नई दिल्ली,7 अगस्त (युआईटीवी)- वाशिंगटन और मॉस्को के बीच हाल ही में हुई कूटनीतिक गतिविधियों ने वैश्विक व्यापार जगत में एक नई हलचल पैदा कर दी है। अमेरिका के विशेष व्यापारिक दूत स्टीव विटकॉफ और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई बातचीत के कुछ ही घंटों बाद अमेरिका ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी। इस कदम ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के समीकरणों को नई दिशा देने के संकेत दिए हैं।
व्हाइट हाउस के सलाहकार पीटर नवारो ने एबीसी न्यूज को दिए गए साक्षात्कार में इस पूरे घटनाक्रम पर विस्तार से बात की। उन्होंने बताया कि अमेरिका,रूस से ऊर्जा खरीदने वाले देशों पर व्यापारिक दंड को लेकर सख्त रुख अपना रहा है,लेकिन साथ ही वह इस मुद्दे को लेकर अत्यधिक सतर्कता भी बरत रहा है,ताकि टैरिफ युद्ध की आड़ में अमेरिका की खुद की अर्थव्यवस्था को नुकसान न पहुँचे। चीन को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में नवारो ने कहा कि फिलहाल अमेरिका चीन पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने के पक्ष में नहीं है। उनका स्पष्ट कहना था कि हम उस स्थिति में नहीं जाना चाहते,जहाँ हम स्वयं को ही आर्थिक रूप से नुकसान पहुँचा बैठें।
यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि चीन पहले ही अमेरिका द्वारा कई वस्तुओं पर लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ के दायरे में आता है। ऐसे में रूस से तेल खरीद को लेकर चीन पर और अधिक दंडात्मक शुल्क लगाना अमेरिका के लिए दोधारी तलवार जैसा हो सकता है। शायद यही वजह है कि अमेरिका ने भारत पर तुरंत कार्रवाई करने का विकल्प चुना,जबकि चीन के मामले में वह अभी ‘इंतजार करो और देखो’ की नीति पर चल रहा है।
पीटर नवारो ने यह भी कहा कि अमेरिका रूस और चीन के बीच बनते ऊर्जा संबंधों पर नजर बनाए हुए है। रूस से तेल और गैस की बढ़ती आपूर्ति को लेकर वॉशिंगटन में चिंता है,लेकिन फिलहाल अमेरिका कोई तत्काल कदम नहीं उठाएगा। उनके अनुसार, “हम देख रहे हैं कि ये साझेदारियाँ किस दिशा में जाती हैं। हम जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहते।”
भारत पर टैरिफ लगाए जाने के फैसले के पीछे भी स्पष्ट रूप से यही चिंता नजर आती है। अमेरिका ने पहले ही संकेत दे दिए थे कि रूस से तेल खरीदने वाले देशों को इसकी कीमत चुकानी होगी। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह बयान पहले ही दे दिया था कि वह स्टीव विटकॉफ और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात के बाद भारत के खिलाफ टैरिफ लगाने पर अंतिम निर्णय लेंगे और हुआ भी ठीक वैसा ही।
भारत पर लगाए गए 25 फीसदी टैरिफ को लेकर अभी तक नई दिल्ली की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है,लेकिन माना जा रहा है कि यह निर्णय दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों को ठंडा कर सकता है। अमेरिका और भारत के बीच हाल के वर्षों में संबंधों में गर्मजोशी आई थी,खासकर रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में,लेकिन अब इस टैरिफ विवाद से दोनों देशों के बीच एक नया तनाव पैदा हो सकता है।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच एक और महत्वपूर्ण संकेत यह भी है कि अमेरिका और रूस के बीच कूटनीतिक वार्ताएँ एक बार फिर से तेज हो रही हैं। पुतिन और विटकॉफ की बैठक को अमेरिका ने सकारात्मक बताया है और यह संभावना जताई जा रही है कि राष्ट्रपति ट्रंप स्वयं भी अगले सप्ताह व्लादिमीर पुतिन से मिल सकते हैं। ऐसी अटकलें भी हैं कि यह संभावित मुलाकात यूक्रेन युद्ध को लेकर किसी समझौते की दिशा में बढ़ने की कोशिश हो सकती है।
ट्रंप प्रशासन का यह फैसला वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से एक बड़ा संकेत माना जा रहा है। एक ओर अमेरिका,रूस से ऊर्जा खरीदने वाले देशों पर दबाव बना रहा है,दूसरी ओर चीन के साथ टकराव टालने की रणनीति भी अपनाई जा रही है। इस बीच भारत को अमेरिका के इस नए फैसले के चलते आर्थिक मोर्चे पर नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
वर्तमान परिस्थिति में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस टैरिफ के जवाब में क्या रुख अपनाता है और चीन के प्रति अमेरिका का अगला कदम क्या होता है। वैश्विक मंच पर अब व्यापार,कूटनीति और भू-राजनीति का त्रिकोण फिर से नए सिरे से खिंचता नजर आ रहा है।