नई दिल्ली,17 मई (युआईटीवी)- भारत सरकार ने आतंकी हमले के जवाब में की गई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ कार्रवाई को वैश्विक मंच पर सही संदर्भ में प्रस्तुत करने के लिए एक सात सदस्यीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल गठित किया है। यह डेलिगेशन दुनिया के प्रमुख साझेदार देशों,विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सदस्य देशों की यात्रा करेगा। इसका उद्देश्य भारत की आतंकवाद के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का समर्थन जुटाना और ऑपरेशन सिंदूर की आवश्यकता और वैधता को समझाना है,लेकिन यह राष्ट्रीय पहल उस समय एक राजनीतिक विवाद में तब्दील हो गई,जब कांग्रेस और केंद्र सरकार के बीच शशि थरूर को लेकर मतभेद सामने आ गए।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष भारतीयों की जान चली गई। इस हमले के बाद,भारत ने 6-7 मई की रात पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में मौजूद 9 आतंकी ठिकानों को एयर स्ट्राइक के ज़रिए तबाह कर दिया। इस अभियान को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम दिया गया।
यह सैन्य कार्रवाई न केवल एक जवाबी हमला था,बल्कि यह एक रणनीतिक सिग्नल भी था कि भारत अब आतंकवाद को सिर्फ सहन नहीं करेगा,बल्कि सटीक और निर्णायक जवाब देगा।
अब भारत इस संदेश को दुनिया के सामने राजनयिक स्तर पर स्थापित करना चाहता है,ताकि वैश्विक समुदाय भारत के रुख को समझे,समर्थन दे और पाकिस्तान पर दबाव बने।
केंद्र सरकार ने तय किया कि सात अलग-अलग डेलिगेशन बनाए जाएँगे,जो अलग-अलग देशों में जाकर भारत का पक्ष रखेंगे। हर डेलिगेशन का नेतृत्व एक सांसद करेंगे और बाकी सांसद उनके साथ जाएँगे।
शनिवार को केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर यह जानकारी साझा की। उन्होंने जिन सांसदों के नामों का ऐलान किया उनमें रविशंकर प्रसाद (भाजपा),बैजयंत पांडा (भाजपा),शशि थरूर (कांग्रेस),कनिमोझी करुणानिधि (डीएमके),संजय कुमार झा (जदयू),सुप्रिया सुले (एनसीपी-एसपी),श्रीकांत शिंदे (शिवसेना) शामिल हैं।
रिजिजू ने पोस्ट में लिखा , “सबसे अहम समय में भारत एकजुट है। यह राजनीति से ऊपर,मतभेदों से परे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है।”
इस घोषणा के तुरंत बाद कांग्रेस पार्टी ने अपनी ओर से एक अलग लिस्ट जारी की, जिसमें शशि थरूर का नाम गायब था। वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर स्पष्ट किया कि शुक्रवार सुबह संसदीय कार्य मंत्री रिजिजू ने कांग्रेस अध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के नेता से बात कर चार नाम माँगे थे। कांग्रेस की ओर से आनंद शर्मा (पूर्व केंद्रीय मंत्री),गौरव गोगोई (लोकसभा उपनेता),डॉ. सैयद नसीर हुसैन (राज्यसभा सांसद) और राजा बरार (लोकसभा सांसद) के नाम दिए गए थे।
कांग्रेस ने इस बात पर आपत्ति जताई कि जब शशि थरूर का नाम पार्टी ने भेजा ही नहीं, तो सरकार ने उन्हें कैसे शामिल कर लिया।
दरअसल,विवाद की जड़ कहीं न कहीं शशि थरूर के हाल के बयानों में छिपी है। उन्होंने 8 मई को केंद्र सरकार की कार्रवाई की खुलकर तारीफ करते हुए ऑपरेशन सिंदूर को “पाकिस्तान और दुनिया के लिए मजबूत संदेश” बताया था।
थरूर ने लिखा था, “भारत ने 26 निर्दोष नागरिकों की मौत का सटीक बदला लिया है। यह एक निर्णायक कार्रवाई है।”
कहा जा रहा है कि थरूर की यह राष्ट्रवादी लाइन पार्टी नेतृत्व को असहज कर रही है,जो लगातार केंद्र सरकार की विदेश नीति और सैन्य नीति की आलोचना करता रहा है।
सरकार की लिस्ट में अपना नाम देखकर थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर खुशी जाहिर की और लिखा, “मैं भारत सरकार के निमंत्रण से सम्मानित महसूस कर रहा हूँ कि मुझे पाँच प्रमुख राजधानियों में भारत के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने का मौका मिल रहा है। जब राष्ट्रीय हित की बात हो और मेरी सेवाओं की आवश्यकता हो, तो मैं कभी पीछे नहीं हटूँगा। जय हिंद!”
इस बयान से यह स्पष्ट हुआ कि थरूर खुद इस डेलिगेशन में शामिल होने के इच्छुक हैं,चाहे कांग्रेस की सूची में उनका नाम हो या न हो।
इन सात डेलिगेशन का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ऑपरेशन सिंदूर की आवश्यकता को समझाना,भारत के आतंकवाद विरोधी रुख को मजबूती से प्रस्तुत करना,संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों सहित बड़ी राजधानियों को भारत के पक्ष में लामबंद करना तथा पाकिस्तान के झूठे प्रचार का मुकाबला करना है।
इस प्रयास के ज़रिए भारत यह संदेश देना चाहता है कि उसकी सैन्य कार्रवाई पूरी तरह वैध और नैतिक थी और यह आतंकवाद के खिलाफ एक ठोस कदम था,न कि किसी देश के खिलाफ युद्ध की घोषणा।
यह मामला दो अहम सवाल खड़ा करता है,पहला सवाल यह है कि क्या राष्ट्रीय मुद्दों पर राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार किया जाना चाहिए? और दूसरा सवाल है कि क्या सरकार को डेलिगेशन में शामिल करने से पहले सभी पार्टियों से स्पष्ट सहमति लेनी चाहिए थी?
जहाँ केंद्र सरकार इसे एक ‘राष्ट्रहित में एकजुटता’ का उदाहरण बता रही है,वहीं कांग्रेस इसे एक ‘प्रक्रियात्मक चूक’ और ‘राजनीतिक स्टंट’ कह रही है,लेकिन जनता के नजरिए से देखें,तो यह स्पष्ट है कि ऑपरेशन सिंदूर जैसे संवेदनशील और सामरिक महत्व के विषयों पर भारत को एकजुट स्वर में बात करनी चाहिए,न कि आपसी खींचतान में पड़ना चाहिए।
अब यह देखना रोचक होगा कि शशि थरूर वास्तव में इस डेलिगेशन में शामिल होते हैं या नहीं और कांग्रेस इस पर क्या अंतिम रुख अपनाती है,लेकिन एक बात तय है कि भारत का आतंकवाद विरोधी रुख अब सिर्फ सीमा तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि कूटनीतिक मोर्चे पर भी मजबूत दिखाई देगा।