एच-1बी वीज़ा

ट्रंप प्रशासन के एच-1बी वीजा बदलाव से अमेरिकी कंपनियों का रुख भारत की ओर तेज होने की संभावना

वाशिंगटन,1 अक्टूबर (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीजा कार्यक्रम में बड़े बदलाव और उस पर कड़े प्रतिबंध लगाने वाले घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही दिनों बाद यह स्पष्ट हो गया है कि इसके असर वैश्विक स्तर पर व्यापक होंगे। खासतौर पर भारत के संदर्भ में,जहाँ विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले के चलते अमेरिकी कंपनियों का झुकाव अपने महत्वपूर्ण कार्यों को भारत में स्थानांतरित करने की दिशा में और तेजी से बढ़ सकता है। यह कदम वित्तीय सेवाओं, अनुसंधान एवं विकास,साइबर सुरक्षा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव डालने वाला साबित हो सकता है।

दरअसल,19 सितंबर को ट्रंप ने एच-1बी वीजा को लेकर नए नियमों और शुल्क संबंधी घोषणा करते हुए कहा कि अब हर नए आवेदन के लिए 100,000 डॉलर का शुल्क देना होगा। उनका तर्क था कि इससे अमेरिकी कंपनियों को अपने ही नागरिकों को रोजगार देने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और स्थानीय कार्यबल को अधिक अवसर मिलेंगे। हालाँकि,इस घोषणा के बाद कंपनियों,वीजा धारकों और उद्योग विशेषज्ञों के बीच गहरा भ्रम फैल गया। शुरुआती दिनों में ऐसा माना जा रहा था कि यह शुल्क पहले से अमेरिका में काम कर रहे एच-1बी वीजा धारकों पर भी लागू होगा,जिससे हजारों भारतीय पेशेवरों के अमेरिका लौटने या वहाँ बने रहने पर संकट खड़ा हो सकता है।

हालाँकि,व्हाइट हाउस ने इस भ्रम को दूर करते हुए स्पष्ट किया कि यह शुल्क केवल नए वीजा आवेदनों पर लागू होगा,मौजूदा वीजा धारकों या नवीनीकरण से इसका कोई संबंध नहीं होगा। इसके बावजूद उद्योग जगत में यह चर्चा तेज हो गई है कि वीजा नियमों में ऐसे बदलाव अमेरिकी कंपनियों की रणनीतियों पर गहरा असर डालेंगे।

डेलॉइट इंडिया के पार्टनर और वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) उद्योग के प्रमुख रोहन लोबो ने इस संदर्भ में कहा कि उन्हें पहले से ही कई अमेरिकी कंपनियों के बारे में जानकारी है,जो अपनी कार्यबल आवश्यकताओं का पुनर्मूल्यांकन कर रही हैं। उनके अनुसार यह बदलाव अचानक से नहीं हुआ है,बल्कि इसकी योजनाएँ पिछले कुछ समय से चल रही थीं। कंपनियाँ विशेष रूप से वित्तीय सेवाओं और तकनीकी क्षेत्र से जुड़ी गतिविधियों को लेकर पहले से ही अपने वैश्विक संचालन के नए ढाँचे पर काम कर रही थीं। अब ट्रंप प्रशासन की वीजा नीति ने इस प्रक्रिया को और तेज करने की भूमिका निभाई है।

लेखों और रिपोर्टों में यह भी सामने आया है कि अमेरिकी संघीय अनुबंधों से जुड़ी कई कंपनियाँ अपनी उच्चस्तरीय गतिविधियों को आउटसोर्स करने के बजाय भारत में स्थित अपने ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) में स्थानांतरित करने की दिशा में बढ़ रही हैं। जीसीसी को एक प्रकार का आंतरिक इंजन माना जाता है,जो कंपनियों को लागत बचत के साथ-साथ रणनीतिक नियंत्रण भी देता है। ऐसे केंद्र पहले से ही भारत में तेजी से विकसित हो रहे हैं और अब नए वीजा प्रतिबंधों ने इनके विस्तार की संभावनाओं को और अधिक बल दिया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वीजा प्रतिबंधों को कानूनी चुनौती नहीं दी जाती या उनमें किसी प्रकार की ढील नहीं दी जाती है,तो निकट भविष्य में भारत में जीसीसी का महत्व और अधिक बढ़ेगा। अमेरिकी कंपनियाँ खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस,उत्पाद विकास,साइबर सुरक्षा और एनालिटिक्स जैसे उच्च-स्तरीय कार्यों को इन केंद्रों में शिफ्ट कर सकती हैं। यह बदलाव पारंपरिक आउटसोर्सिंग मॉडल से हटकर कंपनियों को एक ऐसा विकल्प देगा,जिसमें वे अपने महत्वपूर्ण कार्यों को बाहरी एजेंसियों के बजाय आंतरिक ढाँचे में ही सँभाल सकेंगी।

ट्रंप प्रशासन के फैसले से भारतीय आईटी और सेवा उद्योग के लिए अवसरों का एक नया द्वार खुल सकता है। एच-1बी वीजा के तहत भारत हर साल सबसे बड़ा लाभार्थी रहा है,लेकिन अब वीजा पर कड़े प्रतिबंधों के बाद यह स्थिति बदल सकती है। इसके बजाय,अमेरिकी कंपनियाँ सीधे भारत में अपनी टीमों और केंद्रों को विकसित करने पर ध्यान दे सकती हैं,जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

हालाँकि,इस पूरे परिदृश्य का दूसरा पहलू भी है। अमेरिकी कंपनियों को अपनी आंतरिक रणनीतियों में बड़े बदलाव करने होंगे। ट्रंप प्रशासन के निर्णय से अल्पकाल में जहाँ लागत और संसाधन प्रबंधन की चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं,वहीं दीर्घकाल में यह कंपनियों के लिए भारत को एक स्थायी और मजबूत आधार बनाने का अवसर भी हो सकता है।

वहीं,भारत सरकार और नीति-निर्माताओं के लिए भी यह समय रणनीतिक महत्व का है। यदि अमेरिकी कंपनियों का रुझान भारत की ओर बढ़ता है,तो इसके लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे,नीति समर्थन और नियामक स्पष्टता को सुनिश्चित करना जरूरी होगा। भारतीय आईटी और सेवा उद्योग पहले से ही इस दिशा में अग्रसर है और ऐसे में नए निवेश और रोजगार अवसरों का मार्ग और अधिक खुल सकता है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (डीएचएस) ने भी कुछ ही दिनों बाद एच-1बी वीजा प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले नियमों में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। यह संकेत है कि आने वाले महीनों में वीजा कार्यक्रम से जुड़े और भी बदलाव देखने को मिल सकते हैं। ऐसे में कंपनियों को अपनी वैश्विक कार्य योजनाओं को और अधिक सतर्कता से तैयार करना होगा।

ट्रंप प्रशासन का यह कदम अमेरिकी कंपनियों के लिए चुनौती के साथ-साथ अवसर भी लेकर आया है। जहाँ एक ओर अमेरिकी कर्मचारियों को स्थानीय स्तर पर अवसर देने की नीति पर जोर दिया जा रहा है,वहीं दूसरी ओर यह भारत के लिए एक नया अवसर बन सकता है,जिसमें वह वैश्विक व्यापार और तकनीक के केंद्र के रूप में और अधिक मजबूत स्थिति हासिल कर सकता है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिकी कंपनियाँ किस तरह अपनी रणनीति को बदलती हैं और भारत इस नए अवसर का किस तरह लाभ उठाता है।