नई दिल्ली,28 अक्टूबर (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अपनी वैश्विक शांति मिशन की नीति को आगे बढ़ाते हुए अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सुलह कराने की दिशा में सक्रिय हो गए हैं। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच युद्धविराम समझौते के बाद ट्रंप ने यह संकेत दिया कि अब उनका अगला लक्ष्य अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से जारी तनाव को समाप्त कर स्थायी शांति की नींव रखना है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच वार्ता और आपसी विश्वास का माहौल बनाना दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक है।
ट्रंप प्रशासन ने पहले भी कई बार दावा किया है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में “सात बड़े युद्ध” रोकवाए हैं और अब वह अफगानिस्तान-पाकिस्तान संघर्ष को भी समाप्त कर इस सूची में एक और सफलता जोड़ना चाहते हैं। बीते सप्ताह दोहा में दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच हुए सीजफायर समझौते ने उम्मीद की एक नई किरण जगाई थी,लेकिन इसके बावजूद सीमा क्षेत्रों में हिंसक झड़पें थमने का नाम नहीं ले रही हैं।
दोहा में 18 और 19 अक्टूबर को हुए युद्धविराम समझौते के तहत यह तय हुआ था कि संघर्षविराम की स्थिति पर लगातार निगरानी रखी जाएगी और इसके उल्लंघन की स्थिति में दोनों पक्ष नियमित बैठकों के माध्यम से विवादों का समाधान निकालेंगे। अगली बैठक तुर्किए में होनी थी,लेकिन समझौते के मसौदे पर असहमति के कारण यह बैठक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई। इस असहमति के बावजूद कतर और तुर्किए दोनों ही अब मध्यस्थ के रूप में काम कर रहे हैं और वार्ता को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिशों में जुटे हैं।
कतर स्थित सूत्रों ने अफगान मीडिया टोलो न्यूज को बताया कि काबुल की ओर से तैयार एक नया मसौदा प्रस्ताव मध्यस्थों के माध्यम से इस्लामाबाद के प्रतिनिधिमंडल को भेजा गया है। इसी तरह पाकिस्तान ने भी अपने शर्तों वाला प्रस्ताव अफगानिस्तान के प्रतिनिधियों तक पहुँचाया है। दोनों मसौदों में कुछ बिंदुओं पर सहमति दिखाई दे रही है,लेकिन प्रमुख विवाद सीमाओं और हवाई क्षेत्र के उल्लंघन से जुड़ा है।
अफगानिस्तान ने अपने प्रस्ताव में यह स्पष्ट रूप से कहा है कि पाकिस्तान को उसके हवाई क्षेत्र या भूमि सीमाओं का कोई उल्लंघन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा,काबुल ने यह भी माँग की है कि पाकिस्तान अपनी भूमि का उपयोग अफगान सरकार के खिलाफ काम करने वाले किसी भी विपक्षी समूह को नहीं करने देगा। यह मुद्दा विशेष रूप से अफगान तालिबान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की गतिविधियों से जुड़ा है,जिन्हें लेकर दोनों देशों के बीच लंबे समय से अविश्वास बना हुआ है।
दूसरी ओर,पाकिस्तान की ओर से डॉन न्यूज की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस्लामाबाद के सुरक्षा अधिकारियों ने कहा है कि पाकिस्तान ने अपनी अंतिम स्थिति अफगान प्रतिनिधिमंडल के सामने रख दी है और अब आगे का निर्णय काबुल को करना है। पाकिस्तान का रुख यह रहा है कि अफगानिस्तान उसकी सीमा के भीतर सक्रिय आतंकवादी समूहों को रोकने में विफल रहा है,जिनकी गतिविधियाँ पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन रही हैं।
इन सभी वार्ताओं के बीच पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने दोहा वार्ता में अपने प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए कड़े शब्दों में कहा कि यदि अफगानिस्तान के साथ समझौते पर सहमति नहीं बन पाई तो यह स्थिति “खुले युद्ध” का रूप ले सकती है। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है,जब अफगान सीमा के नजदीक हाल के महीनों में कई बार गोलीबारी और हवाई हमले हुए हैं,जिनमें दोनों देशों के सैनिकों और नागरिकों की जानें गई हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की पहल इस जटिल स्थिति में एक नया कूटनीतिक मोड़ ला सकती है। वॉशिंगटन में व्हाइट हाउस अधिकारियों का मानना है कि यदि अमेरिका इस संघर्ष में मध्यस्थता करता है तो यह न केवल दक्षिण एशिया में स्थिरता लाने में मदद करेगा,बल्कि चीन और रूस जैसी ताकतों के प्रभाव को भी संतुलित करेगा। ट्रंप प्रशासन पहले ही तालिबान के साथ वार्ता के माध्यम से अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का बड़ा कदम उठा चुका है और अब वह पाकिस्तान-अफगान रिश्तों में सुधार लाकर इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को बनाए रखना चाहता है।
हालाँकि,विशेषज्ञों का मानना है कि यह रास्ता इतना आसान नहीं है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराना अविश्वास,सीमा विवाद,आतंकी गतिविधियाँ और राजनीतिक मतभेद इस संघर्ष को जटिल बना देते हैं। काबुल सरकार का आरोप है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां कुछ आतंकी गुटों को समर्थन देती हैं,जबकि पाकिस्तान का कहना है कि अफगानिस्तान में मौजूद चरमपंथी गुट उसकी सीमा पर अस्थिरता फैला रहे हैं।
इन तमाम चुनौतियों के बीच यह स्पष्ट है कि यदि ट्रंप प्रशासन इस शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सफल होता है,तो यह न केवल दक्षिण एशिया बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सकारात्मक संकेत होगा। कतर और तुर्किए जैसे देशों की मध्यस्थता इस पहल को अतिरिक्त बल दे रही है। परंतु,जब तक दोनों देशों के बीच विश्वास का वातावरण नहीं बनता और आतंकवाद के मुद्दे पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते,तब तक यह सीजफायर केवल कागजों तक सीमित रह सकता है।
ट्रंप का यह प्रयास उनके वैश्विक शांति एजेंडे का एक और अध्याय बन सकता है,बशर्ते पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों इस अवसर को ईमानदारी से लें और अपने विवादों को बातचीत से सुलझाने की दिशा में ठोस कदम उठाएँ। वर्तमान स्थिति में यह पहल क्षेत्रीय शांति की दिशा में एक नाजुक लेकिन अहम मोड़ साबित हो सकती है।

