अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

टैरिफ नीति के बावजूद अमेरिकी व्यापार घाटा ऐतिहासिक निचले स्तर पर,ट्रंप प्रशासन ने ‘अमेरिका फर्स्ट’ को बताया मजबूती की वजह

वाशिंगटन,13 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कई देशों पर लगाए गए टैरिफ के बाद वैश्विक बाजारों में लंबे समय से यह आशंका जताई जा रही थी कि आक्रामक व्यापार नीति से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँच सकता है। आलोचकों का तर्क था कि ऊँचे टैरिफ से आयात महँगे होंगे,उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ेगा और वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता पैदा होगी,लेकिन हालिया आँकड़े इन कयासों के उलट तस्वीर पेश कर रहे हैं। अमेरिका का व्यापार घाटा 2020 के मध्य के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर आ गया है और पिछले साल की तुलना में इसमें 35 प्रतिशत से ज्यादा की कमी दर्ज की गई है। व्हाइट हाउस ने इसे राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ आधारित ट्रेड रणनीति की बड़ी सफलता बताया है।

व्हाइट हाउस की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज में कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन की सख्त व्यापार नीति के चलते अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती आई है। प्रशासन के अनुसार,निर्यात में उल्लेखनीय बढ़ोतरी,आयात में गिरावट और खासकर चीन के साथ व्यापार घाटे में आई तेज कमी ने अमेरिकी व्यापार प्रदर्शन को नई दिशा दी है। रिलीज में यह भी कहा गया कि ये आँकड़े इस बात का और प्रमाण हैं कि राष्ट्रपति का ‘अमेरिका फर्स्ट’ ट्रेड एजेंडा उन नीतियों के बाद ठोस नतीजे दे रहा है,जिनसे पहले अमेरिकी उत्पादकों और श्रमिकों को नुकसान उठाना पड़ा था।

प्रेस रिलीज के मुताबिक,अमेरिकी निर्यात में एक साल पहले की तुलना में करीब 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। महँगाई के हिसाब से समायोजित किए गए कंज्यूमर गुड्स के निर्यात को अब तक का सबसे बड़ा बताया गया है। प्रशासन का दावा है कि यह रुझान अमेरिकी उत्पादों की वैश्विक माँग में बढ़ोतरी को दर्शाता है। व्हाइट हाउस का कहना है कि टैरिफ और सख्त व्यापार शर्तों ने अमेरिकी कंपनियों को घरेलू स्तर पर उत्पादन बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धी बनने के लिए प्रेरित किया है।

इसी अवधि में चीन के साथ अमेरिका का मौसम के हिसाब से समायोजित व्यापार घाटा 2009 के बाद से अपने दूसरे सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया। ट्रंप प्रशासन ने चीन के साथ व्यापार संतुलन को अपनी आर्थिक रणनीति का एक प्रमुख स्तंभ बनाया है। प्रशासन का मानना है कि लंबे समय तक चीन के साथ असंतुलित व्यापार संबंधों ने अमेरिकी उद्योगों को कमजोर किया और नौकरियों का नुकसान हुआ। इस स्थिति को बदलने के लिए टैरिफ को एक दबाव के साधन के रूप में इस्तेमाल किया गया,ताकि बाजार तक पहुँच और व्यापार प्रथाओं में बदलाव लाया जा सके।

व्हाइट हाउस के अनुसार, 2025 की तीसरी तिमाही में वास्तविक निर्यात 4.1 प्रतिशत की सालाना दर से बढ़ा,जबकि इसी दौरान आयात में लगभग 5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इस संतुलन बदलाव का सीधा असर सकल घरेलू उत्पाद पर पड़ा और वास्तविक जीडीपी में लगभग एक प्रतिशत प्वाइंट का इजाफा हुआ। प्रशासन का तर्क है कि यह दिखाता है कि व्यापार नीति किस तरह व्यापक आर्थिक वृद्धि में योगदान दे सकती है।

नवंबर महीने के आँकड़ों का जिक्र करते हुए व्हाइट हाउस ने कहा कि उस महीने व्यापार घाटे में पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 50 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई। प्रशासन ने इस तेज सुधार का श्रेय टैरिफ से मिलने वाले राजस्व में बढ़ोतरी को दिया। व्हाइट हाउस का कहना है कि ज्यादा निर्यात,कम आयात और बढ़े हुए टैरिफ राजस्व का संयोजन अमेरिकी वर्कर्स,किसानों और मैन्युफैक्चरर्स के लिए अधिक समान अवसर पैदा कर रहा है। इसके मुताबिक,घरेलू उद्योगों को अब उस तरह की अनुचित प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ रहा है,जो पहले कम टैरिफ और ढीली व्यापार शर्तों के कारण होती थी।

