कोलकाता,4 नवंबर (युआईटीवी)- पश्चिम बंगाल में भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने मतदाता सूची के तीन चरणों वाले विशेष गहन पुनरीक्षण (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन – एसआईआर) की प्रक्रिया का पहला चरण मंगलवार से शुरू कर दिया है। यह पुनरीक्षण राज्य की मतदाता सूची में पारदर्शिता और प्रामाणिकता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। निर्वाचन आयोग के अनुसार,अब तक हुई “मैपिंग और मैचिंग” की प्रक्रिया से जो आँकड़े सामने आए हैं,उन्होंने कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं। आयोग के मुताबिक,पश्चिम बंगाल की वर्तमान मतदाता सूची में दर्ज केवल 32.06 प्रतिशत नाम ही 2002 की मतदाता सूची में मौजूद थे।
गौरतलब है कि राज्य में पिछली बार इस तरह का गहन पुनरीक्षण वर्ष 2002 में आयोजित किया गया था। इसलिए इस बार की प्रक्रिया में 2002 की सूची को आधार माना गया है,ताकि यह पता लगाया जा सके कि पिछले दो दशकों में मतदाता सूची में किस हद तक बदलाव,विसंगतियाँ या अनियमितताएँ आई हैं। वर्तमान में राज्य की मतदाता संख्या लगभग 7.66 करोड़ है,जबकि 2002 की सूची में यह संख्या लगभग आधी थी। इस तुलना से स्पष्ट है कि मतदाता सूची में नए नामों का जुड़ना और पुराने नामों का हटना काफी तेजी से हुआ है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया कि अब तक किए गए डेटा मिलान में केवल 2.46 करोड़ ऐसे मतदाता मिले हैं,जिनके नाम या उनके माता-पिता के नाम 2002 की सूची में दर्ज थे। यह कुल मतदाता संख्या का लगभग एक-तिहाई है। अधिकारी ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आँकड़ा अंतिम नहीं है,क्योंकि “मैपिंग और मैचिंग” की प्रक्रिया अभी जारी है। अंतिम रिपोर्ट आने के बाद यह संख्या कुछ बढ़ या घट सकती है।
नियमों के अनुसार,जिन मतदाताओं के नाम या उनके माता-पिता के नाम 2002 की सूची में दर्ज हैं, उन्हें स्वतः ही “वास्तविक” या “वैध मतदाता” माना जाएगा। ऐसे लोगों को नई मतदाता सूची में अपना नाम बनाए रखने के लिए केवल गणना फॉर्म भरना होगा। उन्हें किसी अतिरिक्त दस्तावेज़ की आवश्यकता नहीं होगी। हालाँकि,जिन लोगों के नाम 2002 की सूची में नहीं हैं,उन्हें अपनी पहचान और पात्रता साबित करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि आधार कार्ड इन दस्तावेजों में से एक है,लेकिन इसे एकमात्र प्रमाण नहीं माना जाएगा। अर्थात केवल आधार कार्ड के आधार पर नागरिकता या आयु का प्रमाण स्वीकार नहीं किया जाएगा। आयोग ने कहा है कि मतदाताओं को 11 अन्य वैकल्पिक दस्तावेजों में से कोई एक प्रस्तुत करना होगा, जैसे पासपोर्ट,ड्राइविंग लाइसेंस,पैन कार्ड,जन्म प्रमाण पत्र या सरकारी स्कूल से प्राप्त आयु प्रमाणपत्र आदि।
इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मतदाता सूची में केवल वही लोग शामिल हों,जो भारत के वैध नागरिक हैं और जिनकी आयु मतदान के लिए निर्धारित सीमा से ऊपर है। आयोग ने कहा है कि यह पुनरीक्षण न केवल तकनीकी प्रक्रिया है,बल्कि राज्य के लोकतांत्रिक ढाँचे को मज़बूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
पहले चरण के तहत बूथ स्तर अधिकारी (बीएलओ) घर-घर जाकर गणना प्रपत्र लेकर मतदाताओं का विवरण एकत्र करेंगे। इस दौरान मतदाताओं से उनकी पहचान,पते,परिवार के सदस्यों और 2002 की सूची में दर्ज नामों के संदर्भ में जानकारी ली जाएगी। इस चरण की समाप्ति के बाद राज्य की मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।
दूसरे चरण में,इस मसौदा सूची पर आपत्तियाँ और सुझाव स्वीकार किए जाएँगे। कोई भी राजनीतिक दल,सामाजिक संगठन या व्यक्तिगत मतदाता सूची में त्रुटियों,दोहराव या नाम छूटने की शिकायत दर्ज करा सकेगा। इस प्रक्रिया के दौरान निर्वाचन आयोग इन आपत्तियों की जांच करेगा और आवश्यक संशोधन करेगा।
तीसरा और अंतिम चरण इस पुनरीक्षण प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होगा। इसमें निर्वाचन रजिस्ट्रेशन अधिकारी (ईआरओ) राजनीतिक दलों और नागरिकों से प्राप्त सभी शिकायतों का निपटारा करेंगे। सत्यापन और आवश्यक संशोधनों के बाद राज्य की अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।
निर्वाचन आयोग ने अनुमान लगाया है कि पूरी प्रक्रिया मार्च 2026 तक पूरी कर ली जाएगी। यह भी कहा गया है कि इस पुनरीक्षण का प्रभाव आगामी विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा,जो अगले वर्ष पश्चिम बंगाल समेत तीन अन्य राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में आयोजित होने हैं।
राज्य सरकार और राजनीतिक दलों की निगाहें भी इस प्रक्रिया पर टिकी हैं। सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस ने कहा है कि निर्वाचन आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी वैध मतदाता का नाम गलती से न हटे। वहीं,विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस पहल का स्वागत किया है और कहा है कि “यह राज्य की मतदाता सूची में वर्षों से चली आ रही गड़बड़ियों को उजागर करने में मदद करेगा।”
विशेषज्ञों का मानना है कि यह पुनरीक्षण प्रक्रिया चुनावी पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ा कदम है। पिछले कुछ वर्षों में बंगाल में मतदाता सूची को लेकर विवाद होते रहे हैं—कई बार आरोप लगाए गए कि कुछ क्षेत्रों में मतदाताओं के नाम दोहराए गए हैं या फर्जी पहचान वाले लोग सूची में शामिल हैं। ऐसे में यह व्यापक पुनरीक्षण इन शिकायतों को दूर करने में मदद करेगा।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय ने आम जनता से भी अपील की है कि वे इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लें,अपने नामों की जाँच करें और किसी त्रुटि की स्थिति में शिकायत दर्ज कराएँ। अधिकारियों का कहना है कि जनता के सहयोग से ही मतदाता सूची को अधिक सटीक और पारदर्शी बनाया जा सकता है।
जैसे-जैसे यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी,राज्य में राजनीतिक माहौल भी और अधिक सक्रिय होने की संभावना है। अगले वर्ष के विधानसभा चुनावों से पहले यह पुनरीक्षण मतदाता सूची की विश्वसनीयता को मजबूत करने वाला एक निर्णायक कदम साबित हो सकता है,जिससे लोकतंत्र की जड़ों को और अधिक सशक्त किया जा सके।
