नई दिल्ली,10 मई (युआईटीवी)- पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ ) से एक बार फिर राहत मिल गई है,लेकिन इस बार भारत ने खुलकर अपनी असहमति जाहिर की है। भारत ने पाकिस्तान को एक बिलियन अमेरिकी डॉलर की विस्तारित निधि सुविधा (ईएफएफ) और 1.3 बिलियन डॉलर की नई लचीलापन और स्थिरता सुविधा (आरएसएफ) देने के फैसले पर वोटिंग से दूरी बना ली है। साथ ही, भारत ने इस पूरे निर्णय को लेकर आईएमएफ के सामने अपनी गंभीर चिंताएँ भी दर्ज कराई हैं।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लंबे समय से संकट में घिरी हुई है। बढ़ती महँगाई, विदेशी मुद्रा भंडार की कमी और राजकोषीय घाटे की चुनौतियों से जूझते हुए पाकिस्तान बार-बार आईएमएफ की शरण में जाता रहा है। शुक्रवार को आईएमएफ ने पाकिस्तान को एक बिलियन डॉलर की किस्त और 1.3 बिलियन डॉलर की नई सुविधा को मंजूरी दी,जिससे इस्लामाबाद को थोड़ी राहत मिली।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि देश की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है और अब पाकिस्तान विकास की ओर अग्रसर है। पीएम शहबाज शरीफ ने आईएमएफ की मंजूरी को “आर्थिक स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम” बताया।
भारत ने पीएमओ की इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया और इसका कारण स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के ट्रैक रिकॉर्ड और सीमापार आतंकवाद को बताया। वित्त मंत्रालय की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि भारत को गंभीर आशंका है कि यह फंड आतंकवाद को बढ़ावा देने में इस्तेमाल हो सकता है।
भारत ने आईएमएफ को याद दिलाया कि पाकिस्तान एक दीर्घकालिक उधारकर्ता रहा है। वर्ष 1989 से लेकर अब तक 35 वर्षों में पाकिस्तान को 28 वर्षों तक आईएमएफ से ऋण मिला है। सिर्फ पिछले पाँच सालों में ही पाकिस्तान ने चार अलग-अलग आईएमएफ कार्यक्रम शुरू किए हैं। भारत ने सवाल किया कि जब पहले के बेलआउट सफल नहीं हो पाए,तो फिर एक और राहत पैकेज कैसे दी जा रही है?
बयान में कहा गया कि, “अगर पिछले कार्यक्रम एक सुदृढ़ वृहद-आर्थिक नीति वातावरण स्थापित करने में सफल रहे होते,तो पाकिस्तान को एक और बेल-आउट कार्यक्रम के लिए आईएमएफ से संपर्क नहीं करना पड़ता।”
भारत ने आईएमएफ की कार्यक्रम डिज़ाइनों की प्रभावशीलता पर भी प्रश्नचिह्न लगाया है। क्या आईएमएफ अपने कार्यक्रमों की सही तरीके से निगरानी कर रहा है? क्या पाकिस्तान वाकई सुधार लागू कर रहा है? ये सवाल अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठने लगे हैं।
भारत ने यह भी कहा कि पाकिस्तान में आर्थिक फैसलों में सेना का अत्यधिक हस्तक्षेप नीतिगत चूक और सुधारों के पलटने का बड़ा जोखिम पैदा करता है। 2021 में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का हवाला देते हुए भारत ने बताया कि पाकिस्तान में सेना से जुड़े व्यापार सबसे बड़े कॉरपोरेट समूह हैं। इसके अलावा,पाकिस्तान की “विशेष निवेश सुविधा परिषद” में भी सेना की अग्रणी भूमिका बनी हुई है,जो पारदर्शिता और जवाबदेही को कमजोर करती है।
भारत की सबसे बड़ी चिंता यह है कि आईएमएफ द्वारा दिया गया धन आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने में इस्तेमाल किया जा सकता है। सीमापार आतंकवाद को लेकर भारत पहले से ही पाकिस्तान पर गंभीर आरोप लगाता रहा है। भारत के बयान में स्पष्ट कहा गया कि, “सीमा पार आतंकवाद को लगातार समर्थन करने से वैश्विक समुदाय को एक खतरनाक संदेश जाता है,फंडिंग एजेंसियों और दानदाताओं की प्रतिष्ठा को खतरा होता है और वैश्विक मूल्यों का मजाक बनता है।”
इस बयान में यह संकेत साफ है कि भारत आईएमएफ को केवल एक आर्थिक संस्था नहीं,बल्कि वैश्विक नैतिकता और जिम्मेदारी निभाने वाला मंच मानता है और चाहता है कि ऐसे निर्णयों में सुरक्षा और शांति को भी अहमियत दी जाए।
पाकिस्तान ने आईएमएफ की मंजूरी पर राहत की सांस ली है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि आईएमएफ से मिले फंड से देश की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित होगी, विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होगी और वैश्विक निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा। पाकिस्तान का मानना है कि यह वित्तीय सहायता देश को विकास पथ पर वापस लाने में सहायक होगी।
हालाँकि,भारत की चिंताओं पर पाकिस्तान ने कोई प्रत्यक्ष जवाब नहीं दिया,लेकिन अतीत में पाकिस्तान ऐसे आरोपों को “राजनीतिक” और “अनुचित” बताता रहा है।
भारत का यह कदम एक नई आर्थिक कूटनीति की झलक देता है। यह सिर्फ विरोध का नहीं,बल्कि एक वैश्विक संदेश है कि अंतर्राष्ट्रीय सहायता केवल आर्थिक संकट को हल करने के लिए नहीं,बल्कि दीर्घकालिक शांति और स्थिरता के दृष्टिकोण से दी जानी चाहिए। भारत ने यह भी संकेत दिया है कि आर्थिक सहायता आतंकवाद के पोषण में बदल सकती है,यदि उसे सही तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया।
भारत द्वारा आईएमएफ के वोटिंग से दूरी बनाना केवल एक तकनीकी निर्णय नहीं, बल्कि एक सैद्धांतिक और रणनीतिक रुख है। यह फैसला दिखाता है कि भारत अब अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के भीतर भी अपनी आवाज बुलंद कर रहा है और वैश्विक फाइनेंशियल गवर्नेंस में सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है।
इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में आर्थिक सहायता और सुरक्षा नीतियों के बीच की रेखाएँ और अधिक स्पष्ट होंगी। भारत की यह नीति न केवल पाकिस्तान के संदिग्ध रुख पर प्रकाश डालती है,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को भी अधिक उत्तरदायी और पारदर्शी होने की चुनौती देती है।