नई दिल्ली,11 अक्टूबर (युआईटीवी)- अफगानिस्तान के विदेश मंत्री और तालिबान के वरिष्ठ नेता अमीर खान मुत्तकी के भारत दौरे के दौरान दिल्ली में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस अब विवादों के घेरे में आ गई है। विवाद की वजह यह है कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसी भी महिला पत्रकार को शामिल नहीं किया गया। जैसे ही यह खबर सामने आई,विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर तीखे हमले शुरू कर दिए। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से इस मामले में जवाब माँगा है।
प्रियंका गांधी ने इस घटना को भारत की महिलाओं का “अपमान” करार दिया और प्रधानमंत्री से सीधा सवाल किया कि क्या वह इस भेदभाव को सही मानते हैं। उन्होंने अपने आधिकारिक ‘एक्स’ हैंडल पर लिखा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,कृपया यह स्पष्ट करें कि तालिबान के प्रतिनिधि की भारत यात्रा के दौरान उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस से महिला पत्रकारों को हटाने को लेकर आपकी क्या स्थिति है?” उन्होंने आगे कहा, “अगर महिलाओं के अधिकारों को लेकर आपकी मान्यता सिर्फ एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक सीमित दिखावा नहीं है,तो फिर हमारे देश में,जहाँ महिलाएँ हमारी रीढ़ हैं,हमारी शान हैं,इतनी योग्य महिला पत्रकारों का यह अपमान कैसे होने दिया गया?”
प्रियंका गांधी के इस बयान ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है। बहुत से लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या भारत की धरती पर किसी विदेशी प्रतिनिधि को अपने भेदभावपूर्ण नियम थोपने की अनुमति दी जा सकती है। कांग्रेस नेताओं ने इसे “भारत की नारी शक्ति के सम्मान पर प्रहार” बताया है और सरकार की चुप्पी को “सहमति” करार दिया है।
वहीं दूसरी ओर,तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए एक वीडियो संदेश जारी किया। उन्होंने कहा, “मैं यह वीडियो सभी का ध्यान उस भयावह घटना की ओर आकर्षित करने के लिए जारी कर रही हूँ,जो दिल्ली में भारतीय धरती पर हुई है।” मोइत्रा ने आरोप लगाया कि तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की और उसके बाद मुत्तकी ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस की,जहाँ महिला पत्रकारों को अनुमति नहीं दी गई।
महुआ मोइत्रा ने आगे कहा, “भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस तालिबानी विदेश मंत्री के लिए लाल कालीन बिछा दिया है,जिसने उस कमरे से महिलाओं को बाहर निकालने की गुस्ताखी की है,जहाँ वह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहा था और हम इस प्रतिनिधिमंडल को आधिकारिक दर्जा दे रहे हैं और उन्हें सरकारी प्रोटोकॉल दे रहे हैं — यह शर्मनाक है।”
उन्होंने न केवल सरकार पर बल्कि उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद पत्रकारों पर भी सवाल उठाए। महुआ मोइत्रा ने कहा, “इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल हर पुरुष पत्रकार ने विरोध का एक शब्द भी नहीं कहा। क्या आप नपुंसक हो गए हैं? क्या आप रीढ़विहीन हैं? मैं उस कमरे में मौजूद सभी पत्रकारों से पूछना चाहती हूँ कि जब महिलाओं को बाहर निकाला गया,तो आपने आवाज़ क्यों नहीं उठाई?”
मोइत्रा ने इसे भारत की महिलाओं के लिए “राष्ट्रीय शर्म” बताया। उन्होंने कहा, “यह भारत की महिलाओं का घोर अपमान है कि हमारी सरकार स्वेच्छा से इसमें शामिल रही और करदाताओं के पैसे से इस पूरे कार्यक्रम को आयोजित किया गया। महिला पत्रकारों को कमरे से बाहर जाने के लिए कहा गया — आखिर भारत में यह कैसे हो सकता है?”
