यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की,अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (तस्वीर क्रेडिट@Pawankumar_1305)

व्हाइट हाउस में आज होगी निर्णायक वार्ता: जेलेंस्की-ट्रंप मुलाकात से रूस-यूक्रेन युद्ध पर नया मोड़,जेलेंस्की को मिलेगा यूरोपीय नेताओं का सपोर्ट

वाशिंगटन,18 अगस्त (युआईटीवी)- रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान की दिशा में एक अहम कदम आज वाशिंगटन डीसी में उठने जा रहा है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में मुलाकात करेंगे। इस हाई-प्रोफाइल बैठक में यूरोप के कई शीर्ष नेता भी शामिल हो रहे हैं,जिससे यह वार्ता न केवल द्विपक्षीय,बल्कि बहुपक्षीय रूप ले चुकी है। इस बैठक का मुख्य फोकस रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के संभावित रास्तों पर होगा,साथ ही इस बात पर भी कि क्या शांति समझौते के नाम पर यूक्रेन पर अनुचित दबाव बनाया जा रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस बैठक की पूर्व संध्या पर अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ’ पर लिखा, “कल व्हाइट हाउस में एक बड़ा दिन है। इतने सारे यूरोपीय नेता एक साथ कभी नहीं मिले। उनकी मेजबानी करना मेरे लिए सम्मान की बात है!” इस बयान ने इस मुलाकात की गंभीरता और अंतर्राष्ट्रीय महत्व को और भी बढ़ा दिया है।

जेलेंस्की के साथ जो नेता वाशिंगटन पहुँचे हैं,उनमें जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मर्ज,ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर,फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों,फिनलैंड के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर स्टब,नाटो महासचिव मार्क रूट,यूरोपीय संघ आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन और इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी शामिल हैं। इतने बड़े पैमाने पर यूरोपीय नेताओं का एक साथ अमेरिका आना इस बात का संकेत है कि यह बैठक सिर्फ यूक्रेन के भविष्य के लिए नहीं,बल्कि पूरे यूरोप की सुरक्षा और भू-राजनीतिक संतुलन के लिए निर्णायक साबित हो सकती है।

हालाँकि,इस मुलाकात से पहले ही कई आशंकाएँ उभर आई हैं। यूरोपीय नेताओं को चिंता है कि यह बैठक कहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पर दबाव बनाने का मंच न बन जाए। हाल ही में अलास्का शिखर सम्मेलन के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ट्रंप के सामने कुछ शर्तें रखी थीं। इनमें यूक्रेन का क्रीमिया पर अपना दावा छोड़ देना और यह वादा करना शामिल था कि यूक्रेन भविष्य में कभी भी नाटो में शामिल नहीं होगा। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के जानकार मानते हैं कि अगर इन शर्तों को यूक्रेन पर थोपा गया,तो यह न केवल कीव के लिए एक बड़ी रणनीतिक हार होगी,बल्कि यूरोप की सामूहिक सुरक्षा को भी गहरा झटका लगेगा।

यही कारण है कि यूरोपीय नेताओं ने वाशिंगटन में इस वार्ता से पहले वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एक “इच्छुक देशों का गठबंधन” बैठक की। इस चर्चा का मकसद एक साझा रुख तय करना और यह संदेश देना था कि यूरोप यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता से किसी भी तरह का समझौता स्वीकार नहीं करेगा। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस संदर्भ में बेहद सख्त लहजे में कहा,“अगर हम आज रूस के सामने कमजोरी दिखाते हैं,तो हम भविष्य के संघर्षों की जमीन तैयार कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य एक स्थायी शांति है,जो यूक्रेन की संप्रभुता और उसकी सीमाओं का सम्मान करे।”

जर्मन सरकार की ओर से भी इस यात्रा को लेकर जारी बयान में स्पष्ट किया गया कि वार्ता का एजेंडा केवल युद्धविराम तक सीमित नहीं है। इसमें यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देने,क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा करने और सैन्य व आर्थिक सहयोग जारी रखने पर भी बात होगी। बयान में यह भी कहा गया कि रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को जारी रखने और उन्हें और कड़ा करने की आवश्यकता है,ताकि मॉस्को को युद्ध समाप्त करने के लिए मजबूर किया जा सके।

इसके उलट,अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रुख कुछ अलग दिखाई देता है। ट्रंप कई मौकों पर यह कह चुके हैं कि जेलेंस्की चाहें तो रूस के साथ यह युद्ध लगभग तुरंत खत्म हो सकता है। रविवार को भी उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा,“यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की चाहें तो युद्ध को अभी समाप्त कर सकते हैं या फिर लड़ाई को जारी रख सकते हैं।” ट्रंप का यह बयान इस बात का संकेत माना जा रहा है कि वे जेलेंस्की से रूस की कुछ शर्तों को मानने के लिए कह सकते हैं,ताकि तत्काल युद्धविराम की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके।

हालाँकि,सवाल यह है कि क्या यूक्रेन के लिए ऐसी किसी भी डील को स्वीकार करना संभव है? 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे और 2022 से जारी युद्ध ने यूक्रेन की जनता को गहरे घाव दिए हैं। लाखों लोगों को घर छोड़ना पड़ा,हजारों जानें गईं और पूरा देश बर्बादी की कगार पर पहुँच गया। ऐसे में क्रीमिया पर दावा छोड़ना या नाटो सदस्यता से पीछे हटना न केवल यूक्रेनी जनता की भावनाओं के साथ विश्वासघात होगा, बल्कि रूस के लिए भी यह एक संदेश होगा कि उसकी आक्रामकता से उसे लाभ मिला।

इसी वजह से यूरोपीय नेता इस बैठक को लेकर सतर्क हैं। वे चाहते हैं कि ट्रंप स्पष्ट करें कि संभावित शांति समझौते में रूस वास्तव में क्या देने को तैयार है। क्या वह कब्जाए गए इलाकों से पीछे हटेगा? क्या वह यूक्रेन की भविष्य की सुरक्षा के लिए कोई गारंटी देगा? और सबसे अहम सवाल-क्या अमेरिका इस सुरक्षा ढाँचे में सक्रिय भूमिका निभाएगा या नहीं?

इस समय स्थिति बेहद नाजुक है। अगर वाशिंगटन बैठक में कोई ठोस समाधान निकलता है तो यह युद्ध के अंत की दिशा में एक बड़ा कदम होगा,लेकिन अगर वार्ता में दबाव की राजनीति हावी रही,तो यह न केवल यूक्रेन के लिए,बल्कि पूरे यूरोप के लिए भी अस्थिरता का नया दौर शुरू कर सकता है।

आज की यह बैठक आने वाले समय में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का भविष्य तय करने वाली साबित हो सकती है। जेलेंस्की और उनके सहयोगियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे शांति की कोशिशों को स्वीकार करें,लेकिन किसी भी कीमत पर अपने देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से समझौता न करें। वहीं,ट्रंप पर यह जिम्मेदारी होगी कि वे अमेरिका की वैश्विक नेतृत्व भूमिका को निभाते हुए एक ऐसा रास्ता सुझाएँ,जो स्थायी शांति की ओर ले जाए।

पूरी दुनिया की निगाहें आज व्हाइट हाउस पर टिकी हैं। यह मुलाकात केवल रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की संभावना ही नहीं,बल्कि 21वीं सदी की वैश्विक कूटनीति की दिशा और गति को भी तय कर सकती है।