वॉशिंगटन,24 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की उस कोशिश पर रोक लगा दी,जिसके तहत इलिनोइस राज्य—खासकर शिकागो और उसके आसपास—नेशनल गार्ड के सैकड़ों जवानों को तैनात किया जाना था। सुप्रीम कोर्ट ने 6-3 के बहुमत से दिए गए अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि सरकार इस शुरुआती चरण में ऐसा कोई वैधानिक आधार प्रस्तुत नहीं कर सकी,जो उसे राज्य के भीतर कानून-व्यवस्था लागू करने के लिए सेना को सक्रिय रूप से उतारने की अनुमति देता हो। कोर्ट का यह फैसला न केवल ट्रंप प्रशासन के लिए झटका माना जा रहा है,बल्कि संघीय ढाँचे और राज्यों के अधिकारों के बीच संतुलन पर भी नई बहस छेड़ गया है।
विवाद की शुरुआत 4 अक्टूबर को हुई,जब राष्ट्रपति ट्रंप ने इलिनोइस नेशनल गार्ड के करीब 300 सदस्यों को “फेडरल सर्विस” में बुलाने का निर्णय लिया। प्रशासन का तर्क था कि शिकागो में बढ़ रही हिंसा और फेडरल इमारतों पर संभावित खतरे को देखते हुए यह कदम जरूरी था। इसके अगले ही दिन टेक्सास नेशनल गार्ड के कुछ सदस्यों को भी इसी आधार पर शिकागो भेजने का निर्देश दिया गया,लेकिन इस कदम ने तत्काल कानूनी और राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया। आलोचकों का कहना था कि यह निर्णय राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल है और स्थानीय प्रशासन को दरकिनार कर कानून व्यवस्था पर संघीय नियंत्रण लागू करने की कोशिश है।
9 अक्टूबर को इलिनोइस के नॉर्दर्न डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने इस संबंध में एक अस्थाई रोक आदेश जारी किया। जिला अदालत ने कहा कि बिना स्पष्ट कानूनी अनुमति के,इलिनोइस में नेशनल गार्ड को फेडरल सर्विस में शामिल करने और उन्हें तैनात करने का आदेश आगे नहीं बढ़ सकता। इस फैसले ने ट्रंप प्रशासन की योजना पर तत्काल ब्रेक लगा दिया,हालाँकि कानूनी लड़ाई यहीं नहीं रुकी। मामला आगे सेवेंथ सर्किट के यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स पहुँचा,जिसने जिला अदालत के आदेश में आंशिक संशोधन किया। अपील कोर्ट ने सरकार को नेशनल गार्ड को फेडरल सर्विस में शामिल करने की अनुमति तो दी,लेकिन उनके वास्तविक तैनाती आदेश पर रोक बनाए रखी। यही सीमित अनुमति भी विवादास्पद रही और अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक पहुँच गया।
सुप्रीम कोर्ट में ट्रंप प्रशासन ने दलील दी कि नेशनल गार्ड को सक्रिय करना फेडरल कानून-व्यवस्था के अधिकारियों की सुरक्षा के लिए आवश्यक था और यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया कदम था कि किसी भी तरह के दंगों में सरकारी संपत्ति को नुकसान न पहुँचे। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एबिगेल जैक्सन ने फैसले के बाद कहा कि राष्ट्रपति का उद्देश्य केवल सुरक्षा सुनिश्चित करना था और अदालत के इस निर्णय से संघीय सरकार की क्षमता सीमित हो सकती है। हालाँकि,अदालत ने अपने आदेश में साफ किया कि सरकार अभी तक ऐसा कोई ठोस कानूनी स्रोत नहीं दिखा सकी है,जो उसे इस स्तर पर राज्य की सीमाओं के भीतर सेना के उपयोग का अधिकार देता हो। कोर्ट ने संकेत दिया कि आपात स्थितियों में भी संविधान और कानून की सीमाओं का पालन अनिवार्य है।
इलिनोइस के डेमोक्रेटिक गवर्नर जेबी प्रित्जकर ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह “इलिनोइस और अमेरिकी लोकतंत्र के लिए बड़ी जीत” है। उनके अनुसार,कानून-व्यवस्था की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य और स्थानीय प्रशासन की होती है और संघीय हस्तक्षेप तभी उचित माना जा सकता है,जब उसकी स्पष्ट संवैधानिक या वैधानिक अनुमति हो। शिकागो की मेयर ने भी गवर्नर के साथ मिलकर इस तैनाती का विरोध किया था,यह तर्क देते हुए कि बाहरी फोर्स की मौजूदगी से तनाव बढ़ सकता है और स्थानीय समुदायों और प्रशासन के बीच विश्वास कमजोर हो सकता है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला उस लंबे समय से चले आ रहे सिद्धांत को मजबूत करता है कि फेडरल सरकार,विशेषकर सेना का उपयोग,घरेलू कानून-व्यवस्था के मामलों में बेहद सीमित परिस्थितियों में ही संभव है। पोसे कोमिटाटस एक्ट और संबंधित प्रावधान इस बात पर जोर देते हैं कि सैन्य बलों का इस्तेमाल नागरिक कानून लागू करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए,जब तक कि कांग्रेस द्वारा स्पष्ट अनुमति न दी गई हो। सुप्रीम कोर्ट का आदेश इसी दिशा में एक और मजबूत संकेत के रूप में देखा जा रहा है कि कार्यपालिका की शक्तियाँ असीमित नहीं हैं।
राजनीतिक तौर पर भी इस फैसले के दूरगामी असर हो सकते हैं। एक ओर रिपब्लिकन समर्थक इसे संघीय सरकार की जरूरत पड़ने पर जल्द हस्तक्षेप की क्षमता पर अनावश्यक अंकुश बता रहे हैं,तो दूसरी ओर डेमोक्रेट्स इसे लोकतांत्रिक संस्थाओं की जीत और राज्यों के अधिकारों की रक्षा के रूप में देख रहे हैं। व्यापक परिप्रेक्ष्य में,यह मामला अमेरिका की संघीय शासन व्यवस्था के मूल प्रश्नों—केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के संतुलन को एक बार फिर केंद्र में ले आया है।
अंततः,सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल तत्काल विवाद का समाधान करता है,बल्कि यह भी याद दिलाता है कि सुरक्षा के नाम पर लिए जाने वाले निर्णय भी कानून की कसौटी पर परखे जाते हैं। चाहे मुद्दा दंगों का हो,फेडरल संपत्तियों की सुरक्षा का या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा का—कार्यपालिका के हर कदम को संवैधानिक सीमाओं के भीतर रहकर ही उठाया जाना चाहिए। इलिनोइस में नेशनल गार्ड की तैनाती पर रोक बरकरार रखते हुए अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिकी लोकतंत्र में जाँच और संतुलन की व्यवस्था सिर्फ औपचारिकता नहीं,बल्कि शासन का आधार है।
