प्रधानमंत्री मोदी और डोनाल्ड ट्रंप

ट्रंप के दवा मूल्य कटौती फैसले से वैश्विक फार्मा बाजार में हलचल,भारतीय जेनेरिक उद्योग पर भी पड़ेगा असर

वाशिंगटन,20 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दवाओं की कीमतों में बड़ी कटौती का ऐलान कर वैश्विक फार्मास्युटिकल बाजार में नई बहस और हलचल पैदा कर दी है। ट्रंप की इस घोषणा को अमेरिकी स्वास्थ्य व्यवस्था में एक बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है,लेकिन इसके प्रभाव केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहने वाले हैं। माना जा रहा है कि इस फैसले का असर पूरी दुनिया के दवा बाजार पर पड़ेगा,जिसमें भारत का मजबूत और तेजी से बढ़ता जेनेरिक दवाओं का निर्यात क्षेत्र भी शामिल है।

दवाओं की कीमतों को लेकर ट्रंप ने साफ शब्दों में कहा कि अब अमेरिका में लोगों को दवाओं के लिए दुनिया में कहीं भी ली जाने वाली सबसे कम कीमत से ज्यादा भुगतान नहीं करना पड़ेगा। उन्होंने इसे “सबसे पसंदीदा देश” वाली कीमत व्यवस्था बताया। ट्रंप के अनुसार,अमेरिका अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दवाओं की कीमतों की तुलना करेगा और उसी आधार पर घरेलू बाजार में दाम तय करेगा। इसका मतलब यह होगा कि यदि कोई दवा किसी अन्य देश में सस्ती मिल रही है,तो अमेरिका में भी वही कीमत लागू होगी।

यह घोषणा स्वास्थ्य क्षेत्र और कई बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में की गई। ट्रंप ने अपने संबोधन में कहा कि दशकों से अमेरिकी नागरिकों को दुनिया में सबसे महँगी दवाएँ खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि दवा कंपनियों ने अमेरिका को अपने मुनाफे का सबसे बड़ा स्रोत बना लिया था,जबकि बाकी देशों में वही दवाएँ कहीं सस्ते दामों पर बेची जाती थीं। राष्ट्रपति ने दावा किया कि अब इस असंतुलन को खत्म किया जाएगा और अमेरिकी उपभोक्ताओं को भी वही राहत मिलेगी,जो अब तक अन्य देशों को मिलती रही है।

ट्रंप ने यह भी कहा कि कई बड़ी दवा कंपनियाँ उनकी सरकार के साथ बातचीत के बाद प्रमुख दवाओं की कीमतों में भारी कटौती पर सहमत हो गई हैं। उनके अनुसार,कुछ दवाओं की कीमतें तीन सौ से लेकर सात सौ प्रतिशत तक घटाई जाएँगी। अगर यह दावा जमीनी स्तर पर लागू होता है,तो यह अमेरिका के स्वास्थ्य खर्च में ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है। खासतौर पर बुजुर्गों और लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए यह फैसला बड़ी राहत के तौर पर देखा जा रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह भी संकेत दिया कि उनकी सरकार विदेशी सरकारों पर दवाओं की कीमतें कम करने का दबाव बनाने के लिए शुल्क यानी टैरिफ का सहारा ले सकती है। ट्रंप के मुताबिक,यदि अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ या सरकारें कीमतों को लेकर सहयोग नहीं करतीं,तो अमेरिका आयात शुल्क जैसे कदम उठा सकता है। उन्होंने दावा किया कि इस नीति के लागू होने के बाद अमेरिका में दवाओं की कीमतें विकसित देशों में सबसे कम स्तर पर होंगी और अमेरिकी बाजार को दुनिया में कहीं भी मिलने वाली सबसे सस्ती कीमत का फायदा मिलेगा।

