नई दिल्ली,2 अप्रैल (युआईटीवी)- वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 बुधवार को लोकसभा में पेश किया जाएगा। इस विधेयक पर चर्चा के लिए स्पीकर ओम बिरला ने 8 घंटे का समय निर्धारित किया है। वक्फ अधिनियम,1995 में यह पहला संशोधन नहीं है। इससे पहले, 2013 में यूपीए सरकार के दौरान भी इस कानून में संशोधन किए गए थे।
विधेयक पर बहस के लिए सत्ताधारी गठबंधन को 4 घंटे 40 मिनट का समय दिया गया है। इस पर बहस के लिए भाजपा,कांग्रेस,जदयू,टीडीपी समेत कई राजनीतिक पार्टियों ने अपने सांसदों के लिए व्हिप जारी कर दिया है।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने मंगलवार को यह स्पष्ट किया कि सरकार इस विधेयक पर चर्चा चाहती है और इस पर सभी राजनीतिक दलों को बोलने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि देश जानना चाहता है कि इस बिल पर किस पार्टी का का क्या रुख है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर विपक्ष चर्चा में भाग नहीं लेना चाहता,तो उसे रोकने की कोई ताकत नहीं हो सकती।
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 के उद्देश्यों और कारणों के विवरण में बताया गया है कि 2013 में इस अधिनियम में व्यापक संशोधन किए गए थे,लेकिन इसके बावजूद कई मुद्दों का समाधान नहीं हो पाया था। इसमें कहा गया है कि राज्य वक्फ बोर्डों की शक्तियों,वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण,सर्वेक्षण,अतिक्रमणों को हटाने और वक्फ की परिभाषा जैसे महत्वपूर्ण विषयों को प्रभावी तरीके से संबोधित करने के लिए अधिनियम में और सुधार की आवश्यकता है।
विधेयक में यह भी उल्लेख किया गया है कि 2013 में किए गए संशोधनों का आधार न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में बनाई गई उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें थीं। इसके अलावा,वक्फ और केंद्रीय वक्फ परिषद पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट और अन्य हितधारकों के साथ विस्तृत परामर्श के बाद ये संशोधन किए गए थे।
विधेयक 2024 का एक प्रमुख उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन,सशक्तिकरण,दक्षता और विकास अधिनियम,1995 करना है। इसके तहत वक्फ बोर्ड में कई अहम बदलाव किए जाने की संभावना है। सरकार इस अधिनियम में लगभग 40 बदलाव करने की योजना बना रही है,जिनमें सबसे प्रमुख बदलाव वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों का प्रवेश हो सकता है। इसका उद्देश्य महिलाओं और अन्य मुस्लिम समुदायों की सहभागिता को बढ़ाना है। इसके अलावा, नए विधेयक में वक्फ बोर्ड पर सरकार का नियंत्रण भी बढ़ाया जा सकता है।
केंद्र सरकार के इस कदम से वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में सुधार की उम्मीद जताई जा रही है,ताकि वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन अधिक पारदर्शी और सक्षम तरीके से किया जा सके। इस विधेयक के जरिए सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि वक्फ संपत्तियों का उपयोग समाज के विकास के लिए किया जाए और किसी भी तरह के अवैध कब्जों को हटाया जा सके।
यह विधेयक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार द्वारा लोकसभा में एनडीए की संख्यात्मक श्रेष्ठता का दावा करने के लिए एक शक्ति प्रदर्शन के अवसर के रूप में भी देखा जा रहा है। सरकार का कहना है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार लाएगा और इसमें पारदर्शिता बढ़ेगी।
विपक्ष इस विधेयक के खिलाफ खड़ा है और इसके पीछे उनका तर्क है कि यह मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर आक्रमण कर सकता है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि वक्फ संपत्तियों के मामले में सरकार का बढ़ता नियंत्रण उनके अधिकारों को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा,गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने का प्रस्ताव भी विवाद का कारण बन सकता है,क्योंकि इससे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को कमजोर करने का खतरा जताया जा रहा है।
हालाँकि,सरकार का यह भी कहना है कि यह विधेयक वक्फ बोर्ड में सुधार लाने के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय के लिए फायदे का साबित होगा। भाजपा और सत्ताधारी गठबंधन का मानना है कि इस विधेयक से वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन होगा और इसका इस्तेमाल समाज के विकास के लिए किया जाएगा।
इस विधेयक पर बहस के दौरान यह देखा जाएगा कि कौन से दल इसके समर्थन में खड़े होते हैं और कौन इसके विरोध में। इसका परिणाम न केवल वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली पर,बल्कि मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर भी असर डाल सकता है। अब देखना यह है कि इस विधेयक को लोकसभा में किस तरह से पेश किया जाता है और इसके बाद क्या निर्णय लिया जाता है।