सोनाक्षी सिन्हा

सुप्रीम कोर्ट के दिल्ली-एनसीआर से आवारा कुत्तों को हटाने के निर्णय पर बॉलीवुड और टीवी सितारों ने नाराजगी जाहिर की

मुंबई,13 अगस्त (युआईटीवी)- सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को शेल्टर (आश्रय स्थल) में भेजने का आदेश दिया है। इस फैसले का मकसद जहाँ आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना बताया जा रहा है,वहीं इस पर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। खासकर फिल्म और टीवी जगत के कई सितारों ने इस निर्णय पर खुलकर नाराजगी जाहिर की है और इसे अमानवीय करार दिया है। उनका कहना है कि यह कदम न केवल आवारा कुत्तों के लिए अनुचित है,बल्कि यह हमारी संस्कृति और परंपराओं के खिलाफ भी है।

दिग्गज अभिनेत्री जीनत अमान ने इस मुद्दे पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने इंस्टाग्राम स्टोरीज पर एक नोट साझा करते हुए लिखा, “दिल्ली में आवारा कुत्तों को हटाने की खबर सुनकर दुख हुआ। मैं दुनिया भर के पशु प्रेमियों के साथ मिलकर इस मुद्दे पर मानवीय,तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की माँग करती हूँ।” उनके इस बयान से स्पष्ट है कि वे इसे केवल कानूनी या प्रशासनिक फैसला नहीं,बल्कि एक मानवीय संवेदनाओं से जुड़ा मुद्दा मानती हैं।

अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा ने भी इस फैसले पर निराशा जताई। उन्होंने कहा, “हम दिन-ब-दिन दिखा रहे हैं कि हमारा समाज कितना बेरहम होता जा रहा है। हर दिन निराशा ही मिलती है।” सोनाक्षी का यह बयान न केवल फैसले के विरोध में है,बल्कि यह समाज में बढ़ती असंवेदनशीलता की ओर भी इशारा करता है।

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में मुख्य भूमिका निभाने वाली रूपाली गांगुली ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक लंबा पोस्ट लिखा। उन्होंने भारतीय परंपराओं का जिक्र करते हुए कहा, “हमारी परंपराओं में कुत्ते भैरव बाबा के मंदिर की रखवाली करते हैं और अमावस्या के दिन इन्हें भोजन खिलाने की प्रथा है। ये कुत्ते हमारी गलियों में पलते हैं,दुकानों की रखवाली करते हैं और चोरों को भगाते हैं।” उन्होंने आगे लिखा, “उन्हें हटाना मतलब अपने रक्षकों को खोना है। उन्हें दूर शेल्टर में भेजना दया नहीं,बल्कि निर्वासन है। आवारा कुत्ते बाहरी नहीं,बल्कि हमारी संस्कृति,आस्था और सुरक्षा का हिस्सा हैं। उनकी देखभाल करें,टीकाकरण करवाएँ, भोजन दें और उन्हें उनके स्थान पर रहने दें।”

अभिनेत्री श्रिया पिलगांवकर ने आवारा कुत्तों के मुद्दे पर कहा कि दया और समझदारी साथ चलनी चाहिए। उन्होंने सुरक्षा की आवश्यकता मानते हुए स्पष्ट किया कि सभी आवारा कुत्तों को शेल्टर में भेजना न इंसानियत है और न टिकाऊ समाधान। भारत में पहले से ही पशु शेल्टर कम और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि कुत्तों को उनकी जगह से हटाने के बजाय ऐसा तंत्र विकसित किया जाना चाहिए,जिससे इंसान और जानवर सुरक्षित रूप से साथ रह सकें। श्रिया ने जोर दिया कि संतुलित दृष्टिकोण से ही इस समस्या का समाधान संभव है।

इन हस्तियों के बयानों से साफ है कि उनकी आपत्ति केवल इस बात पर नहीं है कि कुत्तों को हटाया जा रहा है,बल्कि इस फैसले के लागू होने के तरीके और इसके दीर्घकालिक परिणामों पर भी है। उनका मानना है कि इस कदम से न केवल कुत्तों के जीवन पर संकट आएगा,बल्कि यह शहरों के पारिस्थितिक संतुलन को भी प्रभावित करेगा।

पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का तर्क है कि दिल्ली-एनसीआर में पहले से ही शेल्टर होम की संख्या सीमित है और जो मौजूद हैं,वे संसाधनों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। ऐसे में हजारों कुत्तों को शेल्टर में भेजना न केवल अव्यवहारिक है,बल्कि इससे उनकी देखभाल की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी। इसके अलावा,कई शोध और उदाहरण बताते हैं कि आवारा कुत्तों को उनके इलाके से हटाने पर वहाँ जल्द ही नए कुत्तों का आगमन हो जाता है,जिससे समस्या का स्थायी समाधान नहीं होता।

इस फैसले के समर्थक इसे नागरिक सुरक्षा और बढ़ते कुत्ता हमलों की घटनाओं से जोड़कर देखते हैं। उनका कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में आवारा कुत्तों द्वारा काटे जाने के मामलों में बढ़ोतरी हुई है,जिससे न केवल बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा खतरे में पड़ी है,बल्कि इससे रेबीज जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ा है। ऐसे में अदालत का यह आदेश आम जनता के हित में है।

लेकिन,विरोध करने वाले लोग मानते हैं कि समाधान शेल्टर में भेजने की बजाय ‘कैप्चर-न्युटर-रिलीज़’ यानी पकड़ो,नसबंदी करो और वापस छोड़ो जैसी योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू करने में है। इससे कुत्तों की आबादी को नियंत्रित किया जा सकता है और वे अपने परिचित माहौल में सुरक्षित रह सकते हैं।

सोशल मीडिया पर यह बहस लगातार गर्म होती जा रही है। जहाँ एक ओर आम लोग सुरक्षा के तर्क दे रहे हैं,वहीं दूसरी ओर पशु प्रेमी और कई सेलिब्रिटी संवेदनशील और संतुलित समाधान की माँग कर रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में प्रशासन और अदालत इस मामले पर क्या अगला कदम उठाते हैं,क्योंकि फिलहाल यह मुद्दा केवल कानूनी नहीं,बल्कि नैतिक,सामाजिक और सांस्कृतिक बहस का भी केंद्र बन गया है।