नई दिल्ली,14 नवंबर (युआईटीवी)- भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस से मुलाकात कर वैश्विक व्यवस्था,बहुपक्षवाद और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर गहन चर्चा की। यह मुलाकात उस समय हुई,जब जयशंकर कनाडा में जी7 विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होकर अमेरिका पहुँचे थे। कनाडा यात्रा के दौरान उन्होंने कई देशों के अपने समकक्षों से मुलाकात की और वैश्विक चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव से हुई इस बैठक को भारत की विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
एस जयशंकर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर महासचिव गुटेरेस से हुई बातचीत का विवरण साझा करते हुए लिखा कि न्यूयॉर्क में उनसे मिलकर उन्हें बेहद खुशी हुई। उन्होंने कहा कि गुटेरेस द्वारा वर्तमान वैश्विक व्यवस्था और बहुपक्षीय ढाँचे पर किए गए आकलन बेहद महत्वपूर्ण हैं। जयशंकर ने बताया कि उन्होंने महासचिव के विभिन्न क्षेत्रीय मुद्दों पर दिए गए विचारों की भी सराहना की,जो आज के अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय माहौल में काफी उपयोगी हैं। इसके साथ ही विदेश मंत्री ने भारत के विकास और प्रगति के लिए गुटेरेस द्वारा दिए गए निरंतर समर्थन के लिए उनका आभार व्यक्त किया और भविष्य में भारत में उनका स्वागत करने की इच्छा जाहिर की।
भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधार की माँग करता रहा है,विशेषकर स्थायी सदस्यता के विस्तार के संदर्भ में। लंबे समय से भारत अपनी आर्थिक,सामरिक और वैश्विक स्तर पर बढ़ती भूमिका के आधार पर स्थायी सदस्यता की दावेदारी पेश करता आया है। कई देश इस माँग का समर्थन भी कर चुके हैं,हालाँकि,यूएन में सुधार की दिशा में सुस्त गति को लेकर भारत सहित कई देशों ने चिंता व्यक्त की है।
Good to meet with UNSG @antonioguterres in New York today.
Valued his assessment of the current global order and its implications for multilateralism. Also appreciated his perspectives on various regional hotspots.
Thank him for clear and consistent support for India’s growth… pic.twitter.com/sr8q8RXbYw
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) November 14, 2025
संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ पर एस जयशंकर ने एक बार फिर यूएन की अप्रभावी संरचना पर सवाल उठाए थे। उनके अनुसार,संयुक्त राष्ट्र की निर्णय प्रक्रिया वर्तमान विश्व की वास्तविकताओं को नहीं दर्शाती,साथ ही सदस्य देशों के बीच प्रतिनिधित्व भी असंतुलित है। अपने संबोधन में उन्होंने स्पष्ट कहा था कि “ऑल इज नॉट वेल इन यूएन”, यानी संयुक्त राष्ट्र में सब कुछ ठीक नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आज के दौर में यूएन न तो दुनिया के प्रमुख मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान दे पा रहा है और न ही सभी देशों की चिंताओं का समान रूप से प्रतिनिधित्व कर रहा है।
जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न उठाते हुए कहा था कि संगठन की बहसें अब काफी बँटी हुई हैं और उसका कामकाज भी कई मामलों में ठप पड़ा हुआ दिखता है। आतंकवाद जैसे मुद्दों पर यूएन की प्रतिक्रिया न केवल कमजोर रही है,बल्कि इसने संगठन की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि आतंकवाद की वैश्विक समस्या से निपटने में यूएन की निष्क्रियता और अस्पष्ट रुख ने कई देशों,विशेषकर ग्लोबल साउथ में निराशा पैदा की है।
भारत ने हाल के वर्षों में ग्लोबल साउथ की आवाज को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जोरदार तरीके से उठाया है। जयशंकर ने गुटेरेस से अपनी बातचीत में इस बात पर भी चर्चा की कि विकसित और विकासशील देशों के बीच आर्थिक असमानता लगातार बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि वैश्विक दक्षिण के देश अंतर्राष्ट्रीय संकटों,भू-राजनीतिक तनावों और धीमी विकास दर का सामना कर रहे हैं,लेकिन संयुक्त राष्ट्र इन मुद्दों पर पर्याप्त कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। इसके अलावा,उन्होंने कई बड़े अंतर्राष्ट्रीय विवादों का उदाहरण देते हुए कहा कि आधुनिक युग में भी संघर्ष न केवल मानव जीवन के लिए खतरा बने हुए हैं,बल्कि उनका प्रभाव पूरे वैश्विक समुदाय पर पड़ रहा है।
जयशंकर ने महासचिव गुटेरेस से हुई मुलाकात के दौरान बहुपक्षीय संस्थाओं की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यदि यूएन को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखनी है,तो उसे वैश्विक जरूरतों और भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुरूप खुद में सुधार लाने होंगे। भारत इस दिशा में निरंतर प्रयासरत है और यूएनएससी के विस्तार को दुनिया में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण मानता है।
संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग आज किसी एक देश की नहीं,बल्कि कई राष्ट्रों की आवाज बन चुकी है। एस जयशंकर और एंटोनियो गुटेरेस की यह मुलाकात इसी बड़े विमर्श का हिस्सा है,जो आने वाले समय में संयुक्त राष्ट्र की संरचना और दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकती है। वैश्विक अस्थिरताओं और बढ़ते तनावों के बीच यह संवाद अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को नई दिशा दे सकता है और दुनिया एक अधिक संतुलित और प्रतिनिधिक वैश्विक संस्था की ओर आगे बढ़ सकती है।

