नई दिल्ली,22 सितंबर (युआईटीवी)- न्यूयॉर्क में सोमवार को भारत और फिलीपींस के बीच रणनीतिक साझेदारी को एक नया आयाम मिला। अवसर था संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 80वें सत्र की शुरुआत से पहले भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और फिलीपींस की विदेश मंत्री थेरेसा लाजारो की मुलाकात का। यह बैठक हाल ही में फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड आर. मार्कोस जूनियर की भारत यात्रा के बाद हुई,जिसने दोनों देशों के संबंधों को नई गति दी थी। जयशंकर और लाजारो की इस चर्चा ने न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत किया,बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग को लेकर भी नई संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त किया।
विदेश मंत्री जयशंकर ने मुलाकात के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए कहा कि न्यूयॉर्क में लाजारो से मिलना उनके लिए खुशी की बात रही। उन्होंने इस बातचीत में राष्ट्रपति मार्कोस जूनियर की हालिया भारत यात्रा के दौरान उठाए गए मुद्दों को आगे बढ़ाने और संयुक्त राष्ट्र के ढाँचे में मिलकर काम करने पर विशेष जोर दिया। जयशंकर ने यह भी कहा कि दोनों देशों ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति,स्थिरता और सहयोग सुनिश्चित करने के लिए अपने साझा दृष्टिकोण पर विचार-विमर्श किया।
फिलीपींस की विदेश मंत्री थेरेसा लाजारो ने भी इस मुलाकात पर संतोष जताते हुए कहा कि यह बातचीत भारत और फिलीपींस की उस साझा प्रतिबद्धता को दोहराती है,जिसके तहत दोनों देश राजनीतिक,रक्षा और सुरक्षा,समुद्री क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों में अपने सहयोग को सक्रिय रूप से विकसित करना चाहते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत और फिलीपींस अब केवल क्षेत्रीय साझेदार नहीं,बल्कि रणनीतिक भागीदार के रूप में भी उभर रहे हैं,जो वैश्विक चुनौतियों का संयुक्त रूप से सामना करने के लिए तत्पर हैं।
दरअसल,अगस्त की शुरुआत में फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड आर. मार्कोस जूनियर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर भारत की पाँच दिवसीय राजकीय यात्रा की थी। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई अहम समझौते हुए और आपसी सहयोग की नई दिशा तय की गई। नई दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में आयोजित संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-फिलीपींस संबंधों की गहराई पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि “हम अपनी पसंद से मित्र और नियति से साझेदार हैं।” यह बयान दोनों देशों के रिश्तों में आई नई गर्मजोशी को बखूबी दर्शाता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी रेखांकित किया कि भले ही भारत और फिलीपींस के राजनयिक संबंध अपेक्षाकृत नए हों,लेकिन दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंध प्राचीन काल से चले आ रहे हैं। उन्होंने फिलीपींस में लोकप्रिय रामायण-आधारित महाकाव्य ‘महाराडिया लावना’ का उल्लेख करते हुए इसे हजारों वर्षों पुराने सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रमाण बताया। इस सांस्कृतिक विरासत ने भारत और फिलीपींस के लोगों के बीच गहरी आत्मीयता और समझ विकसित करने में मदद की है।
फिलीपींस के राष्ट्रपति मार्कोस जूनियर ने अपनी यात्रा के दौरान भारत के रक्षा उद्योग की बढ़ती क्षमताओं की सराहना की थी। उन्होंने कहा था कि फिलीपींस अपने रक्षा आधुनिकीकरण कार्यक्रम को गति दे रहा है और इस दिशा में भारत की तकनीकी विशेषज्ञता और स्वदेशी रक्षा उत्पादन क्षमताएँ अत्यंत उपयोगी साबित होंगी। विशेष रूप से ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना को दोनों देशों के रक्षा सहयोग का प्रमुख उदाहरण बताया गया। यह परियोजना न केवल फिलीपींस की सुरक्षा क्षमताओं को मजबूत करती है,बल्कि भारत की ‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी वैश्विक स्तर पर स्थापित करती है।
भारत और फिलीपींस के बीच संबंधों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि दोनों देश केवल द्विपक्षीय लाभ तक सीमित नहीं रहना चाहते। उनका मकसद क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी मिलकर काम करना है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जहाँ समुद्री सुरक्षा,मुक्त व्यापार और स्वतंत्र नौवहन जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं,वहीं भारत और फिलीपींस जैसे लोकतांत्रिक देश इन चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोग का नया मॉडल प्रस्तुत कर सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा जैसे वैश्विक मंच पर जयशंकर और लाजारो की मुलाकात यह संकेत देती है कि भारत और फिलीपींस भविष्य की कूटनीति में एक-दूसरे की प्राथमिकताओं को समझते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं। यह न केवल दोनों देशों के लिए,बल्कि पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए सकारात्मक संदेश है।
इस बैठक से यह भी साफ हो गया है कि भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ और फिलीपींस की ‘वेस्टवर्ड एंगेजमेंट’ रणनीति एक-दूसरे को पूरक हैं। भारत फिलीपींस को दक्षिण-पूर्व एशिया में एक महत्वपूर्ण साझेदार मानता है,जबकि फिलीपींस भारत को इंडो-पैसिफिक में संतुलन और स्थिरता का आधारभूत स्तंभ मानता है।
न्यूयॉर्क में हुई इस मुलाकात ने यह साबित कर दिया कि भारत और फिलीपींस केवल भौगोलिक दूरी से नहीं,बल्कि साझा दृष्टिकोण और समान मूल्यों से भी जुड़े हुए हैं। आने वाले समय में यह साझेदारी रक्षा,समुद्री सहयोग,व्यापार,प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे क्षेत्रों में और गहराई पाएगी। संयुक्त राष्ट्र महासभा से ठीक पहले हुई यह वार्ता भविष्य की साझेदारी के लिए एक मजबूत नींव का काम करेगी।