वाशिंगटन,18 दिसंबर (युआईटीवी)- ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में रविवार, 14 दिसंबर को यहूदी समुदाय को निशाना बनाकर किए गए आतंकी हमले ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। इस हमले की अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कड़ी निंदा करते हुए इसे मानवता के खिलाफ जघन्य अपराध बताया और सभी देशों से कट्टर इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर खड़े होने की अपील की। ट्रंप ने यह बयान व्हाइट हाउस में आयोजित हनुक्का रिसेप्शन के दौरान दिया,जहाँ उन्होंने कहा कि दुनिया को अब आतंकवाद की “बुरी ताकतों” के खिलाफ मिलकर निर्णायक कार्रवाई करनी होगी।
यह हमला सिडनी के मशहूर बोंडी बीच पर आयोजित हनुक्का इवेंट के दौरान हुआ,जहाँ अचानक हुई मास शूटिंग में 15 लोगों की मौत हो गई। हमले के समय कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे और यहूदी समुदाय के लिए यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का अवसर था। गोलीबारी के बाद मौके पर अफरा-तफरी मच गई और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा एजेंसियों ने तुरंत इलाके को घेर लिया और स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की,लेकिन तब तक जानमाल का भारी नुकसान हो चुका था।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने व्हाइट हाउस में अपने संबोधन में कहा कि, “कट्टर इस्लामिक आतंकवाद की बुरी ताकतों के खिलाफ सभी देशों को एक साथ खड़ा होना चाहिए और हम ऐसा कर रहे हैं।” उन्होंने पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ऑस्ट्रेलिया और उसके नागरिकों के साथ मजबूती से खड़ा है। ट्रंप का यह बयान ऐसे समय आया है,जब दुनिया के कई हिस्सों में चरमपंथी हमलों की घटनाएँ लगातार चिंता बढ़ा रही हैं।
हमले को लेकर शुरुआती जानकारी में यह सामने आया था कि बोंडी बीच पर हुई इस आतंकी घटना में शामिल एक हमलावर पाकिस्तानी मूल का हो सकता है। हालाँकि,बाद में जाँच में कई नए खुलासे हुए। जानकारी के अनुसार,इस हमले को अंजाम देने से पहले दोनों आतंकी पिछले महीने फिलीपींस गए थे। फिलीपींस के अधिकारियों का दावा है कि ये आतंकी भारतीय पासपोर्ट पर वहाँ पहुँचे थे। फिलहाल ऑस्ट्रेलियाई जाँच एजेंसियाँ इस बात की गहराई से पड़ताल कर रही हैं कि वे फिलीपींस क्यों गए थे और वहाँ उनका संपर्क किन लोगों से हुआ।
इसी बीच भारत की तेलंगाना पुलिस ने इस मामले में अहम पुष्टि की है। पुलिस के अनुसार,मुख्य हमलावर साजिद अकरम (50) असल में दक्षिणी शहर हैदराबाद का रहने वाला था और उसके पास भारतीय पासपोर्ट था। तेलंगाना पुलिस ने बताया कि साजिद ने यूरोपियन मूल की एक महिला से शादी की थी और वर्ष 1998 में नौकरी के अवसरों की तलाश में ऑस्ट्रेलिया चला गया था। पुलिस के मुताबिक,वह भारत में अपने परिवार के संपर्क में बहुत कम रहता था और लंबे समय से विदेश में ही जीवन बिता रहा था।
तेलंगाना स्टेट पुलिस चीफ बी. शिवधर रेड्डी ने इस मामले पर बयान जारी करते हुए कहा कि साजिद के परिवार को उसकी किसी भी तरह की कट्टर सोच या गतिविधियों की जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि, “परिवार वालों को उसकी कट्टरपंथी विचारधारा के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी और न ही उन हालात के बारे में कुछ पता था,जिसके वजह से वह इस रास्ते पर गया।” पुलिस अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है,जिससे यह कहा जा सके कि साजिद भारत में रहते हुए कट्टरपंथी बना था।
ऑस्ट्रेलियाई पुलिस ने इस हमले के दौरान त्वरित कार्रवाई करते हुए साजिद अकरम को मौके पर ही मार गिराया। हालाँकि,उसका 24 वर्षीय बेटा नवीद अकरम गोली लगने से घायल हो गया और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है,जहाँ उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है। जाँच एजेंसियों ने साजिद के सभी संभावित संपर्कों और नेटवर्क को खंगालना शुरू कर दिया है। शुरुआती जाँच में यह भी सामने आया है कि वह हैदराबाद के टोली चौक इलाके में स्थित अल हसनाथ कॉलोनी का रहने वाला था।
ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों के अनुसार,यह हमला पूरी तरह से विचारधारा से प्रेरित था। इसमें किसी व्यक्तिगत रंजिश या तात्कालिक उकसावे की बात सामने नहीं आई है। जाँच के दौरान विसम हद्दाद नाम के एक कुख्यात मौलवी का भी पता चला है,जो इस्लामिक स्टेट से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है। हद्दाद पर आरोप है कि वह लंबे समय से इस्लामिक स्टेट की कट्टरपंथी विचारधारा का प्रचार करता रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक,कई चेतावनियों और खुफिया जानकारियों के बावजूद ऑस्ट्रेलियाई एजेंसियाँ उसके खिलाफ ठोस कार्रवाई करने में नाकाम रहीं,जिससे सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
इस हमले के बाद ऑस्ट्रेलिया में यहूदी समुदाय में गहरा आक्रोश और भय का माहौल है। वहीं,अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इस घटना ने आतंकवाद और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग को तेज कर दिया है। डोनाल्ड ट्रंप की ओर से की गई वैश्विक एकजुटता की अपील को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह हमला एक बार फिर यह दिखाता है कि आतंकवाद किसी एक देश की समस्या नहीं है,बल्कि यह एक वैश्विक चुनौती है,जिसका सामना केवल साझा प्रयासों और मजबूत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से ही किया जा सकता है।
