अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप (तस्वीर क्रेडिट@your_bhupesh)

ट्रंप के टैरिफ फैसलों पर अमेरिकी डेमोक्रेट्स की कड़ी चेतावनी,यूएस-भारत रणनीतिक साझेदारी पर मंडराया संकट

वॉशिंगटन,11 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए कड़े टैरिफ को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप पर आयोजित कांग्रेस की एक अहम सुनवाई के दौरान डेमोक्रेट नेताओं ने ट्रंप प्रशासन को तीखी चेतावनी दी कि उनका टैरिफ सिस्टम और भारत के प्रति टकराव भरा रवैया न सिर्फ दशकों की द्विपक्षीय प्रगति को कमजोर कर सकता है,बल्कि अमेरिका के सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार को दूर भी कर सकता है। यह चेतावनी ऐसे समय सामने आई है,जब भारत-अमेरिका संबंधों को दुनिया की सबसे अहम रणनीतिक साझेदारियों में से एक माना जाता है,खासकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन जैसी चुनौती से निपटने के लिए दोनों देशों का सहयोग बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।

हाउस फॉरेन अफेयर्स सब-कमेटी ऑन साउथ एंड सेंट्रल एशिया की इस सुनवाई में डेमोक्रेटिक रैंकिंग मेंबर सिडनी कामलेगर-डोव ने राष्ट्रपति ट्रंप पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने पिछले कई दशकों में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों पार्टियों की सरकारों द्वारा मिलकर बनाई गई द्विपक्षीय प्रगति को पीछे धकेल दिया है। उनके मुताबिक बाइडेन प्रशासन ने ट्रंप को एक मजबूत और फलती-फूलती साझेदारी सौंपी थी,जिसमें क्वाड की दोबारा सक्रियता,तेजी से उभरती रक्षा तकनीक साझेदारी और भरोसेमंद सप्लाई चेन का निर्माण भी शामिल था,लेकिन ट्रंप के फैसलों ने इन उपलब्धियों को क्षति पहुँचाई है और इससे अमेरिका की रणनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है।

कामलेगर-डोव ने अपने संबोधन में कहा कि इतिहास ट्रंप को कड़ा सबक सिखा सकता है,जब तक कि वह अपने रवैये में परिवर्तन नहीं लाते। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसी स्थिति में ट्रंप इतिहास में उस अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर याद किए जाएँगे,जिन्होंने भारत जैसा महत्वपूर्ण साझेदार खो दिया। डेमोक्रेट्स का कहना है कि एक राष्ट्रपति अपने प्रमुख रणनीतिक साझेदारों को दूर धकेलकर या उन पर आर्थिक दबाव बनाकर नोबेल शांति पुरस्कार नहीं जीत सकता। उनका आरोप है कि ट्रंप के निर्णय भारत को उसके विरोधियों के करीब धकेलने का जोखिम पैदा कर रहे हैं।

यह विवाद ट्रंप द्वारा लागू किए गए 25 प्रतिशत ‘लिबरेशन डे टैरिफ’ से जुड़ा है। भारत के रूस से तेल आयात करने से नाराज ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया था,जिसके चलते भारत पर कुल 50 प्रतिशत तक का शुल्क भार आ गया। डेमोक्रेट्स ने इस नीति को आत्मघाती करार देते हुए कहा कि भारत पर लगाया गया यह टैरिफ मौजूदा समय में चीन पर लगाए गए शुल्क से भी ज्यादा है,जो अमेरिका की अपनी घोषित रणनीति से उलट है। डेमोक्रेट नेताओं का कहना है कि ऐसा करते हुए ट्रंप प्रशासन भूल रहा है कि भारत अमेरिका के लिए एशिया में सबसे मजबूत साझेदार है और उसके खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाना वॉशिंगटन के दीर्घकालिक हितों को कमजोर कर सकता है।

सिर्फ व्यापारिक शुल्क ही नहीं,बल्कि एच-1बी वीजा प्रणाली में किए गए बदलावों को लेकर भी ट्रंप को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। ट्रंप ने एच-1बी वीजा पर 100,000 डॉलर की अत्यधिक फीस लगा दी है,जबकि इन वीज़ाओं का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा भारतीयों के पास होता है। डेमोक्रेट्स का कहना है कि यह नीति अमेरिका में भारतीय समुदाय के अविश्वसनीय योगदान का अपमान है और इससे दोनों देशों के लोगों के बीच बने घनिष्ठ रिश्तों को नुकसान पहुँच सकता है। तकनीकी क्षेत्र में अमेरिकी कंपनियाँ भारतीय पेशेवरों पर काफी निर्भर रहती हैं और शुल्क बढ़ाने से अमेरिकी उद्योगों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

इस सुनवाई के दौरान भारत के प्रमुख थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के अमेरिका स्थित सहयोगी ध्रुव जयशंकर ने भी अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता 13 फरवरी से पहले ही शुरू हो चुकी थी और जुलाई के आसपास दोनों पक्ष एक व्यापक समझौते के बेहद करीब थे। जयशंकर के अनुसार भारत सक्रिय रूप से मुक्त व्यापार समझौतों पर काम कर रहा है और अगर वाशिंगटन में राजनीतिक इच्छाशक्ति मौजूद है,तो विवादों का समाधान निकट भविष्य में संभव है।

हालाँकि,विशेषज्ञों ने यह भी चेतावनी दी कि लगातार बढ़ते टैरिफ तनाव के चलते चीन का मुकाबला करने,सप्लाई चेन को स्थिर बनाने और इंडो-पैसिफिक में साझा रणनीतियों को मजबूत करने जैसी जरूरी प्राथमिकताएँ खतरे में पड़ सकती हैं। इस मुद्दे पर बोलते हुए पैनल के एक अन्य सदस्य स्मिथ ने कहा कि भारत-अमेरिका साझेदारी अमेरिका के लिए कम लागत वाली लेकिन अत्यधिक लाभ देने वाली साझेदारी रही है। उनकी मान्यता है कि भारत के साथ बनाए गए विश्वास को कमजोर करना एक बड़ी रणनीतिक भूल साबित होगी।

सुनवाई के निष्कर्ष साफ तौर पर संकेत देते हैं कि भारत-अमेरिका संबंधों में टैरिफ से जुड़ा विवाद अब सबसे संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। यदि यह तनाव बढ़ता है,तो इससे न केवल दोनों देशों के आर्थिक संबंधों पर असर पड़ेगा,बल्कि भू-राजनीतिक समीकरणों में भी बड़ा बदलाव आ सकता है। ऐसे समय में जब चीन वैश्विक मंच पर अपनी आक्रामकता बढ़ा रहा है और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ रही है,भारत और अमेरिका के बीच विवाद किसी भी पक्ष के हित में नहीं है। इसलिए यह देखना अहम होगा कि क्या ट्रंप प्रशासन इस चेतावनी को गंभीरता से लेता है और क्या दोनों देश अपनी साझेदारी को पटरी पर लाने के लिए कोई ठोस कदम उठाते हैं।