विपक्ष ने संसद के शीतकालीन सत्र में एसआईआर पर चर्चा की माँग की (तस्वीर क्रेडिट@gauravnewsman)

शीतकालीन सत्र से पहले विपक्ष का हमला तेज,कहा– लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर संकट,एसआईआर पर जरूर हो चर्चा

नई दिल्ली,1 दिसंबर (युआईटीवी)- संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने से ठीक पहले विपक्षी दलों ने सरकार पर तीखा हमला बोला है और साफ कर दिया है कि सत्र के दौरान एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) को लेकर गंभीर चर्चा की माँग की जाएगी। विपक्ष का कहना है कि देश के लोकतंत्र पर दबाव बढ़ रहा है और चुनावी प्रक्रियाओं की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। ऐसे में संसद के अंदर इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए,ताकि देश की जनता को पारदर्शिता का भरोसा मिल सके।

कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र एक गंभीर मोड़ पर खड़ा है और उसे बचाना जरूरी है। उनके अनुसार,चुनाव आयोग पूरी प्रक्रिया में एक निष्पक्ष संस्थान की तरह काम करने के बजाय अब एक पक्ष विशेष का साधन बन गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव व्यवस्था में कई गड़बड़ियाँ सामने आई हैं और एसआईआर के नाम पर जनता को परेशान किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि उन्होंने संसद में इस मुद्दे पर चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव भी दिया है। टैगोर ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप या असंतुलन को संसद में उठाना आवश्यक है,क्योंकि यही वह मंच है,जहाँ जनता की आवाज को सही रूप में रखा जा सकता है।

समाजवादी पार्टी की ओर से भी इस मुद्दे पर कड़ा रुख सामने आया है। सपा सांसद नरेश उत्तम पटेल ने कहा कि उत्तर प्रदेश न सिर्फ देश का सबसे बड़ा राज्य है,बल्कि राजनीतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने राज्य में सर्वाधिक सीटें जीती हैं,ऐसे में सरकार को उनकी चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि एसआईआर की प्रक्रिया ने राज्य में भारी अव्यवस्था पैदा कर दी है। खेती की व्यस्तता,विवाह के सीजन और अन्य सामाजिक कारणों से लोगों पर पहले से ही काम का बोझ है,ऊपर से एसआईआर की बाध्यताओं ने आम जनता और कर्मचारियों दोनों को मुश्किल में डाल दिया है। उन्होंने दावा किया कि इस अफरातफरी के कारण कई लोगों की मौत भी हुई है,जो बेहद चिंताजनक है।

नरेश उत्तम पटेल ने कहा कि सपा किसानों,मजदूरों,युवाओं और बेरोजगारों के मुद्दों को सदन में मजबूती से उठाएगी। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य,शिक्षा और कानून-व्यवस्था जैसे बुनियादी मुद्दों पर भी चर्चा की जरूरत है,लेकिन एसआईआर का सवाल फिलहाल सबसे बड़ा है क्योंकि इससे सीधे जनता का जीवन प्रभावित हो रहा है। उन्होंने सरकार से उम्मीद जताई कि वह विपक्ष की बात सुनेगी और इस मुद्दे पर सार्थक बहस को अनुमति देगी।

वहीं,वाममोर्चे की ओर से भी सरकार को चेतावनी दी गई है कि विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश हुई तो सदन में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। सीपीआई के सांसद पी. संदोष कुमार ने कहा कि सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने अपनी सभी चिंताओं को स्पष्ट रूप से सामने रखा है। उन्होंने कहा कि अगर सत्ता पक्ष और सदन के चेयर विपक्ष की आवाज को गंभीरता से सुनें और उन्हें अपनी बात रखने का अवसर दें,तो सत्र सुचारू रूप से चल सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि संसदीय लोकतंत्र के पिछले पाँच दशकों में यह सबसे छोटा सत्र होने जा रहा है,ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि किन मुद्दों पर कितना समय मिलेगा,लेकिन अभी तक विपक्ष की आवाज की अनदेखी होने की आशंका बनी हुई है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने भी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि संसद सत्र जनता की बात रखने के लिए होता है,न कि एकतरफा एजेंडा चलाने के लिए। उन्होंने कहा कि स्पीकर,संसदीय कार्य मंत्री और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि विपक्ष के मुद्दों को सदन में उठने दिया जाए। उन्होंने कहा कि सरकार को संसद में बाधा डालने वाली शक्ति नहीं बनना चाहिए,बल्कि उसे वह माहौल तैयार करना चाहिए,जिसमें सत्ता और विपक्ष दोनों मिलकर जनता की समस्याओं पर चर्चा कर सकें। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि जनता के मुद्दों को संसद में नहीं उठाया जाएगा,तो फिर लोकतंत्र की असली भावना कहां बचेगी।

शीतकालीन सत्र को लेकर विपक्ष की यह एकजुटता सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है। सरकार जहाँ अपनी नीतियों और विधेयकों को आगे बढ़ाने की तैयारी में है,वहीं विपक्ष का कहना है कि एसआईआर,बेरोजगारी,महँगाई,किसानों की समस्याओं और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थिति जैसे प्रमुख मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सत्र शुरू होने से पहले ही दोनों पक्षों के बीच बयानबाजी तेज हो गई है,जिससे संकेत मिलता है कि आगामी दिनों में संसद में गरमागरम बहस और टकराव देखने को मिल सकता है।

अब देखना यह होगा कि सरकार विपक्ष की माँगों को कितनी गंभीरता से लेती है और क्या संसद का यह सत्र जनता की चिंताओं को केंद्र में रखकर उत्पादक बन पाता है या नहीं।