न्यूयॉर्क,24 सितंबर (युआईटीवी)- संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के मंच से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से अपने कार्यकाल की उपलब्धियों को गिनाया और दावा किया कि उन्होंने दुनिया की सात बड़ी जंगों को खत्म कराया। अपने भाषण में उन्होंने खुद को “शांति का वाहक” बताते हुए कहा कि भले ही उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार न मिला हो,लेकिन उनके लिए असली इनाम यह है कि लाखों लोग अब जंग में नहीं मारे जा रहे हैं। ट्रंप का यह भाषण उनके दूसरे कार्यकाल में पहली बार यूएनजीए को संबोधित करने का अवसर था। आखिरी बार उन्होंने 2020 में बतौर राष्ट्रपति महासभा को संबोधित किया था।
ट्रंप ने अपने संबोधन की शुरुआत अमेरिका की आर्थिक और राजनीतिक उपलब्धियों से की। उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल के पहले आठ महीने देश के लिए “स्वर्णिम युग” जैसे रहे। उन्होंने अपनी विदेश नीति की दिशा पर भी चर्चा की और कहा कि अमेरिका अब भी दुनिया में स्थिरता का प्रतीक है। हालाँकि,उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संगठन की आलोचना करते हुए कहा कि इसने उनकी विदेश नीति से जुड़े किसी भी काम में मदद नहीं की। ट्रंप ने तंज कसते हुए कहा कि यह संगठन अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में असफल साबित हो रहा है और इसे सुधार की जरूरत है।
अपने दावों को मजबूती देते हुए ट्रंप ने उन सात संघर्षों का उल्लेख किया,जिन्हें उन्होंने अपने कार्यकाल में रुकवाने का श्रेय लिया। उन्होंने कहा कि कंबोडिया और थाईलैंड के बीच,कोसोवो और सर्बिया के बीच,कांगो और रवांडा के बीच,पाकिस्तान और भारत के बीच,इजराइल और ईरान के बीच,मिस्र और इथियोपिया के बीच तथा आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच जंग को खत्म कराने में उनकी भूमिका रही। ट्रंप ने कहा कि यह काम किसी और के बस की बात नहीं थी और यह उनके कड़े फैसलों और अमेरिका की सख्त विदेश नीति का नतीजा था।
ट्रंप ने कहा, “हर कोई कहता है कि मुझे इन कामयाबियों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए,लेकिन मेरे लिए असली पुरस्कार यह है कि लाखों लोग अब जंग में नहीं मारे जा रहे हैं। मुझे इनाम की नहीं,बल्कि जान बचाने की परवाह है।” उनके इस बयान पर सभा में मौजूद कई प्रतिनिधियों ने तालियाँ बजाकर प्रतिक्रिया दी,जबकि आलोचकों ने इसे अतिशयोक्ति बताया।
अपने भाषण में ट्रंप ने ईरान के साथ हाल ही में हुए 12 दिनी युद्ध का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ के तहत ईरानी परमाणु संयंत्रों को तबाह कर दिया और यह सुनिश्चित किया कि खतरनाक देशों के पास परमाणु हथियार न हों। ट्रंप ने जोर देकर कहा कि वैश्विक शांति के लिए यह बेहद जरूरी है कि ईरान जैसे देशों को परमाणु हथियार विकसित करने से रोका जाए। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह की कार्रवाई दुनिया में कोई और देश नहीं कर सकता था।
फिलिस्तीन को लेकर ट्रंप ने कड़ा रुख अपनाया और उन देशों की आलोचना की जो फिलिस्तीन को एकतरफा मान्यता दे रहे हैं। उन्होंने कहा, “कुछ लोग एकतरफा तरीके से फिलिस्तीन को मान्यता देना चाह रहे हैं,लेकिन ऐसा करने का मतलब हमास को इनाम देना होगा। हमास ने बार-बार शांति की कोशिशों को ठुकराया है। हमें बंधकों को वापस लाना होगा। हम सभी 20 को वापस चाहते हैं,हम दो और चार नहीं चाहते।” इस बयान से साफ जाहिर था कि ट्रंप फिलिस्तीन के मुद्दे पर इजराइल के पक्ष में खड़े हैं और वह हमास को किसी भी स्थिति में वैध मान्यता नहीं देना चाहते।
रूस-यूक्रेन युद्ध पर बोलते हुए ट्रंप ने रूस को चेतावनी दी कि अगर वह युद्ध समाप्त करने के लिए कोई समझौता नहीं करता,तो अमेरिका उस पर कड़े टैरिफ लगाने के लिए पूरी तरह तैयार है। उन्होंने यूरोपीय देशों को भी फटकार लगाई और कहा कि उन्हें भी ऐसे ही कठोर उपाय अपनाकर अमेरिका का साथ देना चाहिए। ट्रंप ने कहा कि केवल आर्थिक दबाव ही रूस को युद्ध समाप्त करने के लिए मजबूर कर सकता है और इस मामले में पश्चिमी देशों को एकजुट होना होगा।
ट्रंप के इस संबोधन को लेकर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में हलचल तेज हो गई है। जहाँ उनके समर्थक इसे उनके नेतृत्व की मजबूती और शांति स्थापित करने के प्रयासों का प्रमाण मान रहे हैं,वहीं आलोचकों का कहना है कि ट्रंप ने कई तथ्यों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है। विशेष रूप से सात युद्ध रोकने के उनके दावे पर सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इन संघर्षों को पूरी तरह रोकने में अमेरिका की भूमिका सीमित थी और कई जगहों पर हालात अभी भी तनावपूर्ण बने हुए हैं।
इसके बावजूद ट्रंप का भाषण इस मायने में अहम माना जा रहा है कि उन्होंने एक बार फिर अमेरिका की भूमिका को वैश्विक शांति और स्थिरता का केंद्र बताया। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि अमेरिका अब भी दुनिया के बड़े मुद्दों को हल करने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। ट्रंप ने अपने भाषण में जो स्वर अपनाया,उससे यह भी स्पष्ट हुआ कि वह दूसरे कार्यकाल में भी अपने पुराने आक्रामक अंदाज और ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति को जारी रखेंगे।
संयुक्त राष्ट्र महासभा का यह सत्र ऐसे समय में हो रहा है,जब दुनिया कई संकटों से जूझ रही है- रूस-यूक्रेन युद्ध,पश्चिम एशिया में तनाव,चीन और अमेरिका के बीच बढ़ती खींचतान और वैश्विक आर्थिक मंदी जैसी चुनौतियाँ सामने हैं। इस परिप्रेक्ष्य में ट्रंप का संबोधन कई देशों के लिए संदेश था कि अमेरिका अब भी वैश्विक मंच पर सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है।
ट्रंप ने अपने भाषण का समापन इस बात पर जोर देकर किया कि अमेरिका शांति के लिए प्रतिबद्ध है,लेकिन इसके लिए उसे मजबूती से खड़ा होना होगा। उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने दृढ़ नीतियाँ नहीं अपनाईं,तो दुनिया एक बार फिर अराजकता की ओर बढ़ सकती है।
उनका यह संबोधन न केवल उनकी राजनीतिक शैली को उजागर करता है,बल्कि यह भी दिखाता है कि आने वाले दिनों में अमेरिका की विदेश नीति किस दिशा में आगे बढ़ सकती है। चाहे उनके दावे विवादित हों या न हों,लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करके फिर से वैश्विक सुर्खियाँ बटोरी हैं।