रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन,यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की (तस्वीर क्रेडिट@garrywalia_)

तुर्किये में रूस-यूक्रेन युद्ध पर होने वाली शांति वार्ता के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस्तांबुल नहीं जाने का लिया फैसला

मॉस्को,15 मई (युआईटीवी)- रूस -यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध तीन साल का लंबा और विनाशकारी रूप ले चुका है। हजारों जानें जा चुकी हैं,लाखों लोग विस्थापित हुए हैं और वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं। ऐसे में तुर्किये (तुर्की) में आज शुरू हो रही रूस-यूक्रेन वार्ता को लेकर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं।

हालाँकि,यह वार्ता एक नई उम्मीद जगाती है,लेकिन इसमें कई पेच हैं। पुतिन खुद इसमें शामिल नहीं हो रहे,पश्चिमी देशों के प्रस्ताव को रूस पहले ही ठुकरा चुका है, और यूक्रेन अभी तक तय नहीं कर पाया है कि उसकी ओर से किसे बातचीत में भेजा जाएगा।

11 मई को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तुर्किये में सीधे बातचीत की पेशकश की थी। इससे पहले पश्चिमी और यूरोपीय नेताओं ने एक महीने के बिना शर्त युद्धविराम की पेशकश की थी,जिसे रूस ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके उलट, रूस ने यूक्रेन पर एक ही दिन में 100 से अधिक ड्रोन हमले कर दिए,जिससे शांति प्रस्ताव की गंभीरता पर सवाल उठे।

पुतिन ने तुर्किये में होने वाली वार्ता के लिए एक प्रतिनिधिमंडल घोषित किया है, जिसमें क्रेमलिन के करीबी और वार्ता दल के प्रमुख व्लादिमीर मेडिंस्की,उप विदेश मंत्री मिखाइल गालुजिन,उप रक्षा मंत्री अलेक्जेंडर फोमिन,सैन्य खुफिया प्रमुख इगोर कोस्त्युकोव प्रमुख चेहरे हैं।

इनके अलावा कई विश्लेषकों और विशेषज्ञों को भी इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया है,जिनमें जनरल स्टाफ और रक्षा मंत्रालय से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी प्रमुख हैं।

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने स्पष्ट किया है कि रूस यह वार्ता बिना किसी पूर्व शर्त के करने को तैयार है। यह बात रूस की ओर से लचीलापन दिखाने के संकेत के रूप में पेश की जा रही है,लेकिन यूक्रेन की नजर में यह विश्वास के लायक नहीं है।

यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने अब तक तुर्किये वार्ता को लेकर खुलकर हामी नहीं भरी है। उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा कि “हम यह देख रहे हैं कि रूस की ओर से कौन वार्ता में शामिल होता है,तभी हम तय करेंगे कि यूक्रेन की ओर से कौन शामिल होगा।”

जेलेंस्की ने यह भी दोहराया कि रूस की मंशा पर उन्हें गहरा संदेह है। उनके अनुसार,पुतिन की यह वार्ता प्रस्ताव अविश्वसनीय लगती है क्योंकि रूस एक तरफ बातचीत की पेशकश कर रहा है और दूसरी तरफ युद्ध को और तेज कर रहा है।

उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संभावित भागीदारी की बात भी कही है,हालाँकि,यह अभी केवल अटकलें हैं। जेलेंस्की का कहना है कि रूस की तरफ से अब तक जो संकेत मिले हैं,वे केवल प्रोपेगैंडा और रणनीतिक भ्रम फैलाने वाले लगते हैं।

तुर्किये ने पहले भी रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता की कोशिश की थी और इस बार भी वही भूमिका निभा रहा है। इस्तांबुल में होने वाली वार्ता का मंच तैयार है, लेकिन क्या यह सिर्फ एक औपचारिकता है या असली समाधान की ओर एक कदम?

तुर्किये के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन लंबे समय से दोनों देशों के बीच संवाद कायम करने की कोशिश कर रहे हैं। तुर्किये का यह कूटनीतिक प्रयास इस बात को दर्शाता है कि वह केवल एक क्षेत्रीय शक्ति नहीं,बल्कि वैश्विक मध्यस्थ के रूप में भी अपनी भूमिका मजबूत करना चाहता है।

इस पूरी वार्ता प्रक्रिया के पीछे पश्चिमी देशों की एक बड़ी भूमिका है।अमेरिका,ब्रिटेन, फ्रांस,जर्मनी और पोलैंड लगातार रूस पर दबाव बना रहे हैं कि वह युद्धविराम को माने और शांति वार्ता के लिए रास्ता खोले।

अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने हाल ही में लंदन में इन सभी देशों के विदेश मंत्रियों से मुलाकात की और युद्धविराम के प्रस्तावों पर बातचीत की। इन देशों ने चेतावनी दी है कि यदि रूस ने युद्धविराम को नहीं माना तो अधिक सख्त प्रतिबंध लगाए जाएँगे।

हालाँकि,अब तक नए प्रतिबंधों की कोई ठोस घोषणा नहीं की गई है,लेकिन कूटनीतिक गलियारों में इस दिशा में तेज हलचल जारी है।

इस बीच,जमीनी हकीकत यह है कि युद्ध अब भी पूरी ताकत से जारी है। रूस और यूक्रेन दोनों गर्मी में नए सैन्य अभियानों की तैयारी कर रहे हैं। दोनों देशों के बीच लगभग 1,000 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा पर संघर्ष जारी है। हजारों सैनिक मारे जा चुके हैं और रूस तेजी से नई सैन्य भर्ती कर रहा है,ताकि मोर्चे पर अपनी पकड़ मजबूत रख सके।

‘इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर’ नामक अमेरिकी थिंक टैंक के अनुसार,रूस का इरादा इस गर्मी में एक बड़ा आक्रमण करने का है और वह इसके लिए बड़ी संख्या में सैनिकों को युद्ध क्षेत्र में भेजने की तैयारी में है।

पुतिन बार-बार यूक्रेन की वर्तमान सरकार की वैधता पर सवाल उठा चुके हैं। उनका कहना है कि राष्ट्रपति जेलेंस्की का कार्यकाल पिछले वर्ष समाप्त हो चुका है। हालाँकि,यूक्रेन के संविधान में स्पष्ट है कि मार्शल लॉ के दौरान चुनाव नहीं कराए जा सकते।

2022 में यूक्रेनी सरकार ने एक आदेश जारी कर रूस से किसी भी तरह की सीधी बातचीत पर प्रतिबंध लगा दिया था,जो अभी भी लागू है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि तुर्किये में यह वार्ता उस आदेश से कैसे प्रभावित होती है।

अब तक के संकेतों से यह स्पष्ट नहीं है कि तुर्किये में हो रही रूस-यूक्रेन वार्ता से कोई ठोस समाधान निकलेगा,जहाँ एक ओर रूस बिना शर्त बातचीत के लिए तैयार दिख रहा है,वहीं यूक्रेन को उस पर भरोसा नहीं है। पुतिन की सीधी भागीदारी से दूरी और युद्ध की समानांतर रणनीति इस वार्ता की सच्चाई पर सवाल उठाते हैं।

हालाँकि,अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सक्रियता और पश्चिमी देशों का दबाव शांति की दिशा में एक उम्मीद जरूर जगाता है। दुनिया अब देख रही है कि क्या यह वार्ता वाकई शांति की शुरुआत होगी या केवल एक और राजनयिक औपचारिकता बनकर रह जाएगी।