उन्होंने सरकार की “बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ” जैसी योजनाओं का हवाला देते हुए कहा कि यह घटना सरकार के दोहरे चरित्र को उजागर करती है। “आप एक तरफ ‘नारी शक्ति’ और ‘माँ-बहनों’ की बात करते हैं और दूसरी तरफ ऐसे लोगों के सामने झुकते हैं,जो महिलाओं को शिक्षा और आजादी से वंचित करते हैं। यह विरोधाभास नहीं,बल्कि हमारी नीति में निहित पाखंड है।”
इस घटना के बाद कई महिला पत्रकारों ने भी सोशल मीडिया पर अपनी नाराज़गी जाहिर की। कुछ ने कहा कि उन्हें उस प्रेस वार्ता के लिए निमंत्रण ही नहीं भेजा गया था। कई पत्रकारों ने लिखा कि उन्हें बाद में पता चला कि इस आयोजन में सिर्फ पुरुष पत्रकारों को बुलाया गया था। इससे यह संकेत मिलता है कि पहले से ही तालिबान की ओर से शर्त रखी गई थी कि महिला पत्रकारों को अनुमति नहीं दी जाएगी।
इस मामले में सरकार की तरफ से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालाँकि,विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने यह कहा कि यह प्रेस कॉन्फ्रेंस भारत सरकार के सहयोग से नहीं,बल्कि अफगानिस्तान के प्रतिनिधिमंडल द्वारा आयोजित की गई थी,लेकिन विपक्ष का कहना है कि चाहे आयोजनकर्ता कोई भी हो,भारत सरकार को इस तरह के भेदभाव की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी,खासकर जब यह घटना भारतीय भूमि पर हुई हो।
विपक्षी नेताओं का आरोप है कि सरकार ने विदेश नीति के नाम पर “महिलाओं के सम्मान” जैसे मूल्यों को दरकिनार कर दिया है। उनका कहना है कि तालिबान का इतिहास महिलाओं के प्रति अमानवीय व्यवहार से भरा पड़ा है और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को उनके सामने नतमस्तक नहीं होना चाहिए।
वहीं,कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों ने भी इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है। कुछ महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि भारत ने हमेशा महिलाओं के अधिकारों के लिए वैश्विक स्तर पर आवाज उठाई है,लेकिन जब अपने ही देश में ऐसी घटना होती है,तो सरकार का मौन रहना अस्वीकार्य है।
राजनीतिक हलकों में अब यह सवाल गूँज रहा है कि क्या भारत की विदेश नीति मानवाधिकार और समानता जैसे सिद्धांतों से ऊपर जा चुकी है। विपक्ष यह दावा कर रहा है कि सरकार तालिबान के प्रति कूटनीतिक नर्मी दिखा रही है,जो न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर,बल्कि घरेलू स्तर पर भी गलत संदेश भेजती है।
यह विवाद अब एक बड़ी राजनीतिक बहस में बदल गया है। यह सिर्फ महिला पत्रकारों की बात नहीं,बल्कि उस मूलभूत मूल्य की है,जिसके लिए भारत जाना जाता है: समानता, गरिमा और स्वतंत्रता। और जब यह सब भारत की राजधानी में,लोकतंत्र के केंद्र में, विदेशी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में होता है,तो सवाल केवल एक रह जाता है कि क्या भारत अपनी नारी शक्ति के सम्मान की रक्षा करने में असफल हो रहा है?
इस पूरे प्रकरण ने सरकार की छवि पर गहरा प्रभाव डाला है। आने वाले दिनों में संसद और मीडिया दोनों में यह मुद्दा और तीखा हो सकता है,लेकिन अभी के लिए, देश की हर महिला पत्रकार और नागरिक के मन में एक ही सवाल गूँज रहा है कि “क्या हमारी आवाज़ अब भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी पहले थी?”
