ओस्लो,8 मई (युआईटीवी)- डेनमार्क और अमेरिका के बीच लंबे समय से मजबूत राजनयिक और सामरिक संबंध रहे हैं,लेकिन हाल ही में सामने आई एक मीडिया रिपोर्ट ने इन रिश्तों में तनाव पैदा कर दिया है। अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार,अमेरिका की खुफिया एजेंसियाँ ग्रीनलैंड और डेनमार्क में ऐसे लोगों की पहचान करने की कोशिश कर रही हैं,जो अमेरिका के आर्कटिक रणनीतिक हितों को बढ़ावा दे सकते हैं। इसके बाद डेनमार्क के विदेश मंत्री लार्स लोके रासमुसेन ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
विदेश मंत्री रासमुसेन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह कोपेनहेगन स्थित अमेरिकी राजदूत को समन करेंगे और इस विषय में स्पष्ट स्पष्टीकरण माँगेंगे। उन्होंने कहा, “हम दोस्तों के बीच जासूसी नहीं करते।” यह बयान उन्होंने पोलैंड के वारसॉ में आयोजित एक विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने जाते वक्त दिया।
उनकी यह प्रतिक्रिया उस समय आई जब डेनिश मीडिया में यह रिपोर्ट प्रमुखता से छपी कि अमेरिका ग्रीनलैंड को निशाना बनाकर खुफिया गतिविधियाँ चला रहा है। रासमुसेन ने कहा कि हालाँकि,वह इस रिपोर्ट की पुष्टि नहीं कर सकते,लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने इसका स्पष्ट खंडन भी नहीं किया है। यह स्थिति उन्हें “चिंतित” करती है।
अमेरिका की ग्रीनलैंड में दिलचस्पी कोई नई बात नहीं है। वर्ष 2019 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब ग्रीनलैंड को खरीदने की इच्छा व्यक्त की थी, तो डेनमार्क में राजनीतिक हलकों और आम जनता में इसे लेकर तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिली थी। उस समय यह विचार एक मजाक के तौर पर लिया गया था, लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि अमेरिका गुप्त रूप से ग्रीनलैंड में रणनीतिक प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
ग्रीनलैंड,भौगोलिक रूप से आर्कटिक क्षेत्र में स्थित है और इसमें अत्यधिक खनिज संसाधन मौजूद हैं। इसके अलावा,जलवायु परिवर्तन के चलते आर्कटिक क्षेत्र की भू-राजनीतिक महत्ता तेजी से बढ़ रही है। अमेरिका की सैन्य उपस्थिति पहले से ही ग्रीनलैंड में है,खासकर थुले एयर बेस के जरिए,लेकिन अब जासूसी और प्रभावी हस्तक्षेप की खबरें डेनमार्क की संप्रभुता पर सवाल खड़े कर रही हैं।
इसी बीच, डेनमार्क की घरेलू खुफिया एजेंसी पीईटी ने भी एक आधिकारिक बयान में स्वीकार किया है कि आर्कटिक क्षेत्र पर बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय ध्यान के कारण डेनमार्क और ग्रीनलैंड दोनों के खिलाफ जासूसी और विदेशी प्रभाव के खतरे में वृद्धि हुई है। इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि सरकार और सुरक्षा एजेंसियाँ अमेरिका की गतिविधियों को लेकर पूरी तरह सतर्क हो चुकी हैं।
इन घटनाक्रमों ने अमेरिका और डेनमार्क के बीच रिश्तों में एक बार फिर से तनाव पैदा कर दिया है। रासमुसेन ने यह भी आरोप लगाया कि अमेरिका न केवल ग्रीनलैंड पर प्रभाव डालना चाहता है,बल्कि वह डेनमार्क और ग्रीनलैंड के बीच की दोस्ती को कमजोर करने की कोशिश भी कर रहा है। उन्होंने दो टूक कहा, “संयुक्त राज्य अमेरिका ऐसे प्रयासों में सफल नहीं होगा।”
इस प्रकार का कड़ा बयान सार्वजनिक रूप से देना दर्शाता है कि डेनमार्क इस मुद्दे को हल्के में नहीं ले रहा। यह केवल कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं है,बल्कि यह अपने राष्ट्रहित और संप्रभुता की रक्षा का स्पष्ट संदेश भी है।
डेनमार्क और अमेरिका के संबंधों में ग्रीनलैंड एक संवेदनशील बिंदु बनकर उभरा है, जहाँ एक ओर अमेरिका आर्कटिक क्षेत्र में अपनी रणनीतिक पकड़ मजबूत करना चाहता है,वहीं डेनमार्क इसे अपने प्रभुत्व और क्षेत्रीय अखंडता पर हस्तक्षेप मानता है।
डेनमार्क द्वारा अमेरिकी राजदूत को समन करना एक महत्वपूर्ण राजनयिक कदम है, जो यह दर्शाता है कि मित्र राष्ट्रों के बीच भी विश्वास को बनाए रखने के लिए पारदर्शिता और सम्मान आवश्यक है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका इन आरोपों पर कैसी प्रतिक्रिया देता है और क्या यह मामला दोनों देशों के रिश्तों को दीर्घकालिक रूप से प्रभावित करता है या नहीं।