न्यूयॉर्क,10 सितंबर (युआईटीवी)- अमेरिका की राजनीति और अर्थव्यवस्था इस समय एक बड़े संवैधानिक विवाद के केंद्र में है। मामला है राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए पारस्परिक टैरिफ का,जिसे निचली अदालतों ने अवैध घोषित कर दिया था। अब यह मुद्दा अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक पहुँच चुका है,जिसने इस पर तेजी से सुनवाई करने का फैसला लिया है। मंगलवार को जारी एक अहस्ताक्षरित आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में नवंबर के पहले सप्ताह में मौखिक दलीलें सुनेगा। अदालत के इस कदम से साफ हो गया है कि आने वाले महीनों में यह विवाद न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक हलकों में भी बड़ी बहस का कारण बनेगा।
दरअसल,वाशिंगटन की फेडरल सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स ने पिछले महीने कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड के फैसले को बरकरार रखते हुए ट्रंप प्रशासन द्वारा शुरू की गई ट्रेड वार के तहत लगाए गए पारस्परिक टैरिफ को अवैध करार दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रपति ने इस मामले में संविधान द्वारा कांग्रेस को दिए गए अधिकारों का अतिक्रमण किया है। अमेरिकी संविधान के तहत टैरिफ लगाने और हटाने का विशेषाधिकार केवल कांग्रेस को प्राप्त है। ऐसे में राष्ट्रपति का यह कदम न केवल संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन है,बल्कि शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के भी खिलाफ है।
हालाँकि,अपील्स कोर्ट ने अपने आदेश पर 14 अक्टूबर तक रोक लगाई थी,ताकि ट्रंप प्रशासन सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सके। अब सुप्रीम कोर्ट ने यह रोक तब तक जारी रखने का निर्णय लिया है,जब तक कि अंतिम सुनवाई पूरी नहीं हो जाती। यह कदम ट्रंप प्रशासन के लिए फिलहाल एक राहत है,लेकिन असली चुनौती नवंबर में होने वाली मौखिक बहस और उसके बाद आने वाले फैसले में होगी।
ट्रंप प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि इस मामले की सुनवाई में तेजी लाई जाए। प्रशासन का तर्क था कि अगर सामान्य प्रक्रिया के तहत जून तक इंतजार करना पड़ा और तब कोई नकारात्मक फैसला आया,तो सरकार की वित्तीय स्थिति पर गंभीर असर पड़ेगा। उनके अनुसार,ऐसा होने पर सरकार को 750 बिलियन डॉलर से लेकर एक ट्रिलियन डॉलर तक की भारी राशि आयातकों और व्यापारिक कंपनियों को वापस करनी पड़ सकती है। यह अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर गहरा आघात होगा और सरकार के बजट संतुलन को बिगाड़ सकता है। इसी कारण प्रशासन चाहता है कि सुप्रीम कोर्ट जल्द से जल्द मामले का निपटारा करे।
इसी बीच,मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में भी ट्रंप प्रशासन को राहत दी। मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने एक फेडरल जज के आदेश को स्थगित कर दिया,जिसमें सरकार को कांग्रेस द्वारा स्वीकृत 4 अरब डॉलर की विदेशी सहायता को अनफ्रीज करने का निर्देश दिया गया था। ट्रंप प्रशासन ने इस सहायता राशि को रोककर रखा था और अब अदालत ने फिलहाल उस फैसले को लागू करने से मना कर दिया है। इससे यह संकेत मिलता है कि सुप्रीम कोर्ट इन मामलों में व्यापक संवैधानिक व्याख्या करने जा रहा है,जो कार्यपालिका और विधायिका के बीच अधिकारों की स्पष्टता तय कर सकता है।
ट्रंप ने टैरिफ लगाने के लिए इंटरनेशनल इकोनॉमिक इमरजेंसी पावर्स एक्ट (आईईईपीए) का सहारा लिया था। इस अधिनियम के तहत राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि यदि कोई गंभीर आर्थिक आपातकाल उत्पन्न हो जाए,तो वह व्यापार से संबंधित कुछ कदम उठा सकते हैं। ट्रंप ने तर्क दिया कि अमेरिका का बढ़ता हुआ व्यापार घाटा वास्तव में एक प्रकार का आर्थिक आपातकाल है और इसी आधार पर उन्होंने पारस्परिक टैरिफ लागू किए। उनका कहना था कि अगर कोई देश अमेरिकी वस्तुओं पर अधिक शुल्क लगाता है,तो अमेरिका को भी उसके सामान पर उतना ही शुल्क लगाना चाहिए।
लेकिन अदालतों ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। उनका मानना है कि आईईईपीए का उपयोग इस तरह से नहीं किया जा सकता,क्योंकि संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि टैरिफ और कर संबंधी अधिकार केवल कांग्रेस के पास हैं। राष्ट्रपति केवल उन्हीं परिस्थितियों में हस्तक्षेप कर सकते हैं,जिनकी अनुमति विधायी प्रावधानों में दी गई हो। इस लिहाज से ट्रंप का कदम न केवल एकतरफा था बल्कि शक्तियों की सीमाओं को पार करने वाला भी था।
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल दो अलग-अलग टैरिफ मामलों को एक साथ जोड़ दिया है। अदालत ने इस मामले में शामिल सभी पक्षों को लिखित दलीलें दाखिल करने की समय सीमा भी तय की है। अदालत के आदेश के मुताबिक,सभी पक्षों को 19 सितंबर तक अपना लिखित विवरण जमा करना होगा,इसके बाद 20 अक्टूबर तक जवाब दायर किए जाएँगे और 30 अक्टूबर तक अंतिम प्रत्युत्तर दाखिल किया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक बहस को केवल एक घंटे तक सीमित करने का भी निर्णय लिया है,जिससे यह स्पष्ट है कि अदालत इस मामले को अत्यधिक गंभीरता और तेजी के साथ निपटाना चाहती है।
यह पूरा विवाद अब अमेरिकी राजनीति में एक बड़ा संवैधानिक टकराव बन चुका है। एक ओर राष्ट्रपति का दावा है कि उन्हें आपातकालीन परिस्थितियों में आर्थिक कदम उठाने का अधिकार है,वहीं दूसरी ओर अदालतें और विपक्षी दल इस बात पर अड़े हैं कि राष्ट्रपति ने कांग्रेस के अधिकारों का उल्लंघन किया है। यह विवाद न केवल कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्ति संतुलन का मुद्दा है,बल्कि इससे अमेरिकी लोकतंत्र की संस्थागत संरचना पर भी बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
ट्रंप के टैरिफ विवाद ने अमेरिकी राजनीति में अधिकारों की परिभाषा और सीमाओं को लेकर गहन बहस छेड़ दी है। नवंबर के पहले सप्ताह में होने वाली सुनवाई न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से बल्कि संवैधानिक ढाँचे की मजबूती और संतुलन के लिहाज से भी ऐतिहासिक साबित हो सकती है। अब पूरी दुनिया की निगाहें अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं,जो यह तय करेगा कि आर्थिक आपातकाल के नाम पर राष्ट्रपति कहाँ तक अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं और कहाँ संविधान की सीमाएँ उन्हें रोकती हैं।
