थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर सीजफायर समझौता (तस्वीर क्रेडिट@AIRNewsHindi)

थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर सीजफायर समझौता,दशकों पुराने विवाद को शांत करने की नई कोशिश

बैंकॉक,27 दिसंबर (युआईटीवी)- थाईलैंड और कंबोडिया के बीच लंबे समय से चली आ रही सीमा तनाव की कहानी में एक नया अध्याय जुड़ गया है। शनिवार को थाईलैंड के चांथाबुरी प्रांत के एक बॉर्डर चेकपॉइंट पर दोनों देशों ने सीजफायर समझौते पर हस्ताक्षर किए। थाईलैंड के रक्षा मंत्री नत्थापोन नाकपानिच और कंबोडिया के उप प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री टी सिया ने इस समझौते को औपचारिक रूप दिया। कंबोडिया के रक्षा मंत्रालय ने जानकारी दी कि तीसरी स्पेशल कंबोडिया-थाईलैंड जनरल बॉर्डर कमेटी की बैठक में तैयार किए गए संयुक्त बयान के मसौदे पर दोनों देशों के बीच सहमति बन चुकी है। इस प्रक्रिया में आसियान के ऑब्जर्वर भी मौजूद थे,जिससे क्षेत्रीय स्तर पर इस पहल को अधिक विश्वसनीयता मिली।

सीजफायर बातचीत स्थानीय समयानुसार सुबह करीब 9:40 बजे शुरू हुई। जुलाई में हुए संघर्ष विराम के टूटने के बाद 8–9 दिसंबर को हिंसा में अचानक तेजी आ गई थी। थाईलैंड की ओर से लड़ाकू विमानों और तोपखाने का इस्तेमाल किया गया,जबकि कंबोडिया ने रॉकेट हमलों के जरिए जवाब दिया। इस बढ़ती गोलाबारी ने सीमा के दोनों ओर स्थित गाँवों को भय के साये में धकेल दिया और सैकड़ों नागरिकों को अस्थायी आश्रयों में जाना पड़ा। सैन्य तनाव के इस माहौल ने स्पष्ट संकेत दिया कि यदि संवाद बहाल नहीं हुआ,तो टकराव किसी बड़े संकट का रूप ले सकता था।

सीमा विवाद का केंद्र मुख्य रूप से डांगरेक पर्वत श्रृंखला के आसपास स्थित क्षेत्र है,जो उत्तर-पूर्वी थाईलैंड और उत्तरी कंबोडिया तक फैला हुआ है। यह इलाका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माना जाता है,क्योंकि यहाँ कई प्राचीन खमेर मंदिर स्थित हैं। इन मंदिरों के आसपास की ऊँचाइयों पर नियंत्रण को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। हालिया तनाव के दौरान फिर से सैनिकों की तैनाती बढ़ी,गोलाबारी हुई और हवाई मिशन भी संचालित किए गए,जिससे हालात और नाजुक हो गए।

इस विवाद की जड़ें बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में खोजी जा सकती हैं,जब कंबोडिया फ्रांसीसी औपनिवेशिक प्रशासन के अधीन था और सीमाएँ निर्धारित की जा रही थीं। थाईलैंड का कहना है कि उस समय तैयार किए गए कुछ नक्शों में सीमा रेखाएँ गलत तरीके से चिन्हित कर दी गईं और प्राकृतिक जल-विभाजक सीमाओं के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया। दूसरी ओर,कंबोडिया का तर्क है कि ये नक्शे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य रहे हैं और कई समझौतों का आधार बने हैं। इस तरह दोनों देशों के दावों और ऐतिहासिक व्याख्याओं ने विवाद को लगातार जटिल बनाए रखा।

प्रेह विहार मंदिर इस पूरे विवाद का सबसे बड़ा प्रतीक बन चुका है। 1962 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मंदिर पर संप्रभुता कंबोडिया की है। इसके बावजूद मंदिर के आसपास की जमीन और पहुँच-मार्गों को लेकर तनाव समय-समय पर फिर भड़क उठता है। स्थानीय आबादी के लिए यह केवल धार्मिक धरोहर का प्रश्न नहीं,बल्कि आजीविका,सुरक्षा और क्षेत्रीय पहचान का मुद्दा भी है। इसलिए जब भी सीमा पर सैन्य हलचल बढ़ती है, लोगों के मन में पुरानी आशंकाएँ फिर से उभर आती हैं।

