वाशिंगटन,7 अगस्त (युआईटीवी)- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से वैश्विक व्यापार जगत को झटका दिया है। बुधवार को ट्रंप प्रशासन ने भारत से होने वाले सभी आयात पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाने का औपचारिक आदेश जारी किया। यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है,जब भारत वैश्विक मंचों पर अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के तहत रूस से तेल खरीदना जारी रखे हुए है। ट्रंप के इस निर्णय ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर सवाल खड़े कर दिए हैं और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक समीकरणों को एक बार फिर अस्थिर कर दिया है।
व्हाइट हाउस द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि यह निर्णय रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को और अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से लिया गया है। अमेरिका का मानना है कि भारत,प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से,रूस से तेल और अन्य ऊर्जा उत्पादों का आयात करके उन प्रतिबंधों को कमजोर कर रहा है,जिन्हें अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस की आक्रामक सैन्य नीति के खिलाफ लागू किया है। ट्रंप ने इस आदेश को अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के लिए आवश्यक कदम करार दिया है।
आदेश के अनुसार,भारत से अमेरिका के सीमा शुल्क क्षेत्र में आने वाली सभी वस्तुओं पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लागू किया जाएगा। यह शुल्क पहले से लागू किसी भी अन्य शुल्क के अतिरिक्त होगा। हालाँकि,यह प्रावधान भी किया गया है कि वे वस्तुएँ जो आदेश लागू होने के 21 दिनों के भीतर समुद्री मार्ग में हों और 17 सितंबर 2025 से पहले अमेरिकी सीमा शुल्क प्रक्रियाएँ पूरी कर लें,उन्हें इस अतिरिक्त शुल्क से छूट दी जाएगी। इसका मतलब है कि व्यापारियों को सीमित समय के भीतर अपने शिपमेंट्स को क्लियर कराने का अवसर मिलेगा।
ट्रंप के इस आदेश में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत से आयातित वस्तुओं को अमेरिकी सीमा शुल्क क्षेत्र में “प्रिविलेज्ड फॉरेन स्टेटस” के तहत दर्ज किया जाएगा। इसका तात्पर्य यह है कि इन वस्तुओं को विशेष निगरानी और कड़े सीमा शुल्क नियमों के अधीन लाया जाएगा,जिससे इन पर पूर्ण नियंत्रण सुनिश्चित किया जा सके। अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि यह कदम केवल भारत तक सीमित नहीं रहेगा,बल्कि अन्य देशों द्वारा भी यदि रूस के साथ इसी प्रकार का व्यापारिक व्यवहार जारी रखा गया,तो उन पर भी इसी तरह के प्रतिबंधात्मक शुल्क लगाए जा सकते हैं।
इस आदेश के तहत ट्रंप ने अमेरिकी वाणिज्य विभाग,विदेश विभाग,कोषागार विभाग और अन्य संबंधित एजेंसियों को निर्देशित किया है कि वे रूस से होने वाले वैश्विक व्यापार की बारीकी से निगरानी करें। आदेश में कहा गया है कि यदि आवश्यक हो,तो ऐसे ही आर्थिक प्रतिबंधों की सिफारिश अन्य देशों के संदर्भ में भी की जाए। यह अमेरिका की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा है,जिसके तहत वह रूस पर अधिकतम आर्थिक दबाव बनाने की नीति पर काम कर रहा है।
ट्रंप ने यह भी स्पष्ट किया है कि उन्हें इस आदेश में संशोधन करने,रद्द करने या विस्तार देने का पूरा अधिकार प्राप्त है। यानी यदि भारत या रूस की नीतियों में कोई बड़ा बदलाव होता है या अमेरिका को प्रतिकूल प्रतिक्रिया मिलती है,तो वह इस आदेश की प्रकृति में बदलाव कर सकते हैं। यह एक कूटनीतिक संकेत है कि अमेरिका फिलहाल अपनी शर्तों पर वैश्विक संबंधों को आकार देने की रणनीति पर काम कर रहा है।
भारत के लिए यह फैसला न केवल आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण है,बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी गंभीर संकेत देता है। अमेरिका भारत का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है और दोनों देशों के बीच रक्षा,तकनीक और ऊर्जा के क्षेत्र में व्यापक सहयोग रहा है,लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत की रूस-समर्थक ऊर्जा नीति ने अमेरिका को असहज कर दिया है। भारत हालाँकि,बार-बार यह स्पष्ट करता रहा है कि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्र रूप से निर्णय लेता है और रूस से तेल खरीद उसकी आंतरिक नीति का हिस्सा है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस चुनौती का किस तरह से जवाब देता है। क्या भारत अमेरिका के इस दबाव में अपने ऊर्जा स्रोतों में बदलाव करेगा या फिर ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय मंचों पर रूस और चीन के साथ मिलकर अमेरिकी संरक्षणवाद का प्रतिरोध करेगा? इतना तय है कि ट्रंप का यह कदम भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को प्रभावित करेगा और वैश्विक व्यापार संतुलन पर भी दूरगामी असर डालेगा।
ट्रंप की यह नीति संरक्षणवाद की उस लकीर को और मजबूत करती है,जिसके तहत वे अमेरिका की घरेलू कंपनियों और मजदूरों को प्राथमिकता देते हुए विदेशी व्यापार पर अंकुश लगाना चाहते हैं।
भारत की ओर से फिलहाल इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है,लेकिन कूटनीतिक हलकों में यह माना जा रहा है कि नई दिल्ली इस मुद्दे को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाने की तैयारी कर सकती है। साथ ही यह भी संभावना है कि भारत अन्य ब्रिक्स देशों के साथ मिलकर अमेरिका की इस एकतरफा नीति का विरोध करेगा।
इस घटनाक्रम ने न केवल वैश्विक व्यापार राजनीति को गर्मा दिया है,बल्कि आने वाले समय में अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के बदलते स्वरूप की झलक भी दी है।
