सोल,29 अक्टूबर (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बुधवार को दक्षिण कोरिया पहुँच गए,जहाँ वे ग्योंगजू में आयोजित हो रहे एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपीईसी) सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। यह सम्मेलन एशिया-प्रशांत क्षेत्र के आर्थिक और रणनीतिक समीकरणों के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है। ट्रंप का यह दौरा उनके दूसरे कार्यकाल की पहली एशिया यात्रा है,जिसमें वे दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति ली जे म्युंग और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय वार्ताएँ करेंगे।
बुसान के गिम्हे इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एयरफोर्स वन फ्लाइट से उतरने के बाद ट्रंप का दक्षिण कोरियाई अधिकारियों ने गर्मजोशी से स्वागत किया। इससे पहले वे जापान की राजधानी टोक्यो से रवाना हुए थे। ट्रंप का यह दौरा मुख्य रूप से व्यापार,निवेश और क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर केंद्रित बताया जा रहा है। अमेरिकी प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि एपीईसी समिट में भागीदारी के अलावा राष्ट्रपति ट्रंप का ध्यान एशिया में अमेरिकी आर्थिक प्रभाव को मजबूत करने पर है।
ग्योंगजू में आयोजित होने वाले उच्च स्तरीय शिखर सम्मेलन में ट्रंप सबसे पहले दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे म्युंग से मिलेंगे। यह दोनों नेताओं की पिछले दो महीनों में दूसरी मुलाकात होगी। उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौते पर अंतिम मुहर लग सकती है। इस समझौते की रूपरेखा जुलाई में तय की गई थी,लेकिन कुछ तकनीकी अड़चनों के कारण इसे अब तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सका।
सूत्रों के मुताबिक,इस समझौते के तहत दक्षिण कोरिया अमेरिका में लगभग 350 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगा। इसके बदले में अमेरिकी प्रशासन दक्षिण कोरियाई वस्तुओं पर लगने वाले टैरिफ को 25 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत करने पर सहमत होगा। यह समझौता न केवल दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को नई दिशा देगा,बल्कि एशिया में अमेरिका की आर्थिक उपस्थिति को भी सुदृढ़ करेगा। हालाँकि,समझौते के निवेश पैकेज में कुछ तकनीकी खामियाँ और कानूनी प्रावधानों को लेकर मतभेद बने हुए हैं,जिन्हें ग्योंगजू बैठक में दूर किए जाने की संभावना है।
दक्षिण कोरिया और अमेरिका के बीच हाल के वर्षों में आर्थिक सहयोग बढ़ा है,लेकिन दोनों देशों के बीच टैरिफ नीति और तकनीकी उत्पादों की आपूर्ति को लेकर तनाव बना हुआ है। अमेरिकी कंपनियाँ चाहती हैं कि सोल अपने ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों में अमेरिकी निवेशकों को अधिक अवसर दे,जबकि दक्षिण कोरिया का जोर इस बात पर है कि अमेरिका उसकी ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा उद्योग में तकनीकी सहायता प्रदान करे।
ट्रंप की इस यात्रा का एक और प्रमुख पहलू गुरुवार को होने वाली उनकी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात है। यह मुलाकात 2019 के बाद पहली बार हो रही है और इसलिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की निगाहें इस पर टिकी हैं। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध पिछले कुछ वर्षों में और गहराया है। दोनों देशों के बीच हाल ही में “रेयर अर्थ मिनरल्स” के निर्यात नियंत्रण को लेकर बड़ा विवाद हुआ। चीन ने इन महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर सख्त नियंत्रण लगाने का आदेश दिया,जिसके जवाब में ट्रंप प्रशासन ने 1 नवंबर से चीनी वस्तुओं पर 100 प्रतिशत तक अतिरिक्त शुल्क लगाने की धमकी दी।
ट्रंप और शी जिनपिंग की यह बैठक ऐसे समय में हो रही है,जब वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के दबाव में है और आपूर्ति शृंखला (सप्लाई चेन) संकट गहराता जा रहा है। दोनों देशों के बीच अगर कोई ठोस समझौता होता है,तो यह न केवल द्विपक्षीय व्यापार बल्कि वैश्विक बाजार के लिए भी राहत भरी खबर होगी। हालाँकि,अब तक दोनों पक्षों की ओर से वार्ता के एजेंडे का कोई आधिकारिक विवरण साझा नहीं किया गया है।
ट्रंप की दक्षिण कोरिया यात्रा के दौरान एक और दिलचस्प पहलू यह है कि इसने उत्तर कोरिया के साथ संभावित बातचीत की अटकलों को भी जन्म दे दिया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार,ट्रंप प्रशासन के कुछ अधिकारी उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-उन के साथ संपर्क स्थापित करने की कोशिश में हैं। हालाँकि,अब तक इस बारे में कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान उनके और किम जोंग-उन के बीच तीन ऐतिहासिक मुलाकातें जून 2018 में सिंगापुर में,फरवरी 2019 में वियतनाम के हनोई में और उसी वर्ष जून में कोरियाई सीमा पर स्थित पनमुनजोम गांव में हुई थीं । इन बैठकों ने उस समय वैश्विक सुर्खियाँ बटोरी थीं,हालाँकि अंततः उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर कोई ठोस प्रगति नहीं हो सकी।
विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप की यह एशिया यात्रा उनकी विदेश नीति के नए एजेंडे की झलक है। अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में वे एशिया को अमेरिकी रणनीति का केंद्र बनाना चाहते हैं। उनका फोकस चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना,दक्षिण कोरिया और जापान के साथ साझेदारी को मजबूत करना और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में आर्थिक तथा सैन्य उपस्थिति को सशक्त बनाना है।
दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति ली जे म्युंग ने भी कहा है कि यह मुलाकात दोनों देशों के आर्थिक और सुरक्षा हितों के लिए “नए युग” की शुरुआत करेगी। उन्होंने कहा कि ग्योंगजू में होने वाली यह वार्ता सिर्फ व्यापार समझौते तक सीमित नहीं रहेगी,बल्कि इसमें रक्षा सहयोग,ऊर्जा साझेदारी और तकनीकी नवाचार पर भी चर्चा होगी।
दक्षिण कोरिया के मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की यात्रा सोल के लिए अवसरों और चुनौतियों दोनों को लेकर आई है। एक ओर यह अमेरिका के साथ आर्थिक रिश्तों को और मजबूत करेगी,वहीं दूसरी ओर चीन के साथ संतुलन बनाए रखना दक्षिण कोरिया के लिए कठिन हो सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप की यह दक्षिण कोरिया यात्रा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नई रणनीतिक हलचलें पैदा कर रही है। जहाँ एक ओर वाशिंगटन का लक्ष्य एशियाई बाजारों में अपना प्रभाव बढ़ाना है,वहीं दूसरी ओर बीजिंग इस क्षेत्र में अपने आर्थिक प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है। ग्योंगजू में होने वाली बैठकों के नतीजे आने वाले दिनों में एशिया की भू-राजनीतिक दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

