अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो (तस्वीर क्रेडिट@HonAdenDuale)

यूक्रेन युद्ध पर अमेरिका की मध्यस्थता का दावा: मार्को रूबियो बोले—शांति का रास्ता सिर्फ बातचीत से ही निकलेगा

वॉशिंगटन,20 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने शुक्रवार को यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका की भूमिका पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि दुनिया में केवल एक ही देश ऐसा है जो रूस और यूक्रेन—दोनों से सीधे बात कर इस युद्ध को खत्म करने का रास्ता तलाश सकता है और वह देश अमेरिका है। रूबियो के इस बयान को वॉशिंगटन की कूटनीतिक रणनीति और यूक्रेन संकट में उसकी केंद्रीय भूमिका के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अमेरिका किसी भी पक्ष पर समझौता थोपने की कोशिश नहीं कर रहा,बल्कि दोनों देशों के बीच संवाद के जरिए समाधान निकालने का प्रयास कर रहा है।

रूबियो ने कहा कि “धरती पर सिर्फ एक ही देश है,धरती पर सिर्फ एक ही ऐसी संस्था है,जो वास्तव में दोनों पक्षों से बात कर सकती है और यह समझ सकती है कि इस युद्ध को शांति से खत्म करने का कोई तरीका है या नहीं और वह यूनाइटेड स्टेट्स है।” उनके मुताबिक, अमेरिका ने इस दिशा में काफी समय लगाया है और वरिष्ठ स्तर पर लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कोई तात्कालिक प्रक्रिया नहीं है,बल्कि इसमें धैर्य,निरंतर संवाद और गहन कूटनीति की जरूरत होती है।

विदेश मंत्री ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका का जिक्र करते हुए कहा कि ट्रंप ने यूक्रेन युद्ध पर किसी भी अन्य विषय की तुलना में सबसे ज्यादा बैठकें की हैं। यहाँ तक कि व्यापार जैसे अहम मुद्दों से भी ज्यादा समय उन्होंने इस संघर्ष पर चर्चा में लगाया है। रूबियो के अनुसार,इससे यह साफ होता है कि अमेरिकी प्रशासन इस युद्ध को कितनी गंभीरता से ले रहा है और इसे खत्म करने के लिए कितना प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि व्हाइट हाउस का मकसद केवल संघर्ष को रोकना नहीं,बल्कि ऐसा समाधान ढूँढ़ना है,जो लंबे समय तक टिकाऊ हो।

रूबियो ने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिका किसी पर कोई समझौता थोपना नहीं चाहता। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया इस बारे में नहीं है कि वॉशिंगटन क्या चाहता है,बल्कि इस पर केंद्रित है कि दोनों पक्ष—रूस और यूक्रेन—क्या उम्मीद करते हैं, उन्हें क्या चाहिए और वे बदले में क्या देने को तैयार हैं। उनके अनुसार,किसी भी शांति समझौते की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों पक्ष अपने-अपने हितों के साथ बातचीत की मेज पर कितनी गंभीरता से आते हैं।

यूक्रेन युद्ध की मौजूदा स्थिति को देखते हुए रूबियो ने कहा कि निकट भविष्य में किसी भी पक्ष की ओर से आत्मसमर्पण की संभावना नहीं दिखती। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि ऐसे हालात में युद्ध को खत्म करने का एकमात्र रास्ता बातचीत ही है। उनके अनुसार, सैन्य रूप से निर्णायक जीत की उम्मीद कम है,इसलिए राजनीतिक और कूटनीतिक समाधान पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी हो जाता है। हालाँकि,उन्होंने यह भी जोड़ा कि किसी भी तरह के समझौते के लिए दोनों पक्षों को साथ आना होगा और अंतिम फैसले लड़ने वाले देशों को ही लेने होंगे।

रूबियो ने दो टूक कहा कि यूक्रेन और रूस के भविष्य का फैसला अमेरिका नहीं करेगा। उन्होंने कहा, “यह फैसला यूक्रेन और रूस का होगा। यह अमेरिका का फैसला नहीं होगा।” इस बयान के जरिए उन्होंने उन आलोचनाओं को खारिज करने की कोशिश की,जिनमें कहा जाता है कि अमेरिका इस युद्ध में अपनी शर्तें थोपना चाहता है। उनके मुताबिक,अमेरिका की भूमिका एक मध्यस्थ की है,जो संवाद का मंच तैयार कर सकता है,लेकिन अंतिम सहमति संबंधित पक्षों को ही बनानी होगी।

विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि ऐसे संवेदनशील कूटनीतिक प्रयास मीडिया या प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए नहीं किए जा सकते। उनके अनुसार,शांति वार्ताएँ अक्सर बंद कमरों में होती हैं,जहाँ खुले बयानबाजी की बजाय गहन और गोपनीय चर्चा की जरूरत होती है। उन्होंने स्वीकार किया कि इस प्रक्रिया में बहुत समय और बहुत मेहनत लगती है और त्वरित नतीजों की उम्मीद करना अव्यावहारिक होगा।

गौरतलब है कि फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद यह संघर्ष दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप का सबसे बड़ा सैन्य टकराव बन गया। इस युद्ध ने न केवल यूक्रेन और रूस को गहरे संकट में डाला है,बल्कि पूरे यूरोप और वैश्विक राजनीति पर इसका असर पड़ा है। कीव को अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से बड़े पैमाने पर सैन्य,वित्तीय और कूटनीतिक समर्थन मिला है,जबकि रूस ने अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रतिबंधों का विरोध करने वाले देशों के साथ अपने संबंध और मजबूत किए हैं।

इस युद्ध का प्रभाव वैश्विक ऊर्जा बाजार पर भी साफ दिखा है। तेल और गैस की कीमतों में उतार-चढ़ाव,यूरोप की ऊर्जा सुरक्षा को लेकर बढ़ी चिंताएँ और नए सप्लाई रूट्स की तलाश—ये सभी इस संघर्ष के प्रत्यक्ष परिणाम हैं। इसके साथ ही यूरोपीय सुरक्षा व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक गठबंधनों में भी बड़े बदलाव आए हैं। नाटो का विस्तार,यूरोपीय देशों के रक्षा बजट में बढ़ोतरी और अमेरिका की भूमिका का और मजबूत होना इसी संघर्ष की देन माने जा रहे हैं।

वॉशिंगटन इस युद्ध को अंतर्राष्ट्रीय नियमों और व्यवस्था की परीक्षा के तौर पर पेश करता रहा है। अमेरिका का तर्क है कि यदि रूस जैसे देश को सैन्य बल के जरिए सीमाएँ बदलने की अनुमति दी जाती है,तो यह वैश्विक व्यवस्था के लिए खतरनाक मिसाल बनेगी। इसी वजह से अमेरिका लगातार यूक्रेन के समर्थन और रूस पर दबाव की नीति अपनाए हुए है,साथ ही बातचीत के रास्ते खुले रखने का दावा भी कर रहा है।

मार्को रूबियो के बयान से यह संकेत मिलता है कि अमेरिका आने वाले समय में भी यूक्रेन युद्ध में अपनी सक्रिय कूटनीतिक भूमिका बनाए रखना चाहता है। हालाँकि,यह देखना अहम होगा कि क्या रूस और यूक्रेन वास्तव में किसी साझा समाधान की दिशा में आगे बढ़ते हैं या यह संघर्ष अभी और लंबा खिंचता है। फिलहाल,वॉशिंगटन खुद को उस मंच के रूप में पेश कर रहा है,जहाँ से शांति की पहल संभव हो सकती है,बशर्ते दोनों पक्ष इसके लिए तैयार हों।