भोपाल,20 मई (युआईटीवी)- मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री विजय शाह द्वारा सेना की वरिष्ठ अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ की गई विवादित टिप्पणी के मामले में अब कानूनी शिकंजा कसता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मध्य प्रदेश सीआईडी ने एक विशेष जाँच दल (एसआईटी) का गठन किया है। यह कदम न्यायालय के 19 मई 2025 के आदेश के बाद उठाया गया,जिसमें अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि मामले की गंभीरता को देखते हुए जाँच के लिए एसआईटी का गठन किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान विजय शाह के रवैये पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि, “हमें ऐसी माफी नहीं चाहिए जो औपचारिक हो। आप पहले सार्वजनिक रूप से आपत्तिजनक बातें करते हैं और फिर माफी माँगते हुए कोर्ट चले आते हैं। आप एक जिम्मेदार जनप्रतिनिधि हैं,आपको सोच-समझकर बोलना चाहिए था,लेकिन आपने बहुत ही अशोभनीय भाषा का प्रयोग किया।”
इस पर विजय शाह के वकील मनिंदर सिंह ने दलील दी कि मंत्री जी ने पहले ही माफी माँग ली है और माफी का वीडियो भी सार्वजनिक किया गया है। हालाँकि, अदालत ने इस तर्क को पर्याप्त नहीं माना और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए जाँच की निगरानी के लिए आईपीएस अधिकारियों की एसआईटी गठित करने का निर्देश दिया।
मध्य प्रदेश सीआईडी द्वारा गठित एसआईटी में तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी शामिल किए गए हैं:
प्रमोद वर्मा – पुलिस महानिरीक्षक, सागर जोन, सागर
कल्याण चक्रवर्ती – उप पुलिस महानिरीक्षक, विशेष सशस्त्र बल, पुलिस मुख्यालय, भोपाल
वाहिनी सिंह – पुलिस अधीक्षक, जिला डिंडोरी
सीआईडी ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि, “उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित निर्णय के अनुपालन में थाना मानपुर,जिला इंदौर (ग्रामीण) के अपराध क्रमांक 188/25 के तहत भारतीय न्याय संहिता,2023 की धारा 152, 196(1)(बी), और 197(1)(सी) के अंतर्गत दर्ज प्रकरण की जाँच अब एसआईटी द्वारा की जाएगी। जाँच के दौरान सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का अक्षरशः और समयसीमा में पालन किया जाए।”
कुछ दिनों पहले विजय शाह ने एक सार्वजनिक मंच से सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की थी,जो न केवल व्यक्तिगत मानहानि से जुड़ी थी,बल्कि पूरे सैन्य बल और महिला अधिकारियों की गरिमा पर सवाल उठाने वाली मानी गई। इस बयान की सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में तीव्र आलोचना हुई थी।
कर्नल सोफिया कुरैशी भारतीय सेना की वह अधिकारी हैं,जिन्होंने अनेक अंतर्राष्ट्रीय सैन्य अभ्यासों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत मानी जाती हैं। उनकी प्रतिष्ठा को लेकर दिए गए बयान को समाज और सेना दोनों ने बेहद आपत्तिजनक माना।
इस मामले में केवल सुप्रीम कोर्ट ही नहीं,बल्कि जनता,राजनीतिक दल और महिला संगठनों ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। विपक्षी दलों ने विजय शाह से मंत्री पद से इस्तीफे की माँग की है और इस टिप्पणी को “महिलाओं का अपमान” बताया है।
वहीं,भाजपा के अंदर भी इस मामले को लेकर असहजता देखी गई है,क्योंकि इससे पार्टी की छवि और महिला मतदाताओं के बीच विश्वास पर असर पड़ सकता है।
विजय शाह ने बाद में अपने बयान के लिए माफी माँगी और एक वीडियो जारी कर सफाई दी,लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे केवल “औपचारिक माफी” मानते हुए अस्वीकार कर दिया और मामले की गहन जाँच के आदेश दिए। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि माफी एक उपाय हो सकता है,लेकिन सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी भाषा और व्यवहार पर नियंत्रण रखे।
यह मामला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि जनप्रतिनिधियों के बयानों की जवाबदेही अब केवल राजनीतिक स्तर पर नहीं,बल्कि न्यायिक स्तर पर भी तय की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप यह संकेत देता है कि अब सार्वजनिक मंच पर दिए गए आपत्तिजनक या असंवेदनशील बयानों को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।
एसआईटी की जाँच के निष्कर्ष आने के बाद तय होगा कि विजय शाह के खिलाफ आगे क्या कानूनी कार्रवाई की जाएगी,लेकिन यह मामला अब केवल एक व्यक्ति की छवि से जुड़ा नहीं रह गया है,बल्कि यह लोकतंत्र में सार्वजनिक भाषण की मर्यादा, महिला सम्मान और सैन्य प्रतिष्ठा से भी जुड़ गया है।