यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (तस्वीर क्रेडिट@BBCHindi)

यूक्रेन संकट के समाधान के लिए जेलेंस्की तैयार,60 दिन के सीजफायर पर जनमत-संग्रह का संकेत

वाशिंगटन,27 दिसंबर (युआईटीवी)- रूस और यूक्रेन के बीच लगभग चार साल से जारी युद्ध में अब एक ऐसा संकेत उभरा है,जिसने शांति बहाली की संभावनाओं को नई दिशा दी है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने स्पष्ट कहा है कि यदि रूस कम से कम 60 दिनों के लिए युद्धविराम पर सहमत हो जाता है,तो वे देश में एक व्यापक शांति योजना पर जनमत-संग्रह कराने के लिए तैयार हैं। यह बयान ऐसे समय आया है,जब लगातार सैन्य तनाव,जानमाल का नुकसान और वैश्विक राजनीतिक दबाव,सभी मिलकर युद्ध को समाप्त करने के लिए नई पहल की माँग कर रहे हैं।

जेलेंस्की ने अमेरिकी मीडिया संस्थान एक्सियोस को दिए एक फोन इंटरव्यू में बताया कि वे अब भी बातचीत और कूटनीतिक रास्ते को सर्वोत्तम विकल्प मानते हैं,लेकिन उनका कहना था कि यदि शांति योजना पर कुछ “बहुत कठिन” निर्णय लेने की नौबत आती है,तो इसे पूरे देश की राय के सामने रखा जाना चाहिए। इसी दृष्टि से उन्होंने 20-बिंदुओं वाली प्रस्तावित शांति योजना को जनमत-संग्रह के लिए रखने की संभावना जताई। उनके अनुसार,इस प्रक्रिया के लिए शांतिपूर्ण माहौल अनिवार्य है और कम-से-कम 60 दिनों का युद्धविराम इसलिए जरूरी होगा,क्योंकि ऐसे जनमत-संग्रह में सुरक्षा,राजनीतिक प्रक्रियाओं और लॉजिस्टिक्स से जुड़े बड़े-बड़े सवाल सामने आते हैं।

यूक्रेन के राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि उनका विश्वास है कि आने वाले दिनों में कूटनीतिक मोर्चे पर कुछ ठोस प्रगति हो सकती है। उन्होंने बताया कि वे अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा में जल्द ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात करने वाले हैं,जहाँ युद्ध को खत्म करने के लिए एक संभावित फ्रेमवर्क पर चर्चा होगी। जेलेंस्की की यह टिप्पणी उस व्यापक प्रयास का हिस्सा मानी जा रही है,जिसमें अमेरिका,यूरोपीय देश और यूक्रेन मिलकर एक ऐसा समाधान तलाशना चाहते हैं,जो लंबे समय तक टिकाऊ हो।

जेलेंस्की के मुताबिक,अमेरिका और यूक्रेन के बीच द्विपक्षीय समझौतों के कई अहम पहलू लगभग तय हो चुके हैं। इन समझौतों को पाँच आधिकारिक दस्तावेजों में दर्ज किया गया है और भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर एक छठा दस्तावेज भी जोड़ा जा सकता है। इन दस्तावेजों का मुख्य उद्देश्य युद्ध के बाद सुरक्षा ढाँचे को मजबूत करना,आर्थिक सहयोग को दिशा देना और यूक्रेन के पुनर्निर्माण में अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को औपचारिक रूप देना है।

विशेष रूप से सुरक्षा गारंटियों के संदर्भ में उन्होंने बताया कि अमेरिकी प्रशासन 15 वर्ष की अवधि वाले समझौते का प्रस्ताव दे रहा है,जिसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। हालाँकि,जेलेंस्की का मानना है कि यूक्रेन की भौगोलिक और सामरिक चुनौतियों को देखते हुए इतनी लंबी लड़ाई के बाद देश को इससे अधिक अवधि की सुरक्षा छतरी की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की विधायिकाएँ इन समझौतों पर अपनी-अपनी मंजूरी देंगी,ताकि इन्हें कानूनी और संवैधानिक आधार मिल सके।

