नई दिल्ली,10 नवंबर (युआईटीवी)- पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सियासी और कानूनी हलचल तेज हो गई है। चुनाव आयोग द्वारा जारी आदेश के खिलाफ अब कांग्रेस पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई सुप्रीम कोर्ट पहुँच गई है। पार्टी का कहना है कि इस प्रक्रिया में गंभीर खामियाँ हैं और इससे मतदाता सूची की पारदर्शिता पर प्रश्न उठ सकते हैं। इस याचिका को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति सूर्यकांत के समक्ष मामला उठाया गया,जो पहले से ही बिहार और तमिलनाडु में एसआईआर से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी की ओर से दायर याचिका में माँग की गई है कि बंगाल से जुड़ा यह मामला भी बिहार और तमिलनाडु एसआईआर केस के साथ मंगलवार को एक साथ सूचीबद्ध किया जाए। पार्टी की ओर से पेश वकील ने न्यायालय को बताया कि बिहार का मामला पहले से ही मंगलवार को सूचीबद्ध है और इसलिए बंगाल से संबंधित याचिका को भी उसी दिन सुनवाई के लिए रखा जाए। वकील ने कहा कि “एसआईआर प्रक्रिया में कई खामियाँ हैं और इसको लेकर राज्य के विभिन्न इलाकों से लोग कांग्रेस पार्टी से संपर्क कर रहे हैं। इसी वजह से हमने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया।”
हालाँकि,इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने साफ किया कि यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश को लेना होगा कि पश्चिम बंगाल के मामले को भी बिहार-तमिलनाडु के साथ सूचीबद्ध किया जाएगा या नहीं। अदालत ने कहा कि फिलहाल इस पर आदेश देने से पहले प्रशासनिक अनुमति आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी संकेत देती है कि बंगाल में एसआईआर प्रक्रिया को लेकर मामला जल्द ही बड़े स्तर पर चर्चा का विषय बन सकता है।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने देशभर में मतदाता सूची की सटीकता और पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन” (एसआईआर) प्रक्रिया शुरू की थी। पहले चरण में यह प्रक्रिया बिहार में कराई गई थी। जून 2025 में आयोग ने इसके लिए आदेश जारी किया था,जिसके तहत मतदाता सूची की व्यापक समीक्षा,संशोधन और डुप्लीकेट नामों की पहचान की जानी थी। हालाँकि,इस दौरान कई राजनीतिक दलों ने आयोग की प्रक्रिया पर सवाल उठाए। बिहार में विपक्षी दलों का आरोप था कि यह पुनरीक्षण “राजनीतिक उद्देश्य” से प्रेरित है और इसका इस्तेमाल चुनावी गणित को प्रभावित करने के लिए किया जा सकता है।
इन आरोपों के बीच सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएँ दायर की गई थीं,जिनमें एसआईआर प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठाया गया था। कोर्ट में मामला लंबित रहने के बावजूद चुनाव आयोग ने बिहार में एसआईआर प्रक्रिया को पूरा किया और बाद में वहाँ चुनाव की घोषणा कर दी। इस कदम के बाद चुनाव आयोग के निर्णय पर राजनीतिक और कानूनी दोनों स्तरों पर बहस तेज हो गई।
बिहार के बाद चुनाव आयोग ने 27 अक्टूबर 2025 को घोषणा की कि दूसरे चरण में पश्चिम बंगाल,तमिलनाडु और अन्य 10 राज्यों में भी विशेष गहन पुनरीक्षण कराया जाएगा। इस आदेश के तहत एक नवंबर से सभी 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। आयोग का कहना है कि यह पहल मतदाता सूची को “त्रुटिरहित और विश्वसनीय” बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
हालाँकि,विपक्षी दलों का मानना है कि आयोग की यह पहल निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। पश्चिम बंगाल कांग्रेस ने अपनी याचिका में दावा किया है कि राज्य के कई जिलों में मतदाता सूची में नामों की दोहराव,हटाए गए नामों की पुनः प्रविष्टि और कई पात्र मतदाताओं के नाम गायब होने जैसी शिकायतें मिली हैं। कांग्रेस ने यह भी कहा है कि इन विसंगतियों को लेकर आम नागरिकों में असंतोष बढ़ रहा है और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर असर पड़ सकता है।
तमिलनाडु में भी इसी तरह की स्थिति देखने को मिली है। वहाँ सत्ताधारी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) पार्टी पहले ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुकी है,जिसमें एसआईआर प्रक्रिया को चुनौती दी गई है। डीएमके का आरोप है कि आयोग ने राज्यों से पर्याप्त परामर्श किए बिना और बिना किसी पारदर्शी व्यवस्था के यह निर्णय लिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई के लिए स्वीकार कर लेता है,तो आने वाले महीनों में देशभर में मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया पर बड़ा असर पड़ सकता है। चुनाव आयोग फिलहाल अपने रुख पर कायम है और उसका कहना है कि एसआईआर का उद्देश्य केवल “प्रशासनिक सुधार” है,न कि किसी राजनीतिक दल को लाभ या हानि पहुंचाना।
अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं,जहाँ यह तय होगा कि पश्चिम बंगाल के मामले को बिहार और तमिलनाडु की सुनवाई के साथ जोड़ा जाएगा या नहीं। अगर ऐसा हुआ तो देश में मतदाता सूची की शुद्धता और चुनाव आयोग की भूमिका पर एक बार फिर व्यापक बहस छिड़ना तय है। फिलहाल,पश्चिम बंगाल कांग्रेस इस कानूनी लड़ाई को “लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा” के रूप में पेश कर रही है और कह रही है कि राज्य के मतदाताओं को सटीक और निष्पक्ष सूची मिलना उनका संवैधानिक अधिकार है।
