मुंबई,25 अप्रैल (युआईटीवी)- विवादों के बीच फिल्म ‘फुले’ शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। फिल्म में पत्रलेखा ने सावित्रीबाई फुले की भूमिका निभाई है,जबकि प्रतीक गांधी ने ज्योतिराव फुले की भूमिका निभाई है। यह फिल्म सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत और भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है।
इस फिल्म में सावित्रीबाई फुले की भूमिका निभा रहीं अभिनेत्री पत्रलेखा ने सोशल मीडिया के जरिए अपने प्रशंसकों से फिल्म देखने की अपील की है। उन्होंने इंस्टाग्राम पर फिल्म का एक पोस्टर साझा करते हुए लिखा, “हमारी फिल्म ‘फुले’ अब सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। कृपया जाकर इसे देखिए। मैं आपको आश्वस्त करती हूँ कि यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी।”
अभिनेत्री ने निर्देशक अनंत महादेवन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए लिखा, “अनंत सर,मुझ पर विश्वास जताने के लिए आपका धन्यवाद। आपके निर्देशन में एक अभिनेता के तौर पर काम करना मेरे लिए सौभाग्य की बात रही।”
पत्रलेखा ने फिल्म में ज्योतिराव फुले की भूमिका निभा रहे अभिनेता प्रतीक गांधी की भी तारीफ की। उन्होंने लिखा, “प्रतीक,आप ना केवल बेहतरीन कलाकार हैं,बल्कि सबसे विनम्र और अच्छे इंसानों में से एक हैं,जिन्हें मैं जानती हूँ। मुझे गर्व है कि मैं आपको अपना दोस्त कह सकती हूँ।” इसके साथ ही उन्होंने फिल्म की पूरी टीम के अन्य सदस्यों का भी आभार व्यक्त किया।
फिल्म ‘फुले’ महात्मा ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के संघर्ष और योगदान पर केंद्रित है। उन्होंने 19वीं सदी में भारतीय समाज में फैली गहरी जातिगत असमानता और स्त्री शिक्षा के विरोध के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। सावित्रीबाई फुले को भारत की पहली महिला शिक्षिका के रूप में जाना जाता है,जबकि ज्योतिराव फुले ने न केवल दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा की लड़ाई लड़ी,बल्कि महिलाओं को भी समान अधिकार दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
फिल्म में प्रतीक गांधी ने महात्मा फुले की भूमिका निभाई है,वहीं पत्रलेखा ने सावित्रीबाई फुले की भूमिका को पर्दे पर जीवंत किया है।
फिल्म की रिलीज से पहले ही यह विवादों के घेरे में आ गई थी। देश के विभिन्न हिस्सों में ब्राह्मण समुदाय की ओर से फिल्म के कुछ दृश्यों और संवादों को लेकर आपत्ति जताई गई। समुदाय ने आरोप लगाया कि फिल्म में उन्हें अपमानित किया गया है। इस विरोध के बाद सेंसर बोर्ड ने फिल्म के कुछ हिस्सों में कट लगाने का निर्णय लिया।
विवाद को और गहरा बनाने वाला एक और कारण फिल्म के सह-निर्माता अनुराग कश्यप का एक कथित बयान रहा,जिसमें उन्होंने ब्राह्मणों को लेकर टिप्पणी की थी। इस बयान पर भी कड़ा विरोध दर्ज किया गया और फिल्म को बैन करने की मॉंग उठी।
हालाँकि,तमाम विवादों और विरोधों के बावजूद फिल्म को सिनेमाघरों में दर्शकों के सामने लाया गया है और निर्माताओं ने स्पष्ट किया है कि फिल्म का उद्देश्य किसी समुदाय को ठेस पहुँचाना नहीं,बल्कि फुले दंपति के संघर्ष और योगदान को जन-जन तक पहुँचाना है।
‘फुले’ सिर्फ एक फिल्म नहीं,बल्कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज है,जो भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन की नींव रखने वाले दो महान व्यक्तित्वों की कहानी कहती है,जहाँ एक ओर यह फिल्म शिक्षा और समानता के मूल्यों को रेखांकित करती है, तो वहीं दूसरी ओर यह आज के समय में भी प्रासंगिक मुद्दों को छूती है। तमाम विवादों के बावजूद,यह फिल्म उन सभी के लिए देखी जानी चाहिए,जो भारतीय समाज की जड़ों को समझना चाहते हैं और परिवर्तन की उस मशाल को महसूस करना चाहते हैं,जिसे फुले दंपति ने प्रज्ज्वलित किया था।