रिपोर्टों में यह भी सामने आया है कि जेलेंस्की,डोनाल्ड ट्रंप और कई यूरोपीय नेताओं के साथ एक संयुक्त कॉन्फ्रेंस कॉल करने वाले हैं। इस कॉल के दौरान अब तक चली वार्ताओं और प्रस्तावों पर समन्वय स्थापित करने के साथ-साथ आगे की रणनीति पर भी चर्चा होगी। इससे संकेत मिलता है कि यूक्रेन संकट अब केवल दो देशों का मुद्दा नहीं रह गया है,बल्कि यह व्यापक अंतर्राष्ट्रीय चर्चा और सहभागिता का केंद्र बन चुका है।

इस बीच,डोनाल्ड ट्रंप का हालिया बयान भी सुर्खियों में रहा,जिसमें उन्होंने कहा कि यूक्रेन के राष्ट्रपति के पास “तब तक कुछ नहीं होगा जब तक मैं उसे मंजूरी न दूँ।” यह बयान आने वाली बैठक से ठीक पहले दिया गया और इसे वार्ता के दौरान अमेरिका की भूमिका और प्रभाव के संदर्भ में देखा जा रहा है। ट्रंप पहले भी कई बार संकेत दे चुके हैं कि यदि शांति योजना में सभी पक्षों के हितों का संतुलन बैठाया जाए,तो वे समाधान की दिशा में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

जेलेंस्की का प्रस्ताव जितना महत्वपूर्ण है,उतना ही जटिल भी माना जा रहा है। युद्ध की पृष्ठभूमि,कब्जे वाले क्षेत्रों का मुद्दा,सुरक्षा गारंटी और भविष्य के राजनीतिक ढाँचे जैसे कई प्रश्न हैं,जिन पर एक साथ सहमति बनाना आसान नहीं होगा। इसके बावजूद,जनमत-संग्रह की अवधारणा यूक्रेन में लोकतांत्रिक वैधता को मजबूत कर सकती है। यदि जनता शांति योजना का समर्थन करती है,तो सरकार के पास आगे बढ़ने का अधिक ठोस जनादेश होगा और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए भी यह संकेत होगा कि यूक्रेन की जनता युद्ध की समाप्ति चाहती है।

दूसरी ओर,रूस का रुख अभी स्पष्ट नहीं है। क्या मॉस्को 60 दिनों के युद्धविराम के प्रस्ताव को स्वीकार करेगा,यह बड़ा सवाल है। अब तक के अनुभव बताते हैं कि कई बार युद्धविराम की कोशिशें सीमित समय के लिए ही सफल हो पाई हैं,लेकिन अगर इस बार प्रस्ताव राजनीतिक समाधान के समांतर रखा जाता है,तो इससे बातचीत की मेज पर लौटने की संभावना बढ़ सकती है।

यूक्रेन के भीतर भी इस प्रस्ताव पर मतभेद उभर सकते हैं। कुछ समूह कठोर रुख अपनाने के पक्ष में हैं और उनका मानना है कि रियायतें देना भविष्य में खतरनाक साबित हो सकता है। वहीं,एक बड़ा तबका यह भी मानता है कि निरंतर युद्ध से अर्थव्यवस्था,सामाजिक ताने-बाने और सुरक्षा ढाँचे पर भारी दबाव पड़ा है और शांति की दिशा में हर व्यवहार्य प्रयास को मौका दिया जाना चाहिए।

जेलेंस्की का यह संकेत यूक्रेन युद्ध में एक अहम मोड़ साबित हो सकता है। 60 दिनों के संभावित युद्धविराम और उसके बाद जनमत-संग्रह की योजना ने शांति बहाली की बहस को फिर से जीवित कर दिया है। आने वाले हफ्तों में ट्रंप के साथ मुलाकात,यूरोपीय नेताओं के साथ बातचीत और रूस की प्रतिक्रिया—ये सभी कारक तय करेंगे कि क्या यह पहल वास्तविक समाधान का रास्ता खोल पाएगी या फिर युद्ध की आग पहले की तरह भड़कती रहेगी। फिलहाल इतना जरूर है कि दुनिया भर की निगाहें यूक्रेन की इस नई कूटनीतिक पहल और उसके संभावित परिणामों पर टिकी हुई हैं।