ट्रंप ने इस नई नीति को अमेरिका में ही दवा निर्माण बढ़ाने की रणनीति से भी जोड़ा। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा दवा कंपनियाँ अमेरिका में ही अपने कारखाने लगाएँ। ट्रंप के अनुसार,कई कंपनियाँ पहले ही अमेरिका आने का फैसला कर चुकी हैं और इससे न केवल दवाओं की सप्लाई मजबूत होगी,बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। यह बयान उनकी “अमेरिका फर्स्ट” आर्थिक नीति के अनुरूप माना जा रहा है,जिसमें घरेलू उत्पादन और निवेश को प्राथमिकता दी जाती है।

हालाँकि,इस घोषणा का असर अमेरिका के बाहर भी साफ तौर पर महसूस किया जा सकता है,खासकर भारत जैसे देशों में। भारत दुनिया में जेनेरिक दवाओं का एक बड़ा उत्पादक और निर्यातक है और अमेरिका भारतीय फार्मा उद्योग के लिए सबसे बड़ा बाजार माना जाता है। भारत लंबे समय से अमेरिका को सस्ती जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करता रहा है,विशेष रूप से मधुमेह,हृदय रोग,कैंसर और अन्य दीर्घकालिक बीमारियों की दवाओं के मामले में। ऐसे में अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दवाओं की कीमत तय करने की किसी भी नीति का सीधा असर भारतीय कंपनियों पर पड़ सकता है।

भारत में दवाओं की कीमतें अक्सर दुनिया में सबसे कम मानी जाती हैं। यही वजह है कि अमेरिका की नई नीति भारतीय फार्मास्युटिकल एक्सपोर्टर्स के लिए एक तरफ अवसर और दूसरी तरफ चुनौती दोनों बन सकती है। यदि अमेरिका दुनिया की सबसे कम कीमत को मानक बनाता है,तो भारतीय कंपनियों को इसका फायदा मिल सकता है,क्योंकि कई मामलों में वही कीमत वैश्विक स्तर पर सबसे कम होती है। लेकिन दूसरी ओर,कीमतों पर और दबाव बढ़ने से मुनाफे की मार्जिन घटने की आशंका भी है,खासकर उन कंपनियों के लिए जो पहले से ही बेहद प्रतिस्पर्धी कीमतों पर दवाएं सप्लाई कर रही हैं।

भारतीय फार्मा उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी बाजार भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की बड़ी हिस्सेदारी भारतीय कंपनियों के पास है। ऐसे में किसी भी नीति बदलाव पर भारतीय कंपनियाँ करीबी नजर रखती हैं। ट्रंप की घोषणा के बाद भारतीय दवा कंपनियों और निर्यातकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि आने वाले समय में अमेरिकी नियमों और कीमत निर्धारण की प्रक्रिया में क्या बदलाव होंगे।

अमेरिका में दवाओं की ऊँची कीमतों को लेकर लंबे समय से विवाद चलता रहा है। दवा कंपनियों का तर्क रहा है कि वे ऊँची कीमतें इसलिए रखती हैं,ताकि रिसर्च और डेवलपमेंट में निवेश किया जा सके और नई,जीवनरक्षक दवाएँ विकसित की जा सकें। वहीं,उपभोक्ता संगठनों और आम लोगों का कहना है कि इन महँगी दवाओं का बोझ सीधे जनता की जेब पर पड़ता है और कई मरीज इलाज से वंचित रह जाते हैं।

ट्रंप का यह फैसला इसी बहस के केंद्र में खड़ा नजर आता है। एक तरफ यह मरीजों को राहत देने का वादा करता है,तो दूसरी ओर यह वैश्विक दवा उद्योग के बिजनेस मॉडल को चुनौती देता है। आने वाले महीनों में यह साफ होगा कि यह नीति किस हद तक लागू होती है और इसका वैश्विक फार्मा बाजार,खासकर भारत जैसे प्रमुख जेनेरिक दवा निर्यातक देशों पर क्या वास्तविक असर पड़ता है। फिलहाल इतना तय है कि ट्रंप के इस ऐलान ने दवाओं की कीमतों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है।