नई दिल्ली,29 अक्टूबर (युआईटीवी)- लद्दाख के जाने-माने जलवायु कार्यकर्ता और शिक्षाविद सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत की गई नजरबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को अहम सुनवाई होने जा रही है। यह मामला वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे अंगमो द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है,जिसमें उन्होंने अपने पति की नजरबंदी की वैधता और अधिकारियों द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
इस याचिका में कहा गया है कि लद्दाख प्रशासन ने एनएसए की धारा 8 के तहत आवश्यक प्रक्रिया का पालन नहीं किया है,जिसके अनुसार किसी भी बंदी को एक निश्चित अवधि के भीतर उसकी हिरासत के कारणों की जानकारी देना अनिवार्य होता है। गीतांजलि अंगमो का दावा है कि सोनम वांगचुक को कानूनी रूप से निर्धारित समय सीमा के भीतर उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की जानकारी नहीं दी गई,जिससे उनकी हिरासत अवैध मानी जानी चाहिए।
हालाँकि,लेह प्रशासन ने इस दावे को खारिज किया है। जिला मजिस्ट्रेट रोमिल सिंह डोंक की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है कि सोनम वांगचुक को नियमानुसार निर्धारित समय के भीतर उनके खिलाफ की गई कार्रवाई के कारणों से विधिवत अवगत करा दिया गया था। प्रशासन ने यह भी कहा कि वांगचुक की गिरफ्तारी राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में की गई है,क्योंकि उनकी गतिविधियों से क्षेत्र में अस्थिरता और शांति भंग होने की संभावना थी।
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहले भी सूचीबद्ध हो चुका है। इस महीने की शुरुआत में न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और एनवी अंजारिया की पीठ ने अंगमो को अपनी रिट याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी थी। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल,जो गीतांजलि अंगमो की ओर से अदालत में पेश हुए,ने बताया कि केंद्र सरकार ने हाल ही में वांगचुक की हिरासत के कारणों का विवरण प्रस्तुत किया है। ऐसे में याचिका में उन नए तथ्यों को शामिल करना आवश्यक हो गया है। अदालत ने सिब्बल की दलील स्वीकार करते हुए उन्हें संशोधन की अनुमति दी और अगली सुनवाई की तारीख आज यानी बुधवार तय कर दी।
कपिल सिब्बल ने पहले की सुनवाई में यह भी तर्क दिया था कि सोनम वांगचुक की हिरासत संविधान के अनुच्छेद 21 — “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार” का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि एक पर्यावरण कार्यकर्ता को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हिरासत में रखना न केवल लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है,बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी हमला है।
उधर,लेह प्रशासन का कहना है कि वांगचुक की गतिविधियाँ हाल के महीनों में तेजी से राजनीतिक रूप ले चुकी थीं। प्रशासन ने आरोप लगाया है कि वांगचुक की सभाओं और बयानों से क्षेत्र में अशांति फैलने की संभावना थी,जिसके चलते कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया गया। प्रशासन ने दावा किया कि उनकी नजरबंदी एनएसए की धारा 3(2) के तहत पूरी तरह से वैध है।
इस बीच,वांगचुक की हिरासत की समीक्षा करने के लिए गठित सलाहकार बोर्ड ने हाल ही में अपनी बैठक राजस्थान के जोधपुर सेंट्रल जेल में आयोजित की। इस तीन सदस्यीय पैनल में पूर्व न्यायाधीश एम.के. हुजुरा (अध्यक्ष),जिला न्यायाधीश मनोज परिहार और सामाजिक कार्यकर्ता स्पल जयेश अंगमो शामिल थे। इस बैठक में वांगचुक स्वयं उपस्थित रहे,जबकि उनकी पत्नी गीतांजलि अंगमो को भी बोलने का अवसर दिया गया। करीब तीन घंटे तक चली इस बंद कमरे की कार्यवाही के दौरान प्रशासन और वांगचुक दोनों पक्षों की दलीलें सुनी गईं।
बैठक का मुख्य केंद्र प्रशासन द्वारा एनएसए लगाने के औचित्य और वांगचुक की ओर से दायर प्रतिनिधित्व रहा,जिसमें उनकी हिरासत को मनमाना और अनुचित बताया गया। बताया जा रहा है कि वांगचुक ने अपने बयान में कहा कि वे हमेशा से शांतिपूर्ण और पर्यावरणीय गतिविधियों में शामिल रहे हैं और उनकी किसी भी पहल का उद्देश्य सरकार या राष्ट्र की स्थिरता को चुनौती देना नहीं था।
गौरतलब है कि सोनम वांगचुक,जो लद्दाख में शिक्षा सुधारों और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपने अभियानों के लिए जाने जाते हैं,को कुछ सप्ताह पहले एनएसए के तहत हिरासत में लिया गया था। उनकी गिरफ्तारी के बाद पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। नागरिक अधिकार संगठनों,शिक्षाविदों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस कदम की कड़ी आलोचना करते हुए इसे “लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ” बताया था। कई संगठनों ने इसे “राजनीतिक असहमति को दबाने की कोशिश” करार दिया।
वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद से सोशल मीडिया पर भी लोगों ने सरकार के कदम पर सवाल उठाए। देशभर के छात्रों और पर्यावरण प्रेमियों ने उनके समर्थन में #स्टैंड विथ सोनम वांगचुक अभियान चलाया। कई लोगों ने कहा कि जलवायु संकट से लड़ने वाले व्यक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताना “लोकतंत्र का मजाक” है।
इस पूरे घटनाक्रम ने लद्दाख की राजनीति को भी गर्मा दिया है। स्थानीय संगठनों ने केंद्र सरकार से इस कार्रवाई की समीक्षा करने और वांगचुक की तुरंत रिहाई की माँग की है। वहीं,सरकार का कहना है कि वांगचुक की गतिविधियों से राष्ट्रीय हितों को खतरा पैदा हुआ था,इसलिए एनएसए के तहत कार्रवाई उचित थी।
अब सुप्रीम कोर्ट में आज होने वाली सुनवाई पर सबकी निगाहें टिकी हैं। न्यायालय इस बात पर विचार करेगा कि क्या सोनम वांगचुक की नजरबंदी कानून के अनुरूप की गई है या यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। अदालत का यह फैसला न केवल वांगचुक के भविष्य के लिए अहम होगा,बल्कि यह भी तय करेगा कि भारत में पर्यावरण और सामाजिक आंदोलनों की सीमाएँ आखिर कहाँ तक तय की जा सकती हैं।

