देश को गहरे संकट में डाल दिया है। उन्होंने अपने बयान में यह सवाल उठाया कि क्या मौजूदा सरकार लोकतांत्रिक व्यवस्था से हटकर अधिनायकवाद की ओर बढ़ रही है। अधिकारी का यह बयान न केवल सरकार की नीतियों की आलोचना है,बल्कि जनता के बीच फैलते अविश्वास का भी प्रतिबिंब है। गृह मंत्री रमेश लेखक के इस्तीफे के बाद कृषि मंत्री का पद छोड़ना इस बात का संकेत है कि मंत्रिमंडल के भीतर भी सरकार की कार्यशैली को लेकर गंभीर मतभेद हैं।

सोमवार को हुए प्रदर्शनों ने नेपाल की सियासत को हिला दिया। ‘जेन-जी’ के नाम से मशहूर युवा आंदोलनकारियों ने सोशल मीडिया बैन के खिलाफ संसद भवन की ओर कूच किया था। शुरुआत में शांतिपूर्ण दिखने वाले इन प्रदर्शनों ने अचानक हिंसक रूप ले लिया। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी संपत्तियों पर हमला किया,वाहनों को आग के हवाले किया और कई इलाकों में तोड़फोड़ की। पुलिस ने स्थिति को सँभालने के लिए पहले आँसू गैस और लाठीचार्ज का सहारा लिया,लेकिन हालात बिगड़ने पर फायरिंग करनी पड़ी। गोलीबारी में 19 लोगों की मौत हो गई और 300 से अधिक लोग घायल हुए। इनमें कई की हालत गंभीर बताई जा रही है।

मंगलवार को भी राजधानी काठमांडू के विभिन्न हिस्सों में छिटपुट विरोध प्रदर्शन देखने को मिले। हालाँकि,प्रशासन ने सख्ती बरतते हुए बड़ी सभाओं और जुलूसों पर रोक लगा दी है। गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले तीन जिला प्रशासन कार्यालयों—काठमांडू,ललितपुर और भक्तपुर ने अलग-अलग नोटिस जारी कर कई इलाकों में कर्फ्यू लागू कर दिया है। काठमांडू जिला प्रशासन ने राजधानी महानगरपालिका क्षेत्र में मंगलवार सुबह 8:30 बजे से अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू लगाया। इस आदेश में साफ कहा गया है कि इस दौरान आवाजाही,प्रदर्शन,सभाएँ और धरने पर प्रतिबंध रहेगा। हालाँकि,आवश्यक सेवाओं जैसे एम्बुलेंस,अग्निशमन,शव वाहन,स्वास्थ्यकर्मी,पत्रकार,पर्यटक वाहन,हवाई यात्री और राजनयिक मिशनों से जुड़े वाहनों को कर्फ्यू से छूट दी गई है।

इसी तरह,ललितपुर जिले में भी जिला प्रशासनिक अधिकारी ने नोटिस जारी करते हुए कई स्थानों पर कर्फ्यू लगाया है। नोटिस में कहा गया कि विभिन्न संगठनों के प्रदर्शनों के चलते हिंसा,दंगे और अशांति की आशंका है,इसलिए सार्वजनिक शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभाएँ,रैलियाँ,जुलूस और सामूहिक गतिविधियाँ प्रतिबंधित की जाती हैं। भक्तपुर जिले में भी इसी तरह का आदेश जारी कर प्रशासन ने विरोध-प्रदर्शन और सभाओं पर रोक लगा दी है।

इन कड़े कदमों के बावजूद लोग सोशल मीडिया के जरिए सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं। ट्विटर,फेसबुक और अन्य मंचों पर प्रधानमंत्री ओली की सरकार को ‘हत्यारी सरकार’ कहा जा रहा है। आंदोलनकारियों का कहना है कि यह केवल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन का मुद्दा नहीं है,बल्कि यह भ्रष्टाचार,बेरोजगारी और सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति के खिलाफ युवाओं की आवाज है। उनका आरोप है कि ओली सरकार जनता की आवाज दबाने के लिए लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला कर रही है।

वहीं,प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सोमवार देर रात एक बयान जारी कर स्थिति पर सफाई दी। उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शनों के दौरान अवांछित समूहों ने घुसपैठ कर ली थी,जिसके कारण हिंसा और जानमाल की हानि हुई। ओली ने यह भी कहा कि सरकार शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार का सम्मान करती है,लेकिन हिंसा और अराजकता किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हालाँकि,विपक्षी दलों और आंदोलनकारियों ने इस बयान को खारिज करते हुए इसे जिम्मेदारी से बचने की कोशिश बताया है।

नेपाल इस समय जिस संकट से गुजर रहा है,उसने लोकतंत्र की मजबूती पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सोशल मीडिया बैन को लेकर भड़के प्रदर्शनों ने यह साफ कर दिया है कि जनता और सरकार के बीच गहरा अविश्वास पैदा हो चुका है। युवाओं के इस आंदोलन ने न केवल ओली सरकार की नींव को हिलाया है,बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र को चुनौती दी है। लगातार हो रहे इस्तीफों से यह साफ झलकने लगा है कि सरकार के भीतर भी एकता नहीं है और मंत्रियों का असंतोष धीरे-धीरे सतह पर आ रहा है।

फिलहाल, काठमांडू समेत कई जिलों में कर्फ्यू लागू है और सेना को तैनात किया गया है,लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल बल प्रयोग और कर्फ्यू लगाकर सरकार इस संकट से उबर पाएगी या फिर उसे जनता के साथ संवाद का रास्ता अपनाना होगा। नेपाल में बढ़ता राजनीतिक अस्थिरता का माहौल इस ओर इशारा करता है कि अगर सरकार ने जल्द ही ठोस पहल नहीं की,तो स्थिति और गंभीर हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी नेपाल में हो रही हिंसा और सरकार की कठोर प्रतिक्रिया की आलोचना हो रही है। संयुक्त राष्ट्र और कई देशों ने सरकार से संयम बरतने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करने की अपील की है।

नेपाल का यह संकट लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। आने वाले दिनों में यह आंदोलन किस दिशा में जाएगा,यह सरकार की नीतियों और जनता के धैर्य पर निर्भर करेगा,लेकिन इतना तय है कि मौजूदा हालात ने ओली सरकार के सामने एक गहरी राजनीतिक चुनौती खड़ी कर दी है,जिसका समाधान आसान नहीं होगा।