दक्षिण कोरिया के अपदस्थ राष्ट्रपति यून सुक योल (तस्वीर क्रेडिट@Satyakam01)

दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति यून सूक येओल विद्रोह के मुकदमे की छठी सुनवाई में सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में मौजूद रहे

सोल,9 जून (युआईटीवी)- दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति यून सूक येओल पर चल रहे विद्रोह के मुकदमे की छठी सुनवाई सोमवार को सोल सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में आयोजित की गई। इस दौरान यून पहली बार 3 जून को राष्ट्रपति चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद सार्वजनिक रूप से सामने आए। कोर्ट में प्रवेश करते समय वे पत्रकारों के बीच से गुजरे,लेकिन उनसे किए गए किसी भी सवाल का उन्होंने जवाब नहीं दिया।

योनहाप समाचार एजेंसी के अनुसार,पत्रकारों ने यून से नेशनल असेंबली द्वारा पारित विशेष वकील विधेयक,जो कि उन्हें और उनकी पत्नी किम किऑन ही को निशाना बनाने के उद्देश्य से लाया गया है,के बारे में सवाल किए,लेकिन यून इन सवालों को नजरअंदाज करते हुए बिना किसी प्रतिक्रिया के आगे बढ़ गए।

पूर्व राष्ट्रपति यून सूक येओल पर गंभीर आरोप हैं। उन पर अपने कार्यकाल के दौरान विद्रोह भड़काने,संविधान विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने और मार्शल लॉ लगाकर सत्ता का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया है। आरोप है कि उन्होंने दिसंबर 2024 में देश में छह घंटे के लिए मार्शल लॉ लगाया,जिसके जरिए उन्होंने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बाधित करने की कोशिश की।

यह घटना 3 दिसंबर 2024 को घटी,जब अचानक देश में सैन्य नियंत्रण लागू किया गया और संविधानिक संस्थाओं को बाधित करने की कोशिश हुई। इस फैसले के बाद देश में भारी राजनीतिक उथल-पुथल मच गई और यून के खिलाफ महाभियोग चलाया गया। इसके चलते उन्हें राष्ट्रपति पद से हटा दिया गया।

यून की बर्खास्तगी के बाद देश में राष्ट्रपति चुनाव आयोजित हुए। इस चुनाव में ली जे-म्यांग ने बहुमत से जीत हासिल की और नए राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया। यून की सत्ता से बेदखली के बाद देश में लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की दिशा में एक नई शुरुआत हुई।

इस मुकदमे में एक महत्वपूर्ण गवाह प्रथम एयरबोर्न स्पेशल फोर्स ब्रिगेड के पूर्व प्रमुख ली सांग-ह्यून हैं। उन्हें लगातार दूसरी बार अदालत में गवाह के रूप में बुलाया गया। पिछले सत्र में ली सांग-ह्यून ने उस दिन की घटनाओं का विस्तार से जिक्र किया,जब मार्शल लॉ लागू किया गया था।

ली सांग-ह्यून के अनुसार,यून ने सेना के विशेष युद्ध कमान के प्रमुख को नेशनल असेंबली भवन में घुसकर सांसदों को बाहर निकालने का निर्देश दिया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि यून ने असेंबली का दरवाजा तोड़कर जबरन घुसने का आदेश दिया था,ताकि वे सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रख सकें और संसद की कार्यवाही को बाधित कर सकें।

अगर अदालत में यह साबित हो जाता है कि यून ने जानबूझकर विद्रोह की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया,तो उन्हें बहुत कड़ी सजा का सामना करना पड़ सकता है। दक्षिण कोरिया के कानूनों के अनुसार,विद्रोह भड़काने के दोषी व्यक्ति को अधिकतम आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक की सजा दी जा सकती है।

यून के खिलाफ चल रही सुनवाई केवल एक पूर्व राष्ट्रपति के कानूनी संकट की कहानी नहीं है,बल्कि यह दक्षिण कोरिया के संवैधानिक इतिहास में एक बेहद गंभीर और संवेदनशील मामला बन गया है। यह मुकदमा न केवल राजनीति में सत्ता और सैन्य हस्तक्षेप की सीमाओं को रेखांकित करता है,बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने वाले किसी भी प्रयास को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

पूर्व राष्ट्रपति यून सूक येओल पर चल रहा यह मुकदमा दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों के लिए एक परीक्षा बन चुका है। एक निर्वाचित राष्ट्रपति द्वारा सत्ता में बने रहने के लिए मार्शल लॉ और सेना के बल प्रयोग का सहारा लेना न केवल चिंताजनक है,बल्कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा भी है। यून की चुप्पी,गवाहों की गवाही और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ इस केस को और भी पेचीदा बना रही हैं। अब अदालत की अगली सुनवाई और फैसले पर सभी की निगाहें टिकी हैं,जिससे यह तय होगा कि देश का संविधान और कानून कितना मजबूत और निष्पक्ष है।