नोम पेन्ह,29 जुलाई (युआईटीवी)- कंबोडिया और थाईलैंड के बीच हाल के दिनों में बढ़े सीमा संघर्ष के बाद अब दोनों देशों ने मलेशिया की मध्यस्थता में एक महत्वपूर्ण समझौते के तहत युद्धविराम लागू कर दिया है। कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट ने सोमवार आधी रात से प्रभावी इस युद्धविराम की पुष्टि करते हुए बताया कि संघर्षग्रस्त सीमावर्ती क्षेत्रों में अब स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है और हिंसा थमने लगी है। यह कदम न केवल क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है,बल्कि इससे हजारों विस्थापित लोगों को राहत मिलने की संभावना है।
प्रधानमंत्री हुन मानेट ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कहा कि यह युद्धविराम मलेशिया में हुई एक विशेष बैठक में कंबोडिया और थाईलैंड के बीच बनी सहमति की भावना के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि सोमवार आधी रात से जैसे ही यह युद्धविराम प्रभाव में आया,सीमावर्ती इलाकों में स्थिति में सुधार देखने को मिला है। उन्होंने इस निर्णय को सकारात्मक बताते हुए कहा कि इससे न केवल तनाव कम होगा,बल्कि जो लोग इस संघर्ष के कारण अपने घरों से विस्थापित हुए हैं, उन्हें अब वापस लौटने और सामान्य जीवन फिर से शुरू करने का मौका मिलेगा।
कंबोडियाई सीनेट अध्यक्ष समदेच टेको हुन सेन ने भी इस घटनाक्रम को ऐतिहासिक बताया और कहा कि युद्धविराम और शांति समझौता दोनों ही देशों के लिए एक सकारात्मक और प्रभावी परिणाम लेकर आए हैं। उन्होंने कहा कि इस संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान केवल क्षेत्रीय ही नहीं,बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी एक मिसाल है।
इस समझौते में अहम भूमिका निभाने वाले मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने बताया कि यह निर्णय सोमवार को मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में आयोजित एक विशेष बैठक में लिया गया। यह बैठक पुत्राजया शहर में प्रधानमंत्री इब्राहिम की अध्यक्षता में आयोजित की गई थी,जिसमें कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट और थाईलैंड के कार्यवाहक प्रधानमंत्री फुमथम वेचायाचाई ने हिस्सा लिया।
संयुक्त प्रेस बयान के अनुसार,दोनों देशों ने युद्धविराम को तत्काल और बिना शर्त लागू करने पर सहमति जताई। मलेशियाई प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि एशियाई देशों के बीच आपसी विवादों का समाधान शांतिपूर्ण बातचीत और आपसी समझ के माध्यम से ही होना चाहिए। उन्होंने दोनों नेताओं की प्रतिबद्धता की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह की राजनीतिक इच्छाशक्ति ही क्षेत्रीय शांति का आधार बन सकती है।
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह 24 जुलाई से कंबोडिया और थाईलैंड की सीमाओं पर तनाव ने अचानक हिंसक रूप ले लिया था। दोनों देशों के सैनिकों के बीच गोलीबारी हुई,जिसमें कई लोग घायल हुए और सैकड़ों नागरिकों को अपना घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करना पड़ा। इस झड़प ने न केवल दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ाया,बल्कि आस-पास के क्षेत्रों में भी भय का माहौल बना दिया था।
इस संघर्ष की जड़ में वह विवादित सीमावर्ती क्षेत्र है,जिसे लेकर दोनों देशों के बीच लंबे समय से मतभेद हैं। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने और क्षेत्रीय संप्रभुता में हस्तक्षेप के आरोप लगाए थे। हालाँकि,अब जब युद्धविराम की स्थिति लागू हो चुकी है और बातचीत का रास्ता खुल चुका है,तो उम्मीद की जा रही है कि यह विवाद स्थायी समाधान की दिशा में आगे बढ़ेगा।
क्षेत्रीय विश्लेषकों का मानना है कि मलेशिया की इस मध्यस्थता ने दक्षिण-पूर्व एशिया में कूटनीतिक संतुलन को एक नई दिशा दी है। इस प्रकार की पहलें यह संकेत देती हैं कि आसियान देशों के भीतर आपसी सहयोग और कूटनीतिक प्रयासों से जटिल मुद्दों को भी सुलझाया जा सकता है। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यह युद्धविराम केवल एक अस्थायी समाधान नहीं होना चाहिए,बल्कि दोनों देशों को चाहिए कि वे आपसी संवाद के जरिए दीर्घकालिक शांति सुनिश्चित करें।
आने वाले दिनों में दोनों देशों के सैन्य और राजनयिक प्रतिनिधियों के बीच औपचारिक बातचीत शुरू होने की संभावना है,जो सीमाओं के निर्धारण,नागरिक सुरक्षा और व्यापारिक गतिविधियों की पुनर्बहाली जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगी। कंबोडिया और थाईलैंड की यह पहल दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए एक सकारात्मक संकेत है कि संघर्ष से बचते हुए संवाद की राह से स्थायी शांति संभव है।
इस युद्धविराम की सफलता अब इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों देश इस समझौते को कितनी गंभीरता से लागू करते हैं और क्या वे आने वाले समय में आपसी विश्वास की बहाली के लिए ठोस कदम उठाते हैं या नहीं,लेकिन फिलहाल इतना जरूर कहा जा सकता है कि मलेशिया की पहल से कंबोडिया-थाईलैंड सीमा पर शांति की नई सुबह दिखाई देने लगी है।