वाशिंगटन,24 जुलाई (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कड़ा और विवादास्पद एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी करते हुए सरकारी एजेंसियों में ‘वोक’ एआई के उपयोग पर रोक लगा दी है। ट्रंप ने अपने आदेश में साफ कहा है कि ऐसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) मॉडल्स तथ्यों को प्रभावित करते हैं और वैचारिक एजेंडों को बढ़ावा देते हैं,जो इतिहास और विज्ञान की विश्वसनीयता के लिए खतरनाक है। उनके मुताबिक,कई मौजूदा एआई सिस्टम्स विविधिता,समानता और समावेशन (डाइवर्सिटी, इक्विटी, इंक्लूजन यानी डीईआई) जैसे वैचारिक विचारों से प्रभावित हैं। ट्रंप ने इसे ‘फैक्ट्स के साथ खिलवाड़’ बताते हुए कहा कि यह प्रवृत्ति अमेरिकी मूल्यों और सच्चाई के विरुद्ध है।
ट्रंप प्रशासन द्वारा जारी इस आदेश में सरकारी एजेंसियों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तय किए गए हैं। अब से कोई भी सरकारी संस्था केवल उन्हीं लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (एलएलएम) को खरीद सकेगी,जो दो प्रमुख सिद्धांतों – सत्य और वैचारिक तटस्थता का पालन करेंगे। आदेश में कहा गया है कि एआई मॉडल्स को जवाब देते समय किसी भी वैचारिक झुकाव से बचना होगा और उन्हें केवल तथ्यों के आधार पर ही उत्तर देना होगा। एलएलएम बेचने वाली कंपनियों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके मॉडल किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा,खासकर डीईआई जैसे एजेंडों से प्रभावित न हों। ऐसा न करने पर सरकारी अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा।
ट्रंप ने अपने बयान में जोर देकर कहा कि उनका प्रशासन एआई के क्षेत्र में अमेरिका को दुनिया का सबसे उन्नत और शक्तिशाली देश बनाएगा। उन्होंने कहा, “मेरा प्रशासन यह सुनिश्चित करेगा कि संयुक्त राज्य अमेरिका पृथ्वी पर सबसे बड़ा,सबसे शक्तिशाली और सबसे उन्नत एआई ढाँचा तैयार करे और उसका रखरखाव करे। इसके लिए हम हर संभव साधन का उपयोग करेंगे।” उन्होंने वादा किया कि इस कदम से अमेरिका न केवल तकनीकी दृष्टि से बल्कि नैतिक और वैचारिक दृष्टिकोण से भी एआई के क्षेत्र में विश्व नेतृत्व करेगा।
ट्रंप का यह कदम अमेरिका में पहले से ही चल रहे राजनीतिक और वैचारिक बहस को और तेज कर सकता है। ‘वोक’ शब्द,जिसे मूल रूप से सामाजिक जागरूकता के लिए इस्तेमाल किया जाता था,अब अमेरिका में राजनीतिक रूप से विभाजनकारी बन गया है। पहले यह शब्द नस्लवाद,लैंगिक भेदभाव और सामाजिक अन्याय के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए उपयोग होता था,लेकिन हाल के वर्षों में इसका मतलब बदल गया है। अब इसे अक्सर उन विचारों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिन्हें ‘अत्यधिक राजनीतिक रूप से सही’ या ‘कट्टरपंथी प्रगतिशील’ माना जाता है। ट्रंप और उनके समर्थक लंबे समय से इसे अमेरिकी समाज और संस्थानों में वैचारिक पक्षपात का प्रतीक मानते रहे हैं।
ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि एआई का काम केवल सच्चाई प्रस्तुत करना है,न कि वैचारिक या राजनीतिक एजेंडों को बढ़ावा देना। उनका मानना है कि डीईआई जैसे विचार एआई के जरिए अमेरिकी इतिहास और विज्ञान के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर सकते हैं,जिससे भविष्य की पीढ़ियाँ गलत सूचनाओं के आधार पर अपनी राय बनाएँगी। उनका यह भी कहना है कि तकनीकी कंपनियाँ अक्सर इन विचारों को बढ़ावा देकर वैचारिक एकरूपता थोपने की कोशिश करती हैं,जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
हालाँकि,ट्रंप के आलोचकों का मानना है कि यह आदेश एआई पर राजनीतिक नियंत्रण का एक नया तरीका है। कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाया है कि ‘वैचारिक तटस्थता’ को मापने के मानक क्या होंगे और क्या यह आदेश खुद किसी राजनीतिक विचारधारा को बढ़ावा नहीं दे रहा। वहीं,ट्रंप समर्थकों का तर्क है कि यह कदम एआई में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने की दिशा में एक बड़ा सुधार है।
ट्रंप के इस फैसले का असर अमेरिकी तकनीकी उद्योग और वैश्विक एआई बाजार पर भी पड़ेगा। कई बड़ी कंपनियाँ,जो डीईआई जैसे मूल्यों को कॉर्पोरेट जिम्मेदारी का हिस्सा मानती हैं,अब सरकारी अनुबंधों के लिए अपने एआई मॉडल्स को संशोधित करने के लिए मजबूर होंगी। इससे न केवल तकनीकी विकास की दिशा बदलेगी, बल्कि एआई के नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण पर भी व्यापक बहस छिड़ सकती है।
ट्रंप का यह आदेश न केवल अमेरिका की सरकारी नीतियों में बदलाव का संकेत है, बल्कि यह एआई के भविष्य को लेकर वैश्विक बहस को भी नया मोड़ दे सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह कदम अमेरिका को एआई में निष्पक्षता दिलाने में सफल होगा या इसे केवल एक राजनीतिक चाल के रूप में देखा जाएगा।