नवीनतम सीजफायर समझौते को दोनों देशों ने एक सकारात्मक कदम के रूप में प्रस्तुत किया है। बैठक के बाद जारी बयानों में कहा गया कि मतभेदों को सैन्य कार्रवाई के बजाय बातचीत के जरिए सुलझाने का प्रयास जारी रहेगा। दोनों पक्षों ने सीमा पर तैनात सैनिकों को संयम बरतने और किसी भी उकसावे से बचने का निर्देश देने पर सहमति जताई। साथ ही,संयुक्त गश्त,हॉटलाइन संचार और जानकारी साझा करने जैसे उपायों पर भी चर्चा हुई,ताकि किसी छोटे विवाद के बड़े सैन्य टकराव में बदलने की आशंका कम हो।

हालाँकि,विशेषज्ञों का मानना है कि केवल सीजफायर किसी स्थायी समाधान की गारंटी नहीं देता। सीमा पर फैला अविश्वास,ऐतिहासिक दावे और घरेलू राजनीतिक दबाव अक्सर ऐसी पहल को कमजोर कर देते हैं। कई बार स्थानीय कमांडरों की अलग-अलग व्याख्याओं के कारण भी गोलीबारी फिर शुरू हो जाती है। इसलिए आवश्यक है कि दोनों देश न केवल सैन्य स्तर पर बल्कि कूटनीतिक और जन-स्तर पर भी संवाद को मजबूत बनाएँ।

सीजफायर के समर्थकों का कहना है कि यह समझौता कम से कम तत्काल हिंसा को रोकने और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करेगा। सीमा क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए यह राहत की सांस है,क्योंकि वे बीते महीनों से लगातार अनिश्चितता में जी रहे थे। खेतों में काम,स्कूलों की पढ़ाई और व्यापारिक गतिविधियाँ कई इलाकों में प्रभावित हुई थीं। अब उम्मीद की जा रही है कि धीरे-धीरे सामान्य जीवन लौट सकेगा और लोग भयमुक्त माहौल में अपनी रोजमर्रा की गतिविधियाँ फिर शुरू कर पाएँगे।

कंबोडिया और थाईलैंड दोनों ही आसियान के महत्वपूर्ण सदस्य हैं। ऐसे में क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक सहयोग के लिहाज से भी यह आवश्यक है कि सीमा विवाद नियंत्रित रहे। आसियान के पर्यवेक्षकों की उपस्थिति ने यह संदेश दिया कि दक्षिण-पूर्व एशिया का व्यापक समुदाय इस मुद्दे को केवल द्विपक्षीय तनाव के रूप में नहीं,बल्कि क्षेत्रीय शांति के सवाल के रूप में देखता है। यदि सीजफायर लंबे समय तक कायम रहता है और आगे चलकर किसी व्यापक समझौते का आधार बनता है,तो इससे पूरे क्षेत्र में निवेश और सहयोग के माहौल को मजबूती मिल सकती है।

फिर भी,रास्ता आसान नहीं है। दोनों देशों को ऐतिहासिक शिकायतों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए धैर्य,पारदर्शिता और राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी। सीमा निर्धारण जैसे जटिल मुद्दे अक्सर कानूनी,तकनीकी और भावनात्मक स्तर पर उलझे रहते हैं। इसलिए विशेषज्ञों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की मदद से चरण-बद्ध बातचीत जरूरी है।

वर्तमान सीजफायर इस दिशा में एक अहम शुरुआत के रूप में देखा जा सकता है। यह न केवल तुरंत हिंसा को विराम देता है,बल्कि यह संकेत भी देता है कि दोनों पड़ोसी देश बातचीत की मेज पर वापस लौटने को तैयार हैं। यदि यह रुझान कायम रहा, तो प्रेह विहार जैसे विवादित स्थलों पर तनाव कम हो सकता है और भविष्य में सीमाओं को लेकर अधिक स्पष्ट और स्वीकार्य समाधान तलाशे जा सकते हैं।

अंततः,थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर हुआ यह समझौता केवल दो हस्ताक्षरों का दस्तावेज नहीं,बल्कि उन हजारों लोगों की उम्मीदों का प्रतीक है जो शांति,स्थिरता और सुरक्षित भविष्य की कामना करते हैं। अब दुनिया की निगाहें इस बात पर टिकी रहेंगी कि क्या यह सीजफायर हिंसा के चक्र को तोड़कर स्थायी समाधान की राह खोल पाएगा या फिर यह भी अतीत के कई अस्थायी समझौतों की तरह इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएगा।