नई दिल्ली,4 दिसंबर (युआईटीवी)- नई दिल्ली में आयोजित विश्व वार्षिक सम्मेलन 2025 में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वैश्विक मोबिलिटी,प्रवासन और आर्थिक एकीकरण पर एक महत्वपूर्ण और स्पष्ट संदेश दिया। इस वर्ष सम्मेलन का थीम “द मोबिलिटी इम्पेरेटिव” रखा गया था,जिसमें दुनिया भर के विशेषज्ञों,नीति-निर्माताओं और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन के प्रमुख आकर्षणों में से एक था विदेश मंत्री जयशंकर का संबोधन,जिसमें उन्होंने वैश्विक स्तर पर बढ़ते प्रवासी-विरोधी रुझानों पर चिंता जताई और उन्हें भविष्य के लिए घातक करार दिया।
अपने भाषण के दौरान जयशंकर ने चेतावनी दी कि जो देश प्रतिभा के आवागमन में रुकावटें पैदा करेंगे,वे अंततः नेट लूज़र बनकर उभरेंगे। उन्होंने कहा कि वैश्विक प्रतिभा का मुक्त रूप से आना-जाना केवल मानव संसाधन की आवश्यकता नहीं,बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की मजबूती का एक प्रमुख स्तंभ है। उनका तर्क था कि जिन देशों की नीतियाँ प्रवासियों के प्रति अनुकूल नहीं होंगी,वे न केवल आर्थिक रूप से नुकसान उठाएँगे,बल्कि अपने सामाजिक ढाँचे में भी भारी कमियाँ महसूस करेंगे।
जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रवासी-विरोधी नेताओं द्वारा बताए जा रहे कारण वास्तविकता पर आधारित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे नेताओं द्वारा जिन चुनौतियों का हवाला दिया जाता है,उनका प्रतिभा के क्रॉस-बॉर्डर मूवमेंट से कोई लेना-देना नहीं है। उनके अनुसार,यह एक भ्रम फैलाया जाता है कि प्रवासी स्थानीय लोगों की नौकरियाँ छीन लेते हैं,जबकि वास्तविक मुद्दे बिलकुल अलग होते हैं—जो मुख्य रूप से आर्थिक संरचना,सामाजिक समायोजन और श्रम आवश्यकताओं से जुड़े होते हैं,न कि प्रवासियों से।
विदेश मंत्री ने भारत के डिजिटल शासन की सफलता और पासपोर्ट सेवा के व्यापक बदलावों का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि पिछले एक दशक में भारत ने पासपोर्ट प्रणाली को न केवल तेज़ बनाया है,बल्कि इसे अधिक पारदर्शी और नागरिक-हितैषी भी बनाया है। इससे विदेश में रहने वाले भारतीयों की समस्याओं के समाधान में तेजी आई है और उनकी सुरक्षा भी मजबूत हुई है।
अपने संबोधन के एक महत्वपूर्ण हिस्से में जयशंकर ने भारत में रेमिटेंस के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष भारत को 135 बिलियन डॉलर का रेमिटेंस प्राप्त हुआ था,जो अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात का लगभग दोगुना है। यह तथ्य ही बताता है कि प्रवासी भारतीयों का योगदान भारत की आर्थिक व्यवस्था में कितना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि रेमिटेंस केवल पैसा नहीं है,यह उन लोगों की मेहनत, नकी उपलब्धियों और भारत की अर्थव्यवस्था में उनके निरंतर योगदान का प्रमाण है।
जयशंकर ने यह भी कहा कि प्रवासियों का योगदान केवल रेमिटेंस तक सीमित नहीं है। विदेशों में बसे भारतीय वहाँ जो संपत्तियाँ बनाते हैं,जो सेवाएँ देते हैं और जो कौशल अर्जित करते हैं,वह सब भारत के लिए एक दीर्घकालिक लाभ का स्रोत है। इसका प्रभाव सीधा नहीं,बल्कि दूसरे और तीसरे स्तर पर दिखता है। उदाहरण के लिए,विदेश में काम करने वाले भारतीय अपने अनुभव से घरेलू उद्योगों को दिशा देते हैं,नए कारोबार शुरू करने में मदद करते हैं और भारत के लिए वैश्विक अवसरों के द्वार खोलते हैं।
हालाँकि,उन्होंने प्रवासन के नकारात्मक पहलुओं पर भी गंभीर रूप से बात की। उन्होंने कहा कि जब आवाजाही औपचारिक और वैध तरीके से होती है,तो इसके परिणाम अत्यंत सकारात्मक होते हैं,लेकिन गैर-कानूनी तरीके से हुई आवाजाही तस्करी अवैध नौकरी और मानवाधिकारों के उल्लंघन जैसी गंभीर समस्याएँ पैदा करती है। उन्होंने इसे वैश्विक समस्या बताते हुए कहा कि इसे रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बेहद आवश्यक है। उनकी दृष्टि में,आज विश्व जिस गति से वैश्विक जुड़ाव की ओर बढ़ रहा है,उसमें मोबिलिटी एक आवश्यक आर्थिक कारक बन चुका है,जिसकी अनदेखी किसी भी देश को भारी पड़ सकती है।
इस संदर्भ में जयशंकर ने मोबिलिटी के तीन महत्वपूर्ण पहलुओं की ओर भी संकेत किया। पहला डेमोग्राफी,जिसके तहत कई देशों में जनसंख्या घट रही है या श्रमबल की भारी कमी है,जबकि दूसरी ओर कुछ देशों में पर्याप्त मानव संसाधन हैं। ऐसे में वैश्विक मोबिलिटी से माँग और आपूर्ति का संतुलन बना रह सकता है। दूसरा पहलू है प्रतिस्पर्धा और टैलेंट,जहाँ हर देश बेहतर प्रतिभाओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है। तीसरा पहलू है सामाजिक दृष्टिकोण,कई समाजों में कुछ प्रकार की नौकरियों को स्थानीय लोग करना नहीं चाहते या वे उन कामों के लिए अपेक्षित संख्या में उपलब्ध नहीं होते। ऐसे में प्रवासी श्रमिकों की अहम भूमिका होती है।
विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा कि इन सभी स्थितियों को देखते हुए वैश्विक मोबिलिटी को रोकना किसी भी देश के लिए नुकसानदेह हो सकता है। उन्होंने कहा कि विश्व अर्थव्यवस्था अब पहले की तरह स्थानीय सीमाओं में कैद नहीं है। आज मजदूरों से लेकर उच्च तकनीकी विशेषज्ञों तक,हर स्तर पर प्रतिभा का आवागमन दुनिया की जरूरत बन चुका है। ऐसे में प्रवासी-विरोधी नीतियाँ अपनाने वाले देश अवसरों से वंचित रह जाएंगे।
सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों ने जयशंकर के वक्तव्य को भविष्यवादी और यथार्थवादी बताया और कहा कि भारत अपने विशाल प्रवासी समुदाय के चलते दुनिया में एक विशिष्ट स्थान रखता है। जयशंकर के शब्दों ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत न केवल प्रवासियों की भूमिका को महत्व देता है,बल्कि वैश्विक मंच पर भी उनके अधिकारों और अवसरों का समर्थन करता रहेगा।
समग्र रूप से,विश्व वार्षिक सम्मेलन 2025 में विदेश मंत्री एस. जयशंकर के संबोधन ने यह संदेश बेहद प्रभावी तरीके से दिया कि आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में मोबिलिटी केवल एक सामाजिक प्रक्रिया नहीं,बल्कि आर्थिक प्रगति का अनिवार्य माध्यम है। प्रवासी-विरोधी नीतियाँ अपनाने वाले देश भविष्य में पिछड़ जाएँगे,जबकि जो देश प्रतिभाओं के मुक्त आदान-प्रदान को बढ़ावा देंगे,वही वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी बनेंगे।

