नई दिल्ली, 2 सितम्बर (युआईटीवी/आईएएनएस)- अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के खिलाफ कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ उनके बयान के लिए अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है। दिल्ली के वकील विनीत जिंदल के अनुरोध का जवाब देते हुए, अटॉर्नी जनरल ने एक पत्र में कहा, “सिब्बल के पूरे भाषण को पढ़ने के बाद, मैंने पाया कि अदालत और फैसलों की उनकी आलोचना इसलिए थी ताकि अदालत इस पर ध्यान दे सके। मुझे ऐसा नहीं लगता है कि बयानों का उद्देश्य अदालत को बदनाम करना या संस्था में जनता के विश्वास को प्रभावित करना था।”
सहमति से इनकार करते हुए, वेणुगोपाल ने कहा: “सुप्रीम कोर्ट में विश्वास की हानि से संबंधित बयान अवमानना नहीं है, क्योंकि उन बयानों का तथ्य यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश जमीन पर लागू नहीं होते हैं। इन बयानों का कोई भी हिस्सा अदालत पर कोई दोष या आरोप नहीं लगाता है।”
इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कुछ निर्णयों की आलोचना से संबंधित बयान पूरी तरह से ‘निष्पक्ष टिप्पणी’ के दायरे में आते हैं, जो कि न्यायालय की अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 5 के तहत स्वीकार्य है।
12 जनवरी, 2018 को सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का जिक्र करते हुए वेणुगोपाल ने कहा कि उन्होंने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा द्वारा मामलों के आवंटन के संबंध में भी यही विचार व्यक्त किए थे, और ऐसे उदाहरण हैं जहां मामलों के दूरगामी परिणाम हैं।
एजी को लिखे अपने पत्र में, जिंदल ने आरोप लगाया था कि कपिल सिब्बल .. ने हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीशों को अपमानित करने और बदनाम करने के इरादे से सीधे आरोप लगाए हैं।