ट्रंप और पुतिन

ट्रंप का नया संकेत: रूस पर और सख्त प्रतिबंधों की तैयारी,भारत और यूरोप भी बने विवाद का हिस्सा

न्यूयॉर्क,8 सितंबर (युआईटीवी)- अमेरिका और रूस के मध्य चल रहा तनाव एक बार फिर तेज़ हो गया है। यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस के अड़ियल रवैये से नाराज़ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस पर और कड़े प्रतिबंध लगाने के संकेत दिए हैं। रविवार को वाशिंगटन में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब उनसे पूछा गया कि क्या वह प्रतिबंधों के दूसरे चरण को लागू करने के लिए तैयार हैं,तो ट्रंप ने संक्षेप में कहा—“हाँ, मैं तैयार हूँ।” उनके इस जवाब ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हलचल मचा दी है,क्योंकि यह साफ नहीं है कि वह किन नए प्रतिबंधों की ओर इशारा कर रहे थे और यह भी स्पष्ट नहीं है कि उनका निशाना केवल रूस होगा या रूस से ऊर्जा खरीदने वाले देश भी इसमें शामिल होंगे।

ट्रंप के बयान से पहले ही वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में अनिश्चितता का माहौल था। अगस्त के मध्य में उन्होंने चीन को लेकर टिप्पणी की थी,जिसे अब तक रूसी तेल खरीदने पर दंडात्मक टैरिफ से छूट मिली हुई है। उस समय ट्रंप ने कहा था कि वह “दो या तीन हफ्तों में” इस मुद्दे पर विचार कर सकते हैं या कार्रवाई कर सकते हैं। इसके अलावा,भारत पर तो ट्रंप ने पहले ही सीधा निशाना साधा था और रूसी तेल आयात को लेकर उस पर 25 प्रतिशत दंडात्मक शुल्क लगा दिया था। इस कदम से भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में खिंचाव पैदा हुआ है।

ट्रंप की रूस नीति फिलहाल मिश्रित संदेश दे रही है। तीन सप्ताह पहले उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात कर यूक्रेन युद्ध खत्म करने के लिए अपनी शांति कूटनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश की थी। उन्होंने उस शिखर सम्मेलन से बड़ी उम्मीदें जताई थीं और कहा था कि इससे युद्ध के समाधान की दिशा में रास्ता खुलेगा,लेकिन वास्तविकता यह है कि अब तक पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच कोई आमने-सामने बातचीत नहीं हो पाई है। उल्टा, रूस ने यूक्रेन पर अपने हमले और तेज कर दिए हैं। ऐसे में ट्रंप पर यह दबाव बढ़ गया है कि वह कठोर कदम उठाएँ।

व्हाइट हाउस की राष्ट्रीय आर्थिक परिषद के निदेशक केविन हासेट ने भी संकेत दिए हैं कि अमेरिका बहुत जल्द नए प्रतिबंधों के स्तर और समय को लेकर निर्णय ले सकता है। उन्होंने कहा, “रूसी हमलों में वृद्धि के बाद यह निश्चित है कि आज और कल प्रतिबंधों को लेकर गहन चर्चा होगी। यह अंततः राष्ट्रपति पर निर्भर करता है कि कब और किस तरह कार्रवाई की जाए,लेकिन हालात बेहद निराशाजनक हैं।”

इस बीच,अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने एक नया सुझाव रखा है। उनका मानना है कि रूस पर असरदार दबाव बनाने के लिए केवल अमेरिकी प्रतिबंध पर्याप्त नहीं हैं। उन्होंने यूरोपीय संघ (ईयू) को इसमें शामिल करने की बात कही है। उनके मुताबिक,अगर अमेरिका और ईयू मिलकर रूसी तेल खरीदारों पर माध्यमिक प्रतिबंध लगाते हैं,तो मॉस्को पर बातचीत की मेज पर लौटने के लिए मजबूर किया जा सकता है,लेकिन यहाँ एक विडंबना है। ईयू खुद रूस से सीधे गैस खरीदना जारी रखे हुए है और भारत से रूसी तेल से बने परिष्कृत उत्पादों को अप्रत्यक्ष रूप से आयात कर रहा है। इस पर सवाल उठाते हुए आलोचकों का कहना है कि अमेरिका अपने सहयोगियों की भूमिका को नज़रअंदाज कर रहा है और केवल भारत जैसे देशों पर कठोरता दिखा रहा है।

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने भी इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाया है। उन्होंने एबीसी न्यूज को दिए इंटरव्यू में साफ कहा, “कुछ यूरोपीय देश आज भी रूसी तेल और गैस खरीद रहे हैं। यह उचित नहीं है। अगर हम रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करना चाहते हैं,तो दोहरे मापदंड नहीं चल सकते।” जेलेंस्की ने आगे भारत पर लगाए गए दंडात्मक शुल्क का समर्थन करते हुए इसे “सही विचार” बताया और कहा कि रूस से ऊर्जा खरीदना ही उसके युद्ध मशीन को ताकत दे रहा है।

ट्रंप प्रशासन की मौजूदा नीति कई स्तरों पर जटिलता दिखा रही है। एक ओर राष्ट्रपति खुद रूस से बातचीत की संभावना का दरवाजा खुला रखना चाहते हैं,तो वहीं दूसरी ओर प्रतिबंधों के ज़रिए दबाव बनाने की रणनीति भी जारी है। पुतिन के साथ हुई उनकी पिछली मुलाकात इस बात का प्रमाण है कि ट्रंप पूरी तरह सैन्य टकराव से बचना चाहते हैं,लेकिन युद्ध की जमीनी हकीकत और रूस के लगातार हमलों ने उनकी “शांति कूटनीति” को कमजोर कर दिया है। अब उन्हें अपनी घरेलू राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय दबाव,दोनों का सामना करना पड़ रहा है।

भारत पर लगाए गए शुल्क से अमेरिका-भारत संबंधों में नई चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं। भारत लंबे समय से ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस पर निर्भर रहा है और पश्चिमी दबाव के बावजूद उसने रूसी तेल आयात जारी रखा है। भारत का तर्क है कि उसकी बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतें सस्ती दरों पर पूरी होनी चाहिए और यह उसकी आर्थिक स्थिरता के लिए ज़रूरी है,लेकिन ट्रंप प्रशासन इस रुख को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं दिख रहा। ऐसे में आने वाले समय में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनातनी और बढ़ सकती है।

यूरोपीय संघ की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। अमेरिका जहाँ भारत जैसे देशों पर सख्ती दिखा रहा है,वहीं यूरोपीय राष्ट्र खुद को छूट देते दिख रहे हैं। जेलेंस्की का यह कहना कि “यह उचित नहीं है” दरअसल पश्चिमी दुनिया के भीतर मौजूद विरोधाभासों को उजागर करता है।

आखिरकार,ट्रंप किस प्रकार के नए प्रतिबंध लागू करेंगे,यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। क्या यह केवल रूस पर केंद्रित होंगे या फिर उन देशों तक भी फैलेंगे जो रूसी ऊर्जा पर निर्भर हैं? यह सवाल फिलहाल अनुत्तरित है,लेकिन इतना तय है कि ट्रंप का यह नया कदम वैश्विक ऊर्जा बाज़ार को और अस्थिर करेगा और भू-राजनीतिक समीकरणों में नई खींचतान पैदा करेगा।

रूस-यूक्रेन युद्ध पहले से ही वैश्विक महँगाई,ऊर्जा संकट और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर चुका है। अब अगर अमेरिका और यूरोप मिलकर नए प्रतिबंध लागू करते हैं,तो यह संकट और गहराने की आशंका है। ट्रंप के छोटे से बयान—“हाँ, मैं तैयार हूँ”—ने दुनिया भर के बाज़ारों और राजधानियों में बेचैनी बढ़ा दी है। सवाल यह है कि क्या यह बयान केवल दबाव बनाने की रणनीति है या वास्तव में रूस और उसके सहयोगियों पर कठोर आर्थिक कार्रवाई की शुरुआत का संकेत है। आने वाले दिनों में यह स्पष्ट होगा कि ट्रंप की नीति रूस को झुकने पर मजबूर करेगी या फिर वैश्विक अस्थिरता को और बढ़ा देगी।