वाशिंगटन,28 फरवरी (युआईटीवी)- पेंटागन ने सेना को 26 मार्च तक उन सेवा सदस्यों की पहचान करने की प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया है,जो लिंग डिस्फोरिया से पीड़ित हैं या इसका इलाज करवा रहे हैं। यह आदेश राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा एक महीने पहले दिए गए आदेश के आधार पर जारी किया गया है। एक बार इन सैनिकों की पहचान हो जाने के बाद,सेना को उन्हें सेवा से हटाने के लिए 30 दिनों का समय मिलेगा। यह कदम ट्रंप प्रशासन द्वारा लागू की गई नीति का हिस्सा है, जिसमें ट्रांसजेंडर्स को अमेरिकी सेना की सेवा से प्रतिबंधित किया गया है। हालाँकि, इस नीति को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और अभी भी इसे लेकर विवाद जारी है।
यह आदेश राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा उनके कार्यकाल की शुरुआत में जारी एक कार्यकारी आदेश पर आधारित है,जिसमें ट्रांसजेंडर्स को सैन्य सेवा से प्रतिबंधित करने की बात की गई थी। इस नीति के तहत ट्रांसजेंडर कर्मियों को सेना में सेवा देने से रोका जा रहा है,क्योंकि इसे सैन्य मानकों से असंगत माना जा रहा है। यह कदम एक ऐसे समय पर उठाया गया है,जब पेंटागन पर ट्रांसजेंडर सैनिकों को सेवा से हटाने के लिए दबाव बढ़ रहा था। राष्ट्रपति ट्रंप और रक्षा सचिव पीट हेगसेथ,दोनों ने पेंटागन को ट्रांसजेंडर सैनिकों को हटाने का निर्देश दिया है,यह तर्क देते हुए कि उनके चिकित्सा हालात सैन्य सेवा के उच्च शारीरिक और मानसिक मानकों से मेल नहीं खाते।
हालाँकि,इस आदेश ने समाज में बड़ी बहस को जन्म दिया है। ट्रांसजेंडर अधिकारों के पक्षधर इसे एक भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक कदम मानते हैं। मानवाधिकार अभियानों और कानूनी संगठनों ने इस आदेश को चुनौती दी है और इसे एक “शत्रुतापूर्ण” और “असमान” नीति के रूप में देखा है,जो ट्रांसजेंडर सैनिकों की गरिमा को नुकसान पहुँचाती है और उन्हें अपमानित करती है। ट्रांसजेंडर अधिकारों के समर्थकों का कहना है कि यह आदेश सैनिकों को मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से एक कठिन स्थिति में डालता है,जिससे उनकी पहचान उजागर करने का दबाव बढ़ता है।
रक्षा विभाग के एक ज्ञापन में कहा गया है कि जिन व्यक्तियों का वर्तमान में लिंग डिस्फोरिया का निदान हुआ है या जो इसके इलाज से गुजर रहे हैं,वे सैन्य सेवा के लिए आवश्यक मानसिक और शारीरिक मानकों को पूरा नहीं कर सकते हैं। यह नीति उन सैनिकों के लिए लागू होती है,जिनकी चिकित्सा स्थिति उनके कामकाजी जीवन को प्रभावित कर सकती है और वे सेना में सेवा देने के लिए योग्य (फिट) नहीं माने जाते हैं। पेंटागन ने यह भी कहा कि सैन्य सेवा में जोखिम बहुत अधिक होता है और ऐसे सैनिकों से काम की अपेक्षाएँ असंगत होती हैं,जो लिंग परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजर रहे होते हैं।
यह ज्ञापन यह दावा करता है कि लिंग एक अपरिवर्तनीय तथ्य है और किसी व्यक्ति का लिंग जीवन भर अपरिवर्तित रहता है। इसका मतलब यह है कि ट्रांसजेंडर सैनिकों को अपनी पहचान को लेकर खुद को बदलने के लिए दबाव महसूस हो सकता है,क्योंकि वे उस दौर से गुजर रहे होते हैं,जो उनके लिए मुश्किल हो सकता है। ट्रांसजेंडर सैनिकों के लिए यह एक असाधारण और नकारात्मक स्थिति हो सकती है,क्योंकि उन्हें अपनी पहचान के बारे में खुलासा करने के लिए बाध्य किया जाता है, जो उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
रक्षा विभाग के इस आदेश के खिलाफ कानूनी मामलों में संघर्ष जारी है। वकीलों ने यह तर्क दिया कि यह आदेश ट्रांसजेंडर सैनिकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है और उनके खिलाफ भेदभावपूर्ण है। उन्होंने अदालत में कहा कि यह नीति उनके साथ शत्रुता का व्यवहार करती है और उन्हें “असमान और अनावश्यक” मानती है, जो सैनिकों की गरिमा को घटित करता है। मानवाधिकार अभियान में कानूनी मामलों की उपाध्यक्ष सारा वारबेलो ने इस मामले में कहा कि यह नीति सेवा सदस्यों को एक बहुत कठिन स्थिति में डालती है,क्योंकि अब उन्हें अपनी पहचान को उजागर करने का दबाव होगा।
यह स्थिति ट्रांसजेंडर सैनिकों के लिए और भी कठिन हो सकती है,क्योंकि उन्हें अपने साथी सैनिकों को अपनी पहचान बताने के लिए मजबूर किया जा सकता है। वारबेलो ने कहा कि सैनिकों को यह विकल्प दिया जा सकता है कि वे अपनी पहचान को उजागर करें या अपने साथी सैनिकों को धोखा दें। यदि कोई सैनिक अपनी ट्रांसजेंडर पहचान को छुपाने का निर्णय लेता है,तो उसे दंड का सामना करना पड़ सकता है और यह उस सैनिक के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से कठिन हो सकता है।
वहीं, पेंटागन ने इस आदेश के बाद अनुमान लगाया कि लगभग 600 ट्रांसजेंडर कर्मी नौसेना में और 300 से 500 के बीच ट्रांसजेंडर सैनिक सेना में हो सकते हैं। इन सैनिकों की पहचान मेडिकल रिकॉर्ड के माध्यम से की जा सकती है,जो कुल 2.1 मिलियन सक्रिय सैनिकों का एक छोटा सा हिस्सा हैं। इन आँकड़ों के अनुसार, ट्रांसजेंडर सैनिकों की संख्या सेना में सीमित है,लेकिन इस आदेश ने सैन्य सेवा में उनके अधिकारों को लेकर एक गंभीर बहस को जन्म दिया है।
इस पूरे मुद्दे ने अमेरिका में ट्रांसजेंडर अधिकारों और सैन्य नीति के बीच एक जटिल और संवेदनशील चर्चा को जन्म दिया है। ट्रंप प्रशासन द्वारा लागू की गई यह नीति ट्रांसजेंडर सैनिकों के खिलाफ भेदभावपूर्ण मानी जा रही है और इसे कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इसके बावजूद,इस नीति का प्रभाव सैनिकों की मानसिक स्थिति और उनके अधिकारों पर गहरा प्रभाव डालता है,जो उनके लिए मुश्किल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है।