ट्रंप प्रशासन ने दशकों पुरानी उन व्यापार नीतियों की भी आलोचना की,जिनके तहत दूसरे देशों को अमेरिकी बाजारों में अपने उत्पाद बेचने की ज्यादा सुविधा दी गई,जबकि अमेरिकी उत्पादकों की पहुँच को सीमित रखा गया। प्रशासन का दावा है कि इन नीतियों की वजह से अमेरिका में उद्योग कमजोर हुए और नौकरियाँ विदेशों में चली गईं। इस परिपाटी को बदलने के लिए राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने ट्रेडिंग पार्टनर्स को बातचीत की मेज पर लाने के लिए टैरिफ का इस्तेमाल किया और घरेलू उद्योगों के लिए रास्ता आसान किया।

व्हाइट हाउस की रिलीज में कहा गया कि अप्रैल में पेश किया गया ऐतिहासिक ट्रेड एजेंडा संयुक्त राज्य अमेरिका को नए और बेहतर व्यापार समझौते हासिल करने के लिए अभूतपूर्व ताकत देता है। प्रशासन का दावा है कि इन समझौतों का दायरा वैश्विक जीडीपी के आधे से ज्यादा हिस्से को कवर करता है। इसमें यूनाइटेड किंगडम,यूरोपीय संघ,जापान,चीन और रिपब्लिक ऑफ कोरिया जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदार शामिल हैं। इसके अलावा इंडोनेशिया,मलेशिया,थाईलैंड, वियतनाम,फिलीपींस,कंबोडिया,अल सल्वाडोर,इक्वाडोर,अर्जेंटीना,ग्वाटेमाला, स्विट्जरलैंड और लिकटेंस्टीन जैसे देशों का भी जिक्र किया गया है। प्रशासन के अनुसार,यह इस बात का संकेत है कि उसकी व्यापार रणनीति की पहुँच विकसित और उभरती दोनों तरह की अर्थव्यवस्थाओं तक फैली हुई है।

व्यापार संतुलन में सुधार के अलावा,व्हाइट हाउस ने टैरिफ रणनीति को घरेलू निवेश में आई तेजी से भी जोड़ा है। राष्ट्रपति ट्रंप जिस ‘अमेरिका फर्स्ट’ व्यापार एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं,उसके तहत कई बड़ी कंपनियों ने खरबों डॉलर के नए निवेश की घोषणा की है। प्रशासन का कहना है कि कंपनियाँ विदेशों में फैली अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को वापस अमेरिका ला रही हैं,जिससे हजारों नई नौकरियां पैदा हो रही हैं। इस प्रक्रिया को ‘रीशोरिंग’ के रूप में देखा जा रहा है,जिसे ट्रंप प्रशासन अपनी बड़ी उपलब्धि मानता है।

प्रशासन के मुताबिक,ये निवेश प्रतिबद्धताएँ संयुक्त राज्य अमेरिका को भविष्य की नौकरियों के लिए एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर रही हैं। व्हाइट हाउस का तर्क है कि इससे यह धारणा मजबूत होती है कि व्यापार नीति सिर्फ आयात-निर्यात तक सीमित नहीं है,बल्कि यह औद्योगिक नीति और रोजगार सृजन का भी एक अहम साधन हो सकती है। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि मजबूत घरेलू उद्योग और संतुलित व्यापार संबंध लंबे समय में अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ज्यादा स्थिर और प्रतिस्पर्धी बनाएँगे।

हालाँकि,इस दावे के बीच यह भी उल्लेखनीय है कि व्यापार घाटा किस तरह मापा जाता है। अमेरिकी व्यापार घाटा देश द्वारा आयात किए जाने वाले सामान और सेवाओं के कुल मूल्य और निर्यात किए जाने वाले सामान और सेवाओं के कुल मूल्य के बीच के अंतर को दर्शाता है। घाटे में कमी का मतलब यह होता है कि या तो निर्यात बढ़ रहा है,आयात घट रहा है या दोनों। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि मौजूदा सुधार दोनों ही कारणों से संभव हुआ है।

व्हाइट हाउस के ताजा आँकड़ें और दावे यह संकेत देते हैं कि टैरिफ आधारित व्यापार नीति के बावजूद या प्रशासन के अनुसार उसी की वजह से,अमेरिकी व्यापार प्रदर्शन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। जहाँ आलोचक अब भी इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर सवाल उठा रहे हैं,वहीं ट्रंप प्रशासन इसे अपने ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे की जीत के रूप में पेश कर रहा है। आने वाले महीनों में यह साफ होगा कि यह रुझान कितना टिकाऊ है और वैश्विक व्यापार व्यवस्था में अमेरिका की भूमिका किस दिशा में आगे बढ़ती है।