वाशिंगटन,26 अप्रैल (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर चुप्पी तोड़ी है। ट्रंप ने इस बार अमेरिका की किसी भी मध्यस्थता भूमिका से साफ इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि भारत और पाकिस्तान “किसी न किसी तरह इस मसले को सुलझा लेंगे”।
ट्रंप अपने पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश कर चुके हैं,लेकिन इस बार उनका रुख पूरी तरह अलग नजर आया। शुक्रवार को जब वे रोम की यात्रा पर जा रहे थे,जहाँ वे पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार में शामिल होने वाले थे। जब रास्ते में पत्रकारों ने उनसे भारत-पाक सीमा तनाव को लेकर सवाल पूछा,तो ट्रंप ने इस बार न तो कोई मध्यस्थता की बात की,न ही कोई सीधी कूटनीतिक पहल का संकेत दिया।
ट्रंप ने अपने विशेष अंदाज में बोलते हुए भारत-पाक तनाव को लेकर मजाकिया लहजे में कहा, “वो तनाव तो पिछले 1500 सालों से चला आ रहा है।” भले ही यह बयान ऐतिहासिक दृष्टि से अतिशयोक्ति भरा हो,लेकिन उनके इस अंदाज से साफ है कि वे इस बार इस मुद्दे पर गहराई से हस्तक्षेप नहीं करना चाहते। उन्होंने आगे कहा, “मैं दोनों नेताओं को जानता हूँ। मुझे यकीन है कि वे खुद इसे सुलझा लेंगे।”
भारत का हमेशा से यह स्पष्ट रुख रहा है कि वह अपने द्विपक्षीय मुद्दों में किसी तीसरे पक्ष की भूमिका स्वीकार नहीं करता। चाहे मामला पाकिस्तान के साथ कश्मीर विवाद का हो या चीन के साथ सीमा तनाव का। भारत की नीति रही है कि यह मसले आपसी बातचीत से ही सुलझाए जाएँगे,न कि किसी अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता से। यही वजह है कि जब ट्रंप ने पहले कार्यकाल में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के अनुरोध पर मध्यस्थता की पेशकश की थी,तो भारत ने तुरंत उसे खारिज कर दिया था।
इसके उलट पाकिस्तान वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की माँग करता रहा है,खासकर संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका से। हालाँकि,इस बार अब तक पाकिस्तान की ओर से कोई स्पष्ट औपचारिक माँग सामने नहीं आई है कि वह अमेरिका से इस मामले में हस्तक्षेप की उम्मीद कर रहा है या नहीं।
ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान भारत और चीन के बीच लद्दाख में हुए तनाव के समय भी मध्यस्थता की पेशकश की थी,लेकिन उस समय भी भारत ने उस प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया था। भारत की विदेश नीति इस बात पर अडिग है कि बाहरी हस्तक्षेप राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नहीं होता।
ट्रंप ने भले ही मध्यस्थता से इनकार किया हो, लेकिन अमेरिका की ओर से पहलगाम हमले की कड़ी निंदा की गई। हमले के कुछ घंटों के भीतर ही ट्रंप ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन कर संवेदना जताई और आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका की ओर से पूरा समर्थन देने का आश्वासन दिया।
व्हाइट हाउस ने भी औपचारिक रूप से एक बयान जारी किया,जिसमें कहा गया कि अमेरिका इस “बर्बर हमले” की कड़ी निंदा करता है और भारत के साथ खड़ा है। अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड ने भी हमले की निंदा की और सोशल मीडिया पर लिखा, “हम भारत के साथ हैं और इस जघन्य हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को पकड़ने में मदद करेंगे।”
डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि अमेरिका इस बार भारत और पाकिस्तान के तनाव में सीधे हस्तक्षेप की कोई मंशा नहीं रखता। अमेरिका की प्राथमिकता फिलहाल आतंकवाद के खिलाफ समर्थन तक सीमित है और वह इस संवेदनशील मुद्दे में मध्यस्थता से दूरी बनाए रखना चाहता है।
भारत भी किसी तीसरे पक्ष की भूमिका को स्वीकार करने के मूड में नहीं है,जबकि पाकिस्तान की स्थिति इस बार अस्पष्ट बनी हुई है। ऐसे में आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दोनों देश तनाव को शांतिपूर्वक सुलझा पाते हैं या यह मुद्दा और गहराता है।