काठमांडू,9 सितंबर (युआईटीवी)- नेपाल इस समय एक गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है। राजधानी काठमांडू और देश के अन्य प्रमुख शहरों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया है। इन प्रदर्शनों में अब तक कम-से-कम 20 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से अधिक लोग घायल हुए हैं। हालात बिगड़ने पर सरकार को राजधानी सहित कई जिलों में कर्फ्यू लगाने और सेना तैनात करने का निर्णय लेना पड़ा है।
यह आंदोलन मुख्य रूप से नेपाल के युवाओं,विशेषकर ‘जेन जी’ से जुड़े वर्ग का है। युवाओं का कहना है कि यह लड़ाई सिर्फ फेसबुक,इंस्टाग्राम या यूट्यूब के बैन तक सीमित नहीं है,बल्कि यह भ्रष्टाचार,बेरोजगारी और सरकार की कथित तानाशाही प्रवृत्ति के खिलाफ भी है। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार जनता की आवाज दबाने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला कर रही है।
सरकार ने 4 सितंबर को फेसबुक,इंस्टाग्राम,यूट्यूब और एक्स (पूर्व ट्विटर) समेत कुल 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। सरकार का तर्क है कि ये कंपनियाँ नेपाल में अनिवार्य पंजीकरण कराने में विफल रही हैं और इन माध्यमों का इस्तेमाल फर्जी खातों से देश विरोधी गतिविधियों के लिए किया जा रहा था,लेकिन इस फैसले को आम जनता,खासकर युवाओं ने अस्वीकार कर दिया और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया।
काठमांडू के मैतीघर मंडला,बनेश्वर और सिंहदरबार इलाकों में हजारों युवा सड़कों पर उतरे। शुरुआत में ये प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे,लेकिन सोमवार को स्थिति अचानक हिंसक हो गई। भीड़ ने संसद भवन की ओर कूच किया और वहाँ तोड़फोड़ तथा आगजनी की। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज और आँसू गैस के गोले दागे,लेकिन जब हालात काबू से बाहर हो गए,तो सुरक्षा बलों ने फायरिंग की,जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए।
हिंसा की लपटें सिर्फ काठमांडू तक सीमित नहीं रहीं। धीरे-धीरे यह आंदोलन पोखरा, दमक,चितवन और रूपंदेही जैसे शहरों तक फैल गया। कई जगहों पर सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया गया,वाहनों में आग लगा दी गई और सरकारी दफ्तरों पर पथराव हुआ। हालात बिगड़ने पर काठमांडू जिला प्रशासन ने संसद भवन,राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास के आसपास कर्फ्यू लगा दिया। कई शहरों में सेना को भी तैनात किया गया है।
घायलों का इलाज काठमांडू मेडिकल कॉलेज और एवरेस्ट हॉस्पिटल में किया जा रहा है। अस्पताल सूत्रों के मुताबिक घायलों में कई की हालत गंभीर है और मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
नेपाल में बिगड़ते हालात को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता व्यक्त की गई है। ऑस्ट्रेलिया,फिनलैंड,फ्रांस,जापान,कोरिया गणराज्य,यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के दूतावासों ने एक संयुक्त बयान जारी करते हुए नेपाल में हुई हिंसा पर गहरा दुख जताया है। इस बयान में कहा गया है कि प्रदर्शन के दौरान हुई जानमाल की हानि दुर्भाग्यपूर्ण है। दूतावासों ने पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की और सभी पक्षों से संयम बरतने तथा हिंसा रोकने की अपील की।
इस संयुक्त बयान को नॉर्वे और जर्मनी के दूतावासों ने भी समर्थन दिया है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र ने भी नेपाल में हुई हिंसा की निंदा की है और सरकार से अपील की है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सभा के अधिकारों का सम्मान किया जाए।
नेपाल की राजनीतिक स्थिरता पहले से ही कई चुनौतियों का सामना कर रही है। देश की जनता लंबे समय से भ्रष्टाचार,राजनीतिक अस्थिरता और रोजगार के अवसरों की कमी से जूझ रही है। ऐसे में सोशल मीडिया बैन जैसे कदम ने युवाओं के गुस्से को और भड़का दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल सरकार को अब सिर्फ बल प्रयोग के बजाय संवाद का रास्ता अपनाना होगा,क्योंकि अगर आंदोलन और व्यापक हुआ तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।
जनता का आक्रोश यह संकेत देता है कि नेपाल में अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर लोगों की संवेदनशीलता गहरी है। खासकर नई पीढ़ी सोशल मीडिया को अपनी आवाज और स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण साधन मानती है। ऐसे में इस प्रतिबंध ने युवाओं को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है।
फिलहाल हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। सुरक्षा एजेंसियाँ राजधानी और अन्य प्रभावित शहरों में सख्त निगरानी कर रही हैं। हालाँकि,सवाल यह है कि क्या सरकार कठोर कदमों के जरिए स्थिति को नियंत्रित कर पाएगी या फिर युवाओं की माँगों पर गंभीरता से विचार करने के लिए तैयार होगी। नेपाल में चल रहा यह संकट न केवल देश के भीतर,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस को तेज कर रहा है।

