वेटिकन सिटी,22 अप्रैल (युआईटीवी)- रोमन कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का सोमवार सुबह 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने वेटिकन स्थित अपने आवास कासा सांता मार्टा में अंतिम सांस ली। पोप फ्रांसिस लंबे समय से बीमार चल रहे थे और हाल ही में उन्हें फरवरी महीने में गंभीर संक्रमण के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
पोप के निधन की आधिकारिक पुष्टि वेटिकन के कैमरलेन्गो कार्डिनल केविन फेरेल ने की। उन्होंने बताया कि पोप फ्रांसिस ने सुबह 7 बजकर 35 मिनट पर शांतिपूर्वक इस दुनिया को अलविदा कहा। कार्डिनल फेरेल ने कहा, “उनका पूरा जीवन प्रभु ईसा मसीह,चर्च और मानवता की सेवा के लिए समर्पित रहा। उन्होंने हम सभी को निष्ठा, साहस और यूनिवर्सल लव के साथ जीने की प्रेरणा दी,खासकर उन लोगों के लिए जो समाज में सबसे अधिक उपेक्षित हैं।”
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पोप फ्रांसिस के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) पोस्ट में लिखा, “परम पूज्य पोप फ्रांसिस के निधन से मुझे गहरा दुख हुआ है। दुख और स्मरण की इस घड़ी में,वैश्विक कैथोलिक समुदाय के प्रति मेरी हार्दिक संवेदनाएँ। पोप फ्रांसिस को दुनिया भर के लाखों लोग हमेशा करुणा,विनम्रता और आध्यात्मिक साहस के प्रतीक के रूप में याद रखेंगे। उन्होंने गरीबों और वंचितों की सेवा करते हुए ईसा मसीह के आदर्शों को जीवन में साकार किया।”
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि, “मैं उनके साथ हुई मुलाकातों को याद कर रहा हूँ और उनकी समावेशी सोच और समग्र विकास के प्रति प्रतिबद्धता से प्रेरित हुआ हूँ। भारत के लोगों के प्रति उनका स्नेह हमेशा संजोया जाएगा। उनकी आत्मा को शांति मिले।”
अपने निधन से एक दिन पहले,ईस्टर रविवार को पोप फ्रांसिस ने सेंट पीटर्स बेसिलिका की बालकनी से अपने अंतिम सार्वजनिक संबोधन में वैश्विक समुदाय को ‘उरबी एट ओरबी’ आशीर्वाद दिया। यह आशीर्वाद केवल पोप ही दे सकते हैं और इसमें पापों के प्रभावों से मुक्ति का संदेश होता है।
इस अवसर पर उन्होंने कहा, “मसीह उठे हैं! ये शब्द हमारे अस्तित्व के संपूर्ण अर्थ को दर्शाते हैं। हम मृत्यु के लिए नहीं बल्कि जीवन के लिए बने हैं।”
यह उनका आखिरी सार्वजनिक संदेश साबित हुआ। वे हाल ही में रोम के गेमेली अस्पताल से लौटे थे,जहाँ वे डबल निमोनिया और वायरल संक्रमण के इलाज के लिए पाँच सप्ताह तक भर्ती रहे।
पोप फ्रांसिस का जन्म जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो के रूप में अर्जेंटीना में हुआ था। उन्हें 1969 में कैथोलिक पादरी के रूप में नियुक्त किया गया। 28 फरवरी 2013 को पोप बेनेडिक्ट XVI के इस्तीफे के बाद 13 मार्च को बुलाई गई पोप कॉन्क्लेव में उन्हें रोमन कैथोलिक चर्च का प्रमुख चुना गया। उन्होंने सेंट फ्रांसिस ऑफ असीसी के सम्मान में ‘फ्रांसिस’ नाम अपनाया। वे पहले लैटिन अमेरिकी पोप और पहले जेसुइट ऑर्डर से चुने गए पोप थे।
उनकी पहचान सादगी,सेवा और आध्यात्मिक नेतृत्व के प्रतीक के रूप में थी। वे अक्सर बुलेटप्रूफ गाड़ियों की बजाय सामान्य वाहनों में चलते,आलीशान पोशाकों की बजाय साधारण सफेद पोशाक पहनते और वेटिकन की भव्य रिहाइश की जगह साधारण गेस्टहाउस में रहते।
पोप फ्रांसिस ने गरीबों,शरणार्थियों,अल्पसंख्यकों,बीमारों और वंचित वर्गों के लिए विशेष चिंता जताई। उन्होंने चर्च के अंदर और बाहर दोनों स्तरों पर सुधारों की लहर चलाई। उन्होंने पादरियों द्वारा यौन शोषण के मामलों पर कड़ा रुख अपनाया और पारदर्शिता लाने की दिशा में कई कदम उठाए।
उनकी शिक्षाओं का केंद्र हमेशा मानव करुणा,प्रेम और सह-अस्तित्व रहा। उन्होंने आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाकर चर्च को 21वीं सदी की चुनौतियों के अनुरूप ढालने की कोशिश की।
पोप फ्रांसिस ने सिर्फ धार्मिक मामलों में ही नहीं,बल्कि वैश्विक कूटनीति,जलवायु परिवर्तन और सांप्रदायिक सौहार्द पर भी मजबूत रुख अपनाया। उनकी 2015 की एनसाइक्लिकल (धार्मिक पत्र) “लौदातो सी” में उन्होंने पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को नैतिक जिम्मेदारी बताया।
उन्होंने इस्लाम,यहूदी धर्म और अन्य धर्मों के नेताओं से संवाद कर धर्मों के बीच सेतु का कार्य किया। भारत,इजराइल,तुर्की,इराक,अमेरिका और अफ्रीका जैसे देशों की यात्राओं में उन्होंने हमेशा शांति,सहिष्णुता और सेवा का संदेश दिया।
वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस के अंतिम दर्शन के लिए सेंट पीटर स्क्वायर में लाखों श्रद्धालुओं के पहुँचने की संभावना है। अंतिम संस्कार की तैयारी चर्च की पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार की जा रही है।
चर्च के नियमों के अनुसार, पोप के निधन के बाद कॉन्क्लेव बुलाया जाएगा,जिसमें नए पोप का चयन किया जाएगा। यह प्रक्रिया वेटिकन सिटी के सिस्टीन चैपल में आयोजित की जाएगी।
पोप फ्रांसिस का निधन केवल एक धार्मिक नेता के जाने का समाचार नहीं है,बल्कि वह समानता,समावेश,सेवा और विश्वबंधुत्व के एक युग का अंत भी है। उनका जीवन इस बात का उदाहरण था कि कैसे आध्यात्मिक नेतृत्व केवल पूजा और उपदेश में नहीं,बल्कि समाज के सबसे कमजोर तबके के प्रति संवेदनशीलता में निहित होता है।
वो हमेशा याद किए जाएँगे,एक ऐसे पोप के रूप में जिन्होंने दुनिया को सिखाया कि प्रेम,करुणा और न्याय ही सच्चे धर्म के स्तंभ